श्रमिक स्पेशल ट्रेन में महाराष्ट्र के सिवा यात्रियों से कोई नहीं ले रहा किराया, फिर भी कांग्रेस किसे देगी पैसे, जानें पूरा सच
बीजेपी के मीडिया सेल के हेड अमित मालवीय ने कहा कि गृह मंत्रालय ने अपने दिशा-निर्देशों में साफ कहा है कि किसी भी स्टेशन पर कोई टिकट नहीं बेचा जाएगा। रेलवे पहले से 85 फीसदी किराया वहन कर रहा है और शेष 15 फीसदी राज्य सरकार को भुगतान करना है, जैसा कि मध्य प्रदेश ने किया है।
प्रवासियों को उनके प्रदेश पहुंचाने के लिए स्पेशल ट्रेनें चलाई जा रही हैं। लेकिन मजदूरों की घर वापसी पर किराया के मुद्दे ने नई राजनीति को जन्म दे दिया है। कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल केंद्र सरकार पर मजदूरों से किराया लेने की आलोचना कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ ये भी तथ्य सामने आए हैं कि प्रवासियों के स्पेशल ट्रेन का 85 फीसदी भार केंद्र वहन कर रहा है, राज्यों को बाकी 15 फीसदी ही भुगतान करना पड़ रहा है।
दरअसल, कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने आज ऐलान करते हुए कहा कि प्रदेश कांग्रेस कमेटी की हर इकाई हर जरूरतमंद श्रमिक व कामगार के घर लौटने की रेल यात्रा का टिकट खर्च वहन करेगी व इस बारे जरूरी कदम उठाएगी।’’ उन्होंने कहा कि मेहनतकशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होने के मानव सेवा के इस संकल्प में कांग्रेस का यह योगदान होगा। इसके साथ ही राहुल गांधी ने भी ट्वीट करते हुए सवाल उठाए कि एक तरफ रेलवे दूसरे राज्यों में फंसे मजदूरों से किराया वसूल रही है वहीं दूसरी तरफ रेल मंत्रालय पीएम केयर फंड में 151 करोड़ रुपये का चंदा दे रहा है। जरा ये गुत्थी सुलझाइए!
क्या है पूरा मामलाएक तरफ रेलवे दूसरे राज्यों में फँसे मजदूरों से टिकट का भाड़ा वसूल रही है वहीं दूसरी तरफ रेल मंत्रालय पीएम केयर फंड में 151 करोड़ रुपए का चंदा दे रहा है।
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) May 4, 2020
जरा ये गुत्थी सुलझाइए! pic.twitter.com/qaN0k5NwpG
वैसे तो प्रवासी मजदूरों को वापस अपने प्रदेश लौटने के इंतजाम को लेकर लगातार चर्चाएं चलती रही थीं। तमाम राज्य सरकार समेत विपक्ष की ओर से भी इस मुद्दे को लगातार उठाया जा रहा था। लेकिन लाकडाउन 3.0 की घोषणा के बाद केंद्र की ओर से प्रवासी मजदूरों, श्रद्धालुओं, छात्रों समेत दूसरे फंसे लोगों को अपने-अपने गृहराज्य जाने की इजाजत दे दी गई। लेकिन इसके बाद प्रवासी मजदूरों, छात्रों की बड़ी संख्या में होने की वजह से राज्य सरकारों ने केंद्र से ट्रेन चलाने का अनुरोध किया था। जिसके बाद केंद्र की तरफ से फंसे लोगों के लिए श्रमिक ट्रेन चलाई गई। इन ट्रेनों से मजदूर अलग-अलग राज्यों से अपने घर पहुंच रहे हैं, लेकिन विवाद इस बात पर हो गया कि परेशानी का सामना कर रहे मजदूरों से टिकट का पैसा वसूला जा रहा है।
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सोशल डिस्टेंसिग का ध्यान रखते हुए इन श्रमिक ट्रेनों में लगभग 60% यात्री ही सफर कर रहे हैं। रास्ते में भोजन तथा पानी की व्यवस्था, सुरक्षा आदि के साथ ये विशेष ट्रेनें चलाई जा रही हैं तथा वापसी में खाली ट्रेनें लाई जा रही हैं। मज़दूरों की स्क्रीनिंग के लिए डॉक्टर, सुरक्षा, रेलवे स्टाफ आदि का भी इंतज़ाम किया गया है। सामान्य दिनों में भी भारतीय रेल यात्रियों को यात्रा करने पर लगभग 50% सब्सिडी देती है। इन सबको ध्यान में रखकर मात्र 15% खर्च रेलवे भेजने वाले राज्य सरकारों से ले रही है और टिकट राज्य सरकारों को दिया जा रहा है। भारतीय रेल किसी भी प्रवासी को न तो टिकट बेच रहा है और न ही उनसे किसी प्रकार का संपर्क कर रहा है।
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बीजेपी के मीडिया सेल के हेड अमित मालवीय ने कहा कि गृह मंत्रालय ने अपने दिशा-निर्देशों में साफ कहा है कि किसी भी स्टेशन पर कोई टिकट नहीं बेचा जाएगा। रेलवे पहले से 85 फीसदी किराया वहन कर रहा है और शेष 15 फीसदी राज्य सरकार को भुगतान करना है, जैसा कि मध्य प्रदेश ने किया है। प्रवासियों को तो भुगतान करना ही नहीं है। मालवीय ने सवाल उठाते हुए कहा कि सोनिया गांधी कांग्रेस शासित राज्य की सरकार से इसका भुगतान नहीं करने को लेकर क्यों नहीं पूछ रही हैं।
Shame on Congress for politicising migrant movement issue.
— Amit Malviya (@amitmalviya) May 4, 2020
MHA guidelines are clear.
“No tickets to be sold at any station”
Railway has subsidised 85% and State Govts pay rest 15% (like Madhya Pradesh is)
Migrants DON’T pay!
Why doesn’t Sonia ask Congress state Govts to pay? pic.twitter.com/HvTBFKvIlN
ये भी तथ्य सामने आ रहे हैं कि अगर ये सुविधा निःशुल्क होती तो नियंत्रण के बिना सभी लोग रेलवे स्टेशन पहुंच जाते, ट्रेनों में बड़ी संख्या में घुसकर लोग बिना सोशल डिस्टेंसिंग किये और असावधानीपूर्वक यात्रा करते। किसी भी राज्य के लिए स्टेशनों पर भगदड़ को नियंत्रित करना असंभव हो जाता। इस स्थिति में राज्य सरकारों के लिए ये सुनिश्चित करना भी मुश्किल हो जाता कि वास्तव में इन ट्रेनों में प्रवासी मजदूर ही यात्रा कर रहे हैं। पूरी प्रक्रिया नियंत्रण से चले और मुसीबत में फंसे लोगों को उनके गांव तक पहुंचाया जा सके इसलिए ज़रूरी है कि यात्रा पर अंकुश और अनुशासन रहे।
सोशल मीडिया पर वायरल टिकट का सच
रेलवे का टिकट लगातार सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है और ये दावा कर सरकार को कोसा जा रहा है कि संकट कि इस घड़ी में सरकार मजलूम मजदूरों से पैसे वसूल रही है। बीजेपी नेता संबित पात्रा ने स्पष्ट करते हुए कहा कि कुछ ने टिकट पोस्ट किए हैं और स्पष्टीकरण पूछा है कि यदि टिकट नहीं बिके हैं तो क्या है!
प्रत्येक श्रमिक एक्सप्रेस के लिए गंतव्य के लिए लगभग 1200 टिकट रेलवे द्वारा राज्य सरकार को दिए जाते हैं। यात्रियों को टिकट सुपुर्द कर राज्य सरकारों को इनका खर्च वहन करना है।
Some have posted tickets & asked clarification that if tickets are not sold then what’s this!
— Sambit Patra (@sambitswaraj) May 4, 2020
For each Shramik Express about 1200 tickets to the destination are handed by the Railways to State Govt.
State govts are supposed to clear the ticket price & hand over tickets to workers https://t.co/Axtmen5nY9 pic.twitter.com/kTUWThmeP3
मुंबई में रेलवे को दो जोन CR (मध्य) और WR (पश्चिमी) हैं। पश्चिमी क्षेत्र में गुजरात और अन्य राज्य आते हैं लेकिन पश्चिमी विशेष रूप से मुंबई है। महाराष्ट्र कांग्रेस गठबंधन शासित प्रदेश है और साथ ही एकमात्र ऐसा राज्य भी जहां यात्रियों को किराया शुल्क खुद ही भुगतान करना पड़ रहा है।
भारतीय रेलवे द्वारा 02/05/20 तक प्रेषण की गई 15 श्रमिक विशेष ट्रेनों के लिए निम्नलिखित भुगतान मॉडल इस प्रकार है:-
- उत्तर पश्चिम रेलवे (NWR) - 1 ट्रेन का उद्गम राज्य (जिस राज्य से ट्रेन चली है) द्वारा भुगतान)।
- पश्चिम मध्य रेलवे (WCR) - 2 ट्रेनों का गंतव्य राज्य ( जिस राज्य के लिए चली है) द्वारा भुगतान।
- दक्षिण मध्य रेलवे (SCR) - 1 ट्रेन का उद्गम राज्य (जिस राज्य से ट्रेन चली है) द्वारा भुगतान।
- मध्य रेलवे (CR) - 3 ट्रेनों का भुगतान राज्य के माध्यम से यात्रियों द्वारा किया गया।
- दक्षिण रेलवे (SR) - 6 ट्रेनों में से 3 ट्रेनों का उद्गम राज्य (जिस राज्य से ट्रेन चली है) द्वारा भुगतान कर दिया गया।
- पश्चिम रेलवे (WR) - 2 ट्रेनों का उद्गम राज्य के माध्यम से एनजीओ ने भुगतान किया।
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