'संस्कृति संवाद श्रृंखला-16' के अंतर्गत आचार्य निशांतकेतु से संबद्ध राष्ट्रीय ई-संगोष्ठी संपन्न

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वरिष्ठ साहित्यकार आचार्य निशांतकेतु को एक लाख की राशि सहित श्रेष्ठ हिंदी साहित्य लेखन सम्मान नारायणी साहित्य अकादमी, भारत द्वारा उनके आवास 'शब्दाश्रम', गुरुग्राम, हरियाणा में प्रदान किया गया।

आचार्य निशांतकेतु के 87वें जन्मदिवस पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 'संस्कृति संवाद शृंखला-16' में मंगलवार 23 मार्च को 'निशांतकेतु के व्यक्तित्व और रचनाधर्मिता' पर दो सत्रों में राष्ट्रीय ई-संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत द्वारा आचार्य जी की पुस्तक 'आचार्य निशांतकेतु की चयनित कहानियाँ' का लोकार्पण इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष श्री रामबहादुर राय, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के अध्यक्ष प्रो. गोविंद शर्मा, बी.पी.एस. सी. के सदस्य प्रो. अरुण कुमार भगत और अन्य गण्यमान्य हस्तियों ने किया। 

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आज ही वरिष्ठ साहित्यकार आचार्य निशांतकेतु को एक लाख की राशि सहित श्रेष्ठ हिंदी साहित्य लेखन सम्मान नारायणी साहित्य अकादमी, भारत द्वारा उनके आवास 'शब्दाश्रम', गुरुग्राम, हरियाणा में प्रदान किया गया। इस राष्ट्रीय ई-संगोष्ठी में देश के लब्धप्रतिष्ठ विद्वानों ने आचार्य निशांतकेतु के व्यक्तित्व और रचनाधर्मिता पर अपने विचार रखे। 'निशांतकेतु का व्यक्तित्व और रचनाधर्मिता' विषयक प्रथम सत्र में अतिथियों का स्वागत एवं विषय-प्रवर्तन करते हुए वरिष्ठ लेखक एवं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य-सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने आचार्य निशांतकेतु के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वे अपने अध्यापकीय जीवन में 'पूर्ण शिक्षक' थे, जो पटना विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिंदी-विषय के पाठ्यक्रम के आठों पत्रों को पढ़ाने में निष्णात थे।

इस सत्र के विशिष्ट वक्ता बी.पी.एस.सी. के सदस्य और वरिष्ठ मीडिया प्राध्यापक प्रो. अरुण कुमार भगत ने कहा कि आचार्य निशांतकेतु ने दशकों तक समाज का साहित्यपूजन किया है। आचार्य जी न केवल सुप्रसिद्ध निबंधकार हैं, बल्कि एक समृद्ध संपादक और बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं। उन्होंने साहित्य के साथ-साथ धर्म, अध्यात्म, योग और तंत्र विधा पर भी लेखन किया है। आचार्य जी अपनी विशिष्ट विश्लेषण शैली और उत्तम उच्चारण शैली के लिए जाने जाते हैं। प्रो. भगत ने इस सारस्वत अनुष्ठान में इस बात के लिए आश्वस्त किया कि आनेवाले समय में आचार्य जी के लेखन का अमृतोत्सव मनाया जाएगा।

कार्यक्रम की मुख्य वक्ता दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी की प्राध्यापिका तथा हिंदी कार्यान्वयन निदेशालय, दिल्ली की निदेशक और वरिष्ठ समीक्षक प्रो. कुमुद शर्मा ने आचार्य निशांतकेतु के साहित्यिक जीवन के साथ-साथ उनके ज्योतिष ज्ञान पर भी प्रकाश डालते हुए कहा कि आचार्य जी ने बड़े मनोयोग से समस्त विषयों पर लेखन किया है। प्रो. शर्मा ने आचार्य जी के बारे में बताते हुए कहा कि वे दूसरे साहित्यकारों से विपरीत साहित्य को लेकर आश्वस्त हैं, क्योंकि वे मानते हैं कि भले ही आज साहित्य पीछे है और राजनीति आगे, पर आगे ऐसा समय आएगा, जब साहित्य आगे होगा और राजनीति पीछे। 

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कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत के अध्यक्ष प्रो. गोविंद शर्मा ने कहा कि वैष्णव परिवार से होने के कारण आचार्य जी का जीवन और चिंतन काफी कुछ सात्त्विक प्रवृत्ति का है, जो इनके लेखन में भी अभिव्यक्त होता है। उन्होंने कहानी के संबंध में आचार्य जी की उक्ति का उल्लेख करते हुए कहा कि कहानी कभी पुरानी या नई नहीं होती, कहानी कहानी होती है। प्रोफेसर शर्मा ने एन.बी.टी. द्वारा प्रकाशित पुस्तक 'आचार्य निशांतकेतु की चयनित कहानियाँ' पर अपनी प्रसन्नता व्यक्त की और उन्हें जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ संप्रेषित कीं।

मुख्य वक्ता वरिष्ठ समीक्षक और प्रेमचंद-विशेषज्ञ डॉ. कमल किशोर गोयनका ने कहा कि जैसे भारतीय ऋषि बिना कोई चिंता किए अपनी साधना और तपस्या से समाज की सेवा करते थे, ठीक वैसे ही आचार्य निशांतकेतु ने भी अपनी साहित्य-साधना से समाज को बहुत कुछ दिया है। वे भारतीय मेधा के प्रतीक साहित्यकार हैं। डॉक्टर गोयनका ने कहा कि निशांतकेतु के व्यक्तित्व में कुछ-न-कुछ असाधारणता है- यह निजी स्वभाव की है, गुणों की है, जीवन जीने की शैली की है और सबसे बड़ी रचनात्मकता की है। उनमें शृंगार और वैराग्य, भोग और समाधि तथा काम और निष्काम का अद्भुत जीवन-दर्शन है।

वहीं विशिष्ट अतिथि के रूप में अपना सान्निध्य दे रहे वरिष्ठ साहित्यकार और बी.एन. मंडल वि.वि., मधेपुरा के पूर्व कुलपति डॉ. अमरनाथ सिन्हा ने कहा कि मैं चंद्रकिशोर पांडेय उर्फ आचार्य निशांतकेतु को 1959 से जाननेवाला यहाँ एकमात्र व्यक्ति हूँ, जिनके व्यक्तित्व का बुनियादी तत्त्व विद्रोह है। जिन्होंने कभी गलत से समझौता नहीं किया, अपितु इस स्वभाव की वजह से चंद्रकिशोर को बहुत कुछ भोगना पड़ा, कष्ट झेलना पड़ा, पर वो विद्रोह का स्वर ऊँचा करते रहे। उन्होंने कहा कि यह विद्रोह का स्वर उनकी रचनाओं में भी।

इस अवसर पर अपने उद्गार में आचार्य निशांतकेतु ने आयोजकों के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हुए कहा कि रामनवमी और कृष्ण जन्माष्टमी के माध्यम से भारतीय संस्कृति में जन्मदिन मनाने की परंपरा रही है। उसके निर्वहण के लिए उन्होंने श्री राम बहादुर राय, उपस्थित वक्ताओं और श्रोताओं के प्रति स्वस्ति कामना की। 

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कार्यक्रम के प्रथम सत्र की अध्यक्षता कर रहे इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, नई दिल्ली के अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार श्री राम बहादुर राय ने आचार्य जी के अभिनंदन-ग्रंथ 'सचल तीर्थ वागर्थ' में प्रकाशित आचार्य निशांतकेतु की शोधपूर्ण जीवनी के लिए डाॅ. शीला दहिया और डॉ. अशोक कुमार ज्योति को बधाई दी। श्री राय ने आचार्य जी की एक पंक्ति 'परिवार एक लघुतम लोकतंत्र है' का उल्लेख करते हुए उनके जीवन के दर्शन को रेखांकित किया। उनके लेखन और विचारों पर प्रकाश डालते हुए उन्हें सूर्य की संतान की उपमा दी। उन्होंने आपातकाल के दौरान आचार्य जी की सक्रिय भूमिका का भी उल्लेख किया। श्री राय ने सन् 1972 से उनके साथ आत्मीय संबंधों के अनेक उज्ज्वल पक्षों का उल्लेख किया।

प्रथम सत्र का सफल संचालन 'कमल-संदेश' के सह-संपादक और हिंदी एवं मैथिली के युवा लेखक श्री संजीव सिन्हा ने किया। द्वितीय सत्र में 'आचार्य निशांतकेतु के काव्य एवं कथा-साहित्य' पर वक्ता के रूप में बोलते हुए काशी हिंदू विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक डॉ. अजीत कुमार पुरी ने आचार्य जी के लेखन को अपने समय से दशकों आगे का बताया। उनकी कहानी 'कला और कलाकार', जो उन्होंने 1989 में लिखी थी, जिसमें सुलोचना नाम की पात्र घर-घर जाकर सामान बेचती है और इस कड़ी में उसके मन में भाव पनपते हैं कि एक ही व्यक्ति के साथ रहने में क्या है! जिसके बाद वह अपने पति से अलग हो जाती है। उस समय लिखी गई यह कहानी वर्तमान में प्रासंगिक जान पड़ती है। इसके साथ ही डाॅक्टर पुरी ने कहा कि 'खानदानी कुत्ते', 'बक्खो', 'शवयात्रा' इत्यादि कहानियों के माध्यम से निशांतकेतु जी ने समाज-जीवन की वास्तविकता से हमें परिचित करवाया है। इनकी कहानियाँ वर्तमान में बहुत महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में इसे पर्याप्त स्थान मिलना चाहिए, जो कि अभी तक किसी कारणवश नहीं मिल पाया।

मुख्य वक्ता के रूप में वरिष्ठ समीक्षक डॉ. अवनिजेश अवस्थी ने आचार्य जी के व्यापक रचनाक्षेत्र का उदाहरण देते हुए कहानी 'चंदा हजामिन' पर चर्चा की। साथ ही कहानी 'खुदकुशी' का उल्लेख करते हुए कहा कि इनकी कहानियों का अंत अप्रत्याशित होता है। आचार्य निशांतकेतु हमारे दिए गए किसी भी मनगढ़ंत साँचे से अलग हैं। निशांतकेतु किसी आंदोलन के कहानीकार नहीं हैं, बल्कि एक ऐसे रचनाकार हैं, जिनका रचनाक्षेत्र बहुत व्यापक है। इनकी कहानियाँ 'चंदा हजामिन', 'शवयात्रा', 'गुलेलची' इत्यादि अपने आपमें बहुत ही उत्कृष्ट रचना है। डॉक्टर अवस्थी ने कहा कि निशांतकेतु जी की कहानियाँ पठनीय हैं, जिन्हें पढ़ने में कहीं भी बोरियत की अनुभूति नहीं होती है।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग में सहायक प्राध्यापक और आचार्य जी की कहानियों पर शोध-कार्य कर पीएच्.डी. की उपाधि प्राप्त डॉ. अशोक कुमार ज्योति ने आचार्य जी की कहानी 'कदली-वन' पर चर्चा कर उनकी कहानियों के दलित पात्रों के सौंदर्य से सबका परिचय कराया। उन्होंने कहा कि आचार्य निशांतकेतु ने अपने लेखन में जिन-जिन आयामों का उपयोग किया है, उन सभी विधाओं पर बातचीत करना अपने आपमें एक बड़ा विषय है। सन् 1959 में इनकी पहली कहानी 'मंथन' पटना से प्रकाशित प्रतिष्ठित समाचार-पत्र 'नवराष्ट्र' के प्रथम पृष्ठ पर छपी थी। उन्होंने 'पलटू पहाड़ी', 'नट्टिन', 'जयपत पासी', 'गुलेलची', 'दर्द का दायरा', 'अंधघाटी के टीले' इत्यादि कहानियों के पात्रों के वैशिष्ट्य का उल्लेख किया। आचार्य जी की मेधा, स्मृति और उनकी ज्ञान-शक्ति का स्मरण करते हुए वे भावुक भी हो गए। 

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दूसरे सत्र को अपना सान्निध्य दे रहे पटना विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी-विभागाध्यक्ष, वरिष्ठ साहित्यकार एवं समीक्षक प्रो. बलराम तिवारी ने कहा कि आचार्य जी शिक्षक और लेखक दोनों ही रूपों में महान् हैं। उन्होंने कई विधाओं को आजमाया, उनमें लिखा। वे किसी एक विधा में बँधकर नहीं रहे। उन्होंने साहित्य के, भाषा के हर रंग को, हर तेवर को ठीक से जाना और उसे व्यक्त किया। उन्होंने अपने जीवन-काल के उत्तरार्द्ध में बहुत अधिक लिखा, क्योंकि उनके पारिवारिक जीवन में एक 'भूचाल' आया और उनका लेखन इस विरेचन का माध्यम बना, निराला की भाँति। उन्होंने जीवन के गहरे अनुभवों को साहित्य में उतारा है। उनकी रचनाओं में परस्पर विरुद्धों का सामंजस्य दिखता है। प्रो. तिवारी ने आगे कहा कि आचार्य जी के जीये गए जीवन और लिखे गए जीवन में बहुत अंतर नहीं दिखता। बड़े रचनाकार में दोनों में एकत्व भाव दिखता है। इन अर्थों में वे बड़े रचनाकार ठहरते हैं।

मुख्य वक्ता पटना के वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. कैलाश प्रसाद सिंह 'स्वच्छंद' ने कहा कि 87 वर्ष की उम्र में शारीरिक रूप से बीमार होते हुए भी आचार्य जी का साहित्य-सर्जन कमाल का है। आचार्य निशांतकेतु का व्यक्तित्व विशाल है। उनकी काव्य-क्षमता अद्भुत है। इन्होंने अपने जीवन एवं जीवनानुभूति को अपने काव्य में पिरोया। इनकी कविताओं में 'तारीख' नामक कविता प्रसिद्ध है। जीवन के लाखों झंझावातों के बावजूद उनकी साधना की दीपशिखा जलती रही। उन्होंने 'हमसुखन' कविता का विशेष उल्लेख किया।

दूसरे सत्र की अध्यक्षता कर रहे भोपाल के वरिष्ठ लेखक एवं विचारक डॉ. देवेंद्र दीपक ने कहा कि आचार्य जी की लेखनी को जनसामान्य तक पहुँचाने का दायित्व हमारा है। उन्होंने कहा कि आचार्य निशांतकेतु भारतीय भाषा, सभ्यता, संस्कृति की 'दुधारू गाय' हैं, जो निरंतर अपनी लेखनी से अमृत देते जा रहे हैं। उन्होंने आचार्य निशांतकेतु को महाकाव्यात्मक चेतना से संपन्न रचनाकार कहा। साथ ही यह भी कहा कि यह रचनात्मकता उनके विराट् चिंतन से पोषित होती है। उन्होंने आचार्य जी को 'श्लका पुरुष' बताते हुए कहा कि वे मुझसे दो वर्ष छोटे हैं, पर लेखन में मुझसे बड़े हैं। उन्होंने कहा कि निशांतकेतु उपसर्ग भी हैं और प्रत्यय भी। यह स्थापना जीवन से जुड़ी है। यह गुण-सूत्र है। जीवन में हम कभी उपसर्ग की भूमिका में होते हैं, कभी प्रत्यय की।

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य-सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कार्यक्रम के औपचारिक समापन की घोषणा की और सबका आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम के दूसरे सत्र का सफल संचालन शिवाजी काॅलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी-विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. दर्शन पांडेय ने किया। 

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ज्ञात हो कि आचार्य निशांतकेतु मूलतः कवि और कथाकार हैं। आपके चिंतन और लेखन में लोक, शास्त्र, समाज, साहित्य, संस्कृति इत्यादि अनेक सामान्य और गूढ़ विषय समाहित होते हैं। शास्त्रीय परंपरा के मनीषी विद्वान् आचार्य निशांतकेतु संस्कृत, बँगला, तेलुगु और अँगरेजी के अच्छे जानकार हैं। कविता, कहानी, उपन्यास, लघुकथा, समालोचना, निब॔ध, संस्मरण, कोश, योग एवं अध्यात्म, भाषाविज्ञान, साक्षात्कार इत्यादि विधाओं में उनकी लगभग 150 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हैं। उन्होंने 'साहित्य', 'चक्रवाक्' जैसी अनेक महत्त्वपूर्ण साहित्यिक पत्रिकाओं तथा अनेक स्मारिकाओं का संपादन किया है। आप कई साहित्यिक, सामाजिक सम्मानों से सम्मानित हो चुके हैं। जिनमें मुख्य हैं, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का 'साहित्य भूषण सम्मान', बिहार सरकार के राजभाषा विभाग के द्वारा 'वर्तनी व्याकरण और भाषा तत्त्व' पुस्तक पर भाषा के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए 'अयोध्या प्रसाद खत्री पुरस्कार' के रूप में 5,000 रुपए और प्रशस्ति-पत्र, विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ भागलपुर द्वारा 'विद्यासागर' की उपाधि, महाराष्ट्र दलित साहित्य अकादमी, भुसावल द्वारा 'प्रेमचंद लेखक पुरस्कार' तथा 'बीसवीं शताब्दी उत्तम नागरिक पुरस्कार' भी प्रदान किए गए हैं।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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