Prajatantra: मोदी, योगी और श्री राम, चर्चा में ये तीन नाम, विपक्ष का कहां है ध्यान
राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह की तैयारी फिलहाल जोरों पर चल रही है। यही कारण है कि भाजपा कार्यकर्ताओं में जबरदस्त उत्साह है। इसके अलावा विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, आरएसएस के कार्यकर्ता भी इस समारोह को सफल बनाने में लगे हुए हैं।
आजादी के बाद से देश की राजनीति के केंद्र में रहे राम मंदिर का मुद्दा अब कहीं ना कहीं खत्म होने के मुहाने पर खड़ा है। 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा समारोह होना है। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल होंगे। इसके अलावा इस कार्यक्रम के लिए देश और विदेश के कई गणमान्य अतिथियों को निमंत्रित किया गया है। कुल मिलाकर देखें तो राम मंदिर को लेकर राजनीति भी जबरदस्त तरीके से तेज है। साथ ही साथ चर्चाओं के केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राम मंदिर है। राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह की तैयारी फिलहाल जोरों पर चल रही है। यही कारण है कि भाजपा कार्यकर्ताओं में जबरदस्त उत्साह है। इसके अलावा विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, आरएसएस के कार्यकर्ता भी इस समारोह को सफल बनाने में लगे हुए हैं।
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श्री राम मंदिर की चर्चा
2019 में जब सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ किया तब से भगवान के भक्तों की खुशी की कोई सीमा नहीं है। भक्तों के बरसों की मेहनत रंग लाती दिखाई दे रही है। टेंट से निकल कर भगवान राम महलों में विराजमान होने वाले हैं। इस पल को देखने के लिए ना जाने कितने लोगों ने अपनी कुर्बानियां दे दी। लगभग 500 वर्षों के संघर्ष के बाद आज यह पूर्ण होता दिखाई दे रहा है। भगवान राम के जरिए एक बार फिर से देश में रामराज्य की स्थापना होती हुई दिखाई दे रही है। अयोध्या भगवान राम का जन्म स्थान है। यह 1949 में भगवान राम विराजमान हुए थे और तब से धर्म के साथ-साथ यह राजनीति का केंद्र बना हुआ था। जैसे-जैसे प्राण प्रतिष्ठा का दिन नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे राम मंदिर और भगवान राम के चर्चाएं भी खूब हो रही है। देशभर के राम मंदिरों में उत्साह है। देश के कोने-कोने में 22 जनवरी को विशेष रूप से मनाने की भी तैयारी की जा रही है। देश का मौहाल पूरी तरह से भक्तिमय है।
मोदी और योगी
इसमें कोई दो राय नहीं है कि राम मंदिर का निर्माण भाजपा के एजेंडे में शुरू से रहा है। भाजपा के अलावा आरएसएस, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल ने राम मंदिर के लिए वर्षों तक संघर्ष किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ही कार्यकाल में राम मंदिर को लेकर सुनवाई में तेजी देखी गई और सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला भी सुनाया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ही मोदी सरकार ने ट्रस्ट बनाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 अगस्त 2020 को मंदिर का शिलान्यास किया था और अब वह 22 जनवरी को इसका उद्घाटन भी करेंगे। वही, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद संत समाज से आते हैं। अयोध्या के लिए उनके गुरुजनों ने भी संघर्ष किया है। अयोध्या के विकास को लेकर योगी ने लगातार अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मंदिर निर्माण को लेकर राज्य सरकार की ओर से कई बड़े फैसले भी लिए गए हैं। साथ ही साथ अयोध्या का विकास अपने चरम पर है। यही कारण है कि मोदी और योगी का नाम इस दौर में सबसे ज्यादा चर्चा में है।
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विपक्ष में असमंजस
अयोध्या की बात करें तो कहीं ना कहीं कांग्रेस लगातार न्यूट्रल रुख अपनाती रही है। वहीं, मुलायम सिंह यादव और लालू यादव ने 90 के दौर में मंदिर आंदोलन के सामने दीवार बनकर खड़े रहे। वर्तमान की बात करें तो लगभग सभी बड़े राजनीतिक दलों को प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए निमंत्रण भेजा गया है। हालांकि, लगभग सभी विपक्षी दलों ने 22 जनवरी को समारोह से दूरी बनाने का फैसला किया है। वाम दलों ने कहा कि वह धार्मिक चीजों से दूर रहते हैं। जबकि कांग्रेस ने इसे भाजपा और संघ का कार्यक्रम बातकर किनारे कर लिया। अखिलेश यादव जैसे नेताओं ने कहा कि राम सभी के हैं और जब वह मुझे बुलाएंगे तभी मैं जाऊंगा। कुल मिलाकर देखें तो सॉफ्ट हिंदुत्व की जगह लगभग ज्यादातर विपक्षी नेता इस वक्त धर्मनिरपेक्षता वाली राजनीति करते दिखाई दे रहे हैं। साथ ही साथ उनसे मुस्लिम वोट ना छिटक जाए, इसलिए भी वह फूंक फूंक कर कदम रख रहे हैं। विपक्षी दलों को इस बात की भी आशंका है कि अगर वह इस समारोह में शामिल होते हैं तो भाजपा इसका क्रेडिट लेगी और दावा करेगी कि हमने उन्हें मंदिर आने पर मजबूर कर दिया। हालांकि, ज्यादातर पार्टी नेता दावा कर रहे हैं कि वह 22 को नहीं लेकिन उससे पहले या उसके बाद अयोध्या जरूर जाएंगे।
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