Prajatantra: ताला खुलवाने का दम भरने वाली कांग्रेस अयोध्या से क्यों बना रही दूरी, जानें इनसाइड स्टोरी

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ANI
अंकित सिंह । Jan 11 2024 2:10PM

अब बड़ा सवाल यही है कि जो कांग्रेस राम मंदिर का ताला खुलवाने का दावा करती है, उसी ने मंदिर उद्घाटन का न्योता क्यों ठुकरा दिया है? यह बात भी सच है कि कांग्रेस निमंत्रण को लेकर असमंजस की स्थिति में नजर आ रही थी। आखिरकार 21 दिनों के बाद उसने सार्वजनिक के रूप से अयोध्या ना जाने का ऐलान कर ही दिया।

22 जनवरी को राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह होना है। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल होने वाले हैं। इस समारोह के लिए विभिन्न व्यक्तियों को निमंत्रण दिया गया है। इसमें राजनीतिक दलों के नेताओं को भी शामिल किया गया है। कांग्रेस के तीन नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी और अधीर रंजन चौधरी को इस समारोह में भाग लेने के लिए निमंत्रण भेजा गया था। हालांकि, कांग्रेस की ओर से इसे भाजपा और आरएसएस का कार्यक्रम बताकर निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया गया है। अब बड़ा सवाल यही है कि जो कांग्रेस राम मंदिर का ताला खुलवाने का दावा करती है, उसी ने मंदिर उद्घाटन का न्योता क्यों ठुकरा दिया है? यह बात भी सच है कि कांग्रेस निमंत्रण को लेकर असमंजस की स्थिति में नजर आ रही थी। आखिरकार 21 दिनों के बाद उसने सार्वजनिक के रूप से अयोध्या ना जाने का ऐलान कर ही दिया। 

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कांग्रेस ने नहीं जाने के क्या कारण बताए

एक बयान में कहा गया कि पिछले महीने, कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी और लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी को 22 जनवरी, 2024 को अयोध्या में होने वाले राम मंदिर के उद्घाटन समारोह में शामिल होने का निमंत्रण मिला। इसमें कहा गया है कि हमारे देश में लाखों लोग भगवान राम की पूजा करते हैं। धर्म एक निजी मामला है। लेकिन आरएसएस/बीजेपी ने लंबे समय से अयोध्या में मंदिर का राजनीतिक प्रोजेक्ट बनाया है। भाजपा और आरएसएस के नेताओं द्वारा अधूरे मंदिर का उद्घाटन स्पष्ट रूप से चुनावी लाभ के लिए किया गया है। 2019 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन करते हुए और भगवान राम का सम्मान करने वाले लाखों लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए, मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी और अधीर रंजन चौधरी ने स्पष्ट रूप से आरएसएस/भाजपा कार्यक्रम के निमंत्रण को सम्मानपूर्वक अस्वीकार कर दिया है। जिन नेताओं ने पहले ही इस कार्यक्रम में भाग नहीं लेने का ऐलान किया है उनमें अखिलेश यादव, ममता बनर्जी, वृंदा करात, सीताराम येचुरी भी शामिल हैं।

कांग्रेस के इंकार की इनसाइड स्टोरी

कांग्रेस ने धर्म को एक निजी मसला बताकर कार्यक्रम से खुद को किनारा कर लिया। साथ ही साथ कांग्रेस की ओर से पूरे कार्यक्रम को भाजपा और आरएसएस का बताया गया। कांग्रेस किसी भी कीमत पर यह नहीं दिखाना चाहती कि वह भाजपा या आरएसएस के कदमों पर चल सकती है। कांग्रेस ने अयोध्या जाने से इनकार कर भाजपा के एजेंडे में ना फंसा जाए, इसको सुनिश्चित करने की कोशिश की है। भाजपा चुनाव के दौरान राम मंदिर के मुद्दे को जबरदस्त तरीके से भुनाएगी और कांग्रेस के खिलाफ हिंदू विरोधी होने का प्रचार करेगी। ऐसे में खुद को कांग्रेस ने धर्मनिरपेक्ष रखना ही जरूरी समझा है। कांग्रेस को लगता है कि अगर उनके नेता अयोध्या जाते तो भाजपा घेरती और मंदिर आने के लिए मजबूर करने का दम भी भरती। 

मुस्लिम वोट का खेल

देश में मुस्लिम वोटर की संख्या लगभग 15% से ज्यादा है। वर्तमान में देखें तो कांग्रेस मुस्लिम वोटो पर अपनी पैनी नजर रखे हुए है। अगर कांग्रेस के नेता अयोध्या जाते तो मुस्लिम वोट छिटकने का डर होता। कांग्रेस नरम हिंदुत्व का रुख कर हिंदू वोटो को अपने पाले में कर सकती है। लेकिन अयोध्या जाने के साथ मुस्लिम वोट छिटकने का पार्टी को जबरदस्त तरीके से डर थी। अयोध्या ना जाकर कांग्रेस की ओर से मुस्लिम तुष्टिकरण की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। मुसलमानों के नजर में कांग्रेस उनकी हितैषी बनी रहेगी जिसका उसे चुनाव में भी लाभ मिल सकता है।

नरम हिंदुत्व

कांग्रेस लगातार नरम हिंदुत्व के रास्ते को अपनाने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस का साफ तौर पर कहना है कि राम सबके हैं और आधे अधूरे मंदिर का उद्घाटन करना गलत है। यह भाजपा चुनावी लाभ के लिए कर रही है। 90 के दशक में कांग्रेस बातचीत के जरिए राम मंदिर निर्माण के रास्ते को निकालने की पक्षधर थी। कोर्ट के फैसले के बाद मंदिर का निर्माण हो रहा है। ऐसे में उसे इसमें शामिल होना चाहिए था। लेकिन कांग्रेस खुद को हार्डकोर हिंदुत्व से दूर रखना चाहती है। इसके अलावा अयोध्या जाने से कांग्रेस को दक्षिण भारत में नुकसान उठाना पड़ सकता है। केरल की कांग्रेस इकाई पहले ही आलाकमान को अयोध्या नहीं जाने की बात कह चुका है। कर्नाटक, तेलंगाना, केरल में नुकसान की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने अयोध्या से दूरी बनाई। 

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एक कारण यह भी 

कांग्रेस लगातार राम मंदिर का ताला खुलवाने का श्रेय राजीव गांधी को देती है। 1986 में पहली बार राम मंदिर का ताला खुला था। राजीव गांधी ने विश्व हिंदू परिषद को शिलान्यास की अनुमति भी दे दी थी। इतना ही नहीं, राजीव गांधी के ही कहने पर दूरदर्शन पर रामानंद सागर का रामायण सीरियल का प्रसारण कराया गया था। राजीव गांधी ने रामराज्य चलाने का वादा भी किया था। बावजूद इसके कांग्रेस को इसका सियासी लाभ नहीं मिल सका। अयोध्या से दूरी बनाकर कांग्रेस ने साफ दिखा दिया कि वह किसी भी भाजपा के एजेंड़े में नहीं फंसने वाली है। साथ ही साथ यह भी बताने की कोशिश की है कि वह इंडिया गठबंधन के अपने सहयोगी दलों के साथ खड़ी है। 

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