कोविड-19 से जुड़ी खबरों के सभी तथ्य और जानकारियां सामने लाए मीडिया - उमेश उपाध्याय

Umesh Upadhyay
दिनेश शुक्ल । Jun 6 2020 8:01PM

कोविड-19 के दौर में घटी कई तरह की घटनाओं जैसे तबलीगी जमात से जुड़े मुद्दों आदि को मीडिया ने अच्छे ढंग से प्रस्तुत नहीं किया। कई मुद्दों के सही तथ्य समाज के सामने नहीं आ सके और बेकार की बातों को तूल दिया गया, जिसकी जरूरत नहीं थी।

भोपाल। वरिष्ठ पत्रकार उमेश उपाध्याय ने फेसबुक लाइव के माध्यम से ‘कोविड-19 की चुनौतियाँ और मीडिया’ विषय पर अपने विचार रखते हुए कहा कि कोविड-19 का यह समय संघर्ष का दौर है, इसमें भारत के लोगों, चिकित्सकों, प्रशासन और मीडिया इत्यादि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कोरोना काल में भारत की स्थिति तुलनात्मक दृष्टि से अन्य देशों से बहुत अच्छी है लेकिन हम वसुधैव कुटुम्बकम का भाव रखते हैं इसलिए पूरे विश्व के दुःख में शामिल हैं। उपाध्याय माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की ओर से आयोजत 'हिन्दी पत्रकारिता सप्ताह' के समापन सत्र को संबोधित कर रहे थे। इस साथ दिवसीय आयोजन का शुभारम्भ हिन्दी पत्रकारिता दिवस के अवसर पर मध्यप्रदेश के माननीय राज्यपाल लालजी टंडन ने किया था।

 

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रिलायंस इंडस्ट्रीज के मीडिया निदेशक एवं प्रेसिडेंट उमेश उपाध्याय ने कहा कि मीडिया का एक खास वर्ग भी कोविड-19 के समय में चुनौती बनकर सामने आया है। यह खास वर्ग अपने निर्धारित प्रोपोगंडा के तहत भारत के विषय में विचित्र भविष्यवाणी कर रहा है। इन भविष्यवाणियों में कोई तथ्य नहीं है लेकिन भारत के इतिहास में हुईं दूसरी महामारियों के दुष्प्रभाव के आधार पर इस प्रकार की अनर्गल बातें कही और लिखी जा रही हैं। मीडिया के एक वर्ग ने भारत के प्रति अपना नजरिया पहले से तय कर रखा है। जब भी हम कुछ नया और अलग करते हैं तो वह अचंभित रह जाते हैं। जब भारत में चंद्रयान का प्रक्षेपण किया उस समय न्यूयॉर्क टाइम्स द्वारा अपनी एक रिपोर्ट के लिए माफी मांगना इस बात का सबूत भी है।

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दुनिया के कई विकसित देश के पत्रकार और चर्चित मैगजीन/अखबार अपने देश में कोरोना के कारण उपजी समस्याओं को नजरअंदाज कर, भारत में इससे होने वाले प्रभाव का अंदाजमार आकलन कर रहे हैं और इस आकलन को वह अपने पूर्व निर्धारित नरेटिव के हिसाब से चला रहे हैं। कुछ अखबारों का उल्लेख करते हुए उपाध्याय ने बताया कि 'द गार्डियन' अखबार ने भारत में 1918 के स्पेन फ्लू के दुष्प्रभाव की तुलना कोरोना वायरस से की है। पहले तो अखबार ने यह छापा कि जैसी स्थिति 1918 में हुई थी कोरोना के कारण वैसी ही स्थिति भारत में दोबारा उत्पन्न होगी। इसके बाद अगली रिपोर्ट में लिखा जाता है कि भारत में संक्रमण के जो आंकड़े आए हैं उन आंकड़ों पर संदेह है। जबकि इसके बाद अगली ही रिपोर्ट में दावा किया जाता है कि भारत में 15 मई तक 13 लाख से अधिक कोरोना वायरस के मामले आएंगे। इन सब खबरों से हम समझ सकते हैं कि इस दौर में एक खास वर्ग के कारण कितनी चुनौतीपूर्ण स्थिति उत्पन्न हुई है, जबकि हम देख पा रहे हैं कि इस अखबार की तमाम खबरें झूठी साबित हुई हैं। भारत कोरोना के खिलाफ अपनी जंग में अन्य देशों की अपेक्षा बेहतर स्थिति में है। ऐसी खबरों का वास्तविकता से कोई नाता ही नहीं है, यह केवल भारत के विषय में अपनी पूर्व निर्धारित मानसिकता के तहत प्रचारित की गई थी।

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उन्होंने बताया कि विदेशी मीडिया ने भारत को लेकर एक तस्वीर बना रखी है। वह उसी माइंडसेट के आधार पर समाचार कवरेज करते हैं, जो कि गलत है। ये धारणाएं किस तरह बनी और क्यों, आखिर वे किस नजरिये से भारत को देख रहे हैं, इस पर सोचे जाने की आवश्यकता है। उनके लिए भारत आज भी सपेरों का देश ही है। उन्होंने कहा कि कोविड-19 के दौर में घटी कई तरह की घटनाओं जैसे तबलीगी जमात से जुड़े मुद्दों आदि को  मीडिया ने अच्छे ढंग से प्रस्तुत नहीं किया। कई मुद्दों के सही तथ्य समाज के सामने नहीं आ सके और बेकार की बातों को तूल दिया गया, जिसकी जरूरत नहीं थी। भारत किस तरह से बेहतर ढंग से संघर्ष कर रहा है उन बातों को भी मीडिया में लाया जाना चाहिए। सकारात्मक पक्षों को भी समाज में रखा जाना चाहिए। मीडिया को पक्षपात से बचना चाहिए।

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