Places of Worship Act 1991 के रिव्यू का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, 4 दिसंबर को होगी सुनवाई
कुल छह याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ, डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी, अश्विनी उपाध्याय और जमीयत उलेमा-ए-हिंद की एक याचिका शामिल है। जहां एक समूह ने इस कानून को रद्द करने की मांग की है, वहीं जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने कानून के समर्थन में याचिका दायर की है।
सुप्रीम कोर्ट पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बुधवार, 4 दिसंबर, 2024 को सुनवाई करेगा। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ सुनवाई करेगी। इस मामले में कुल छह याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ, डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी, अश्विनी उपाध्याय और जमीयत उलेमा-ए-हिंद की एक याचिका शामिल है। जहां एक समूह ने इस कानून को रद्द करने की मांग की है, वहीं जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने कानून के समर्थन में याचिका दायर की है।
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हाल ही में निचली अदालत के फैसले के बाद जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखकर जल्द सुनवाई की अपील की थी। यह मामला संभल की ऐतिहासिक शाही जामा मस्जिद में एक कोर्ट कमिश्नर द्वारा किए गए सर्वेक्षण से उपजा है। पूजा स्थल अधिनियम, 1991, जो किसी भी पूजा स्थल के रूपांतरण पर रोक लगाता है और पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को 15 अगस्त, 1947 को बनाए रखने का आदेश देता है, को 2020 में हिंदू याचिकाकर्ताओं द्वारा सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। इसके विपरीत, जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने 2022 में अधिनियम के समर्थन में अपनी याचिका दायर की। सुप्रीम कोर्ट अब इन सभी याचिकाओं पर 4 दिसंबर को एक साथ सुनवाई करेगा।
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पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम पूजा स्थलों के रूपांतरण पर रोक लगाता है और किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को बनाए रखने का प्रावधान करता है, जैसा कि 15 अगस्त, 1947 को मौजूद था। 20 मई, 2022 को शीर्ष अदालत ने वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़े विवाद की सुनवाई के दौरान मौखिक टिप्पणी की और कहा कि पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र का पता लगाना अधिनियम के तहत वर्जित नहीं है।
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