लाला लाजपत राय जी की पुण्यतिथि पर विशेष - धर्मशाला कारागार में भी कैद रहे लाला लाजपत राय, उनकी कुर्सी आज भी है सलामत

Dharamshala Jail

सरकारी दस्तावेजों के मुताबिक धर्मशाला कारागार में स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय को 21 अगस्त 1922 से नौ जनवरी 1923 तक रखा गया था। जेल में जिस कुर्सी पर वे बैठते आज भी इसी कारागार में सलामत है। जिला जेल प्रशासन ने इस कुर्सी को सहेज कर रखा है। जिसे देखने के लिये लोग यहां आते हैं। देश को आजादी दिलाने में कई शूरवीरों ने अपनी जान की भी परवाह नहीं की।

धर्मशाला ।  भारत को आजाद करवाने की अलख जगाने  वाले लाला लाजपत राय की आज   पुण्यतिथि  मनाई जा रही है। उन्होंने हिमाचल प्रदेश में   भी क्रांति का बिगुल फूंक ने में अहम् भूमिका निभाई थी। अंग्रेजी हुकूमत के दौरान वह  हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला  की कारागार में करीब  साढ़े चार माह तक बंदी रहे।  उन दिनों जिला कांगड़ा पंजाब का हिस्सा हुआ करता था।  व पंजाब के कैदियों को धर्मशाला जेल में रखा जाता था।

 

 सरकारी दस्तावेजों के मुताबिक धर्मशाला कारागार में स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय को 21 अगस्त 1922 से नौ जनवरी 1923 तक रखा गया था। जेल में जिस कुर्सी पर वे बैठते आज भी इसी कारागार में सलामत है।  जिला जेल प्रशासन  ने इस कुर्सी को सहेज कर रखा है। जिसे देखने के लिये लोग यहां आते हैं। देश को आजादी दिलाने में कई शूरवीरों ने अपनी जान की भी परवाह नहीं की। ऐसे ही एक वीर थे शेर-ए-पंजाब लाला लाजपत राय। लाला लाजपत राय भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वह महान सेनानी थे, जिन्होंने देश सेवा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी और अपने जीवन का एक-एक कतरा देश के नाम कर दिया। अंग्रेजों की लाठियां खा कर अपनी जान कुर्बान करने वाले अमर शहीद लाला लाजपत राय को  लोग आज भी याद करते हैं।

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कांगड़ा के जिलाधीश सीपी वर्मा ने बताया कि धर्मशाला कारागार में रखी गई कुर्सी को उसी बैरक में रखा गया है, जहां उस समय खुद लाला लाजपत राय रहे थे।   वहीं जेल सुप्रीटेंडेंट सुशील ठाकुर ने कहा कि कारागार में रखी गई यह कुर्सी देश की धरोहर है।  इसे सहेज कर रखने के लिये विशेष इंतजाम किये गये हैं।   इस बैरक को खाली ही रखा जा रहा है। कोई दूसरा कैदी यहां नहीं रखा जाता , बाहर से ताला लगाकर रखा गया है। हम लोग  यहां की नियमित साफ सफाई देखते हैं।

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लाला लाजपत राय सिर्फ स्वतंत्रता सैनानी ही नहीं बल्कि महान समाज सुधारक और समाजसेवी भी थे। यूं तो कांग्रेस हमेशा गांधी जी के नरम सिद्धांतों पर चला लेकिन कांग्रेस में एक दल ऐसा भी था जिसे लोग गरम दल मानते थे और इसी के एक अग्रणी नेता थे लाला लाजपत राय। लाला लाजपत राय गरम मिजाज के भी थे। लेकिन इसके बावजूद भी गांधी वादियों के दिल में उनके लिए अपार स्नेह और सम्मान था। लाला लाजपत राय ऐसे शख्स थे जो गांधीवादियों के साथ-साथ  भगत सिंहऔर चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों के दिल में वास करते थे और यह क्रांतिकारी उनका सम्मान भी करते थे। तभी तो लाला जी की मौत का बदला लेने के लिए  भगत सिंहऔर राजगुरु जैसे क्रांतिकारियों ने अपनी जान लगा दी।

 

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30 अक्टूबर,1928 को इंग्लैंड के प्रसिद्ध वकील सर जान साइमन की अध्यक्षता में एक सात सदस्यीय आयोग लाहौर आया। उसके सभी सदस्य अंग्रेज थे। पूरे भारत में भी इस कमीशन का विरोध हो रहा था। क्योंकि सभी चाहते थे कि साइमन कमीशन में भारतीय प्रतिनिधि भी होना चाहिए। पंजाब में इस कमीशन का विरोध करने वाले दल की अगुवाई लाला लाजपत राय ने की। उनके नेतृत्व में बाल-वृद्ध, नर-नारी हर कोई स्टेशन की तरफ बढ़ते जा रहे थे। अंग्रेजों की निगाह में यह देशभक्तों का गुनाह था। साइमन कमीशन का विरोध करते हुए उन्होंने अंग्रेजों वापस जाओ का नारा दिया तथा कमीशन का डटकर विरोध जताया। इसके जवाब में अंग्रेजों ने उन पर लाठी चार्ज किया अपने ऊपर हुए प्रहार के बाद उन्होंने कहा कि उनके शरीर पर लगी एक-एक लाठी अंग्रेजी साम्राज्य के लिए कफन साबित होगी। उनके बलिदान के बाद कितने ही ऊधम  सिंह  और भगत सिंह  तैयार हुए जिनके प्रयासों से हमें आजादी मिली।

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