बंदरगाहों को भी निजी हाथों में देना चाहती है मोदी सरकार? मेजर पोर्ट अथाॅरिटी बिल से जुड़े तमाम सवालों का जवाब यहां जाने
84 सांसदों ने बिल के पक्ष में वोट डाला और 44 ने बिल के विरोध के खिलाफ। अब ये बिल राष्ट्रपति के पास दस्तखत के लिए जाएगा और नया बिल कानून बनने के बाद भारत के बड़े 12 बंदरगाहों के लिए बोर्ड बनेगा।
संसद से मेजर पोर्ट अथाॅरिटी बिल 2020 पास हो गया। जैसा की अक्सर किसी भी बिल पर चर्चा के वक्त विपक्ष की ओर से सरकार की मंशा और निजीकरण के आरोप-प्रत्यारोप वाला नजारा एक बार फिर संसद में देखने को मिला। बिल को पास कराने के लिए वोटिंग का सहारा लेना पड़ा। विपक्ष ने जहां पोर्ट को निजी हाथों में सौंपने वाला बिल बताते हुए सवाल उठाए वहीं सरकार ने इसके फायदें गिनाए। 84 सांसदों ने बिल के पक्ष में वोट डाला और 44 ने बिल के विरोध के खिलाफ। अब ये बिल राष्ट्रपति के पास दस्तखत के लिए जाएगा और नया बिल कानून बनने के बाद भारत के बड़े 12 बंदरगाहों के लिए बोर्ड बनेगा। ऐसा में कुछ राज्यसभा में हुई पक्ष-विपक्ष की बहस के साथ ही बिल के बारे में जानकारी आपको देते हैं।
सबसे पहले बता दें कि भारत के 12 प्रमुख बंदरगाह हैं-
कांडला बंदरगाह, गुजरात
गुजरात के कच्छ जिले में गांधीधान शहर के निकट कच्छ की खाड़ी में कांडला बंदरगाह स्थित है। कांडला के बंदरगाह को भारत का सबसे अधिक कमाई करने वाला बंदरगाह माना जाता है। गुजरात का दूसरा बंदरगाह है जो कि भारत सरकार का सबसे बड़ा निजी बंदरगाह है।
नवावा शेवा बंदरगाह, महाराष्ट्र
महाराष्ट्र के नवावा शेवा बंदरगाह को जवाहरलाल नेहरू पोर्ट के रूप में जाना जाता है। यह बंदरगाह नवी मुंबई महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में है। यह अंतरराष्ट्रीय कंटेनर यातायात और घरेलू कार्गो यातायात की एक बड़ी मात्रा को संभालता है।
मुंबई बंदरगाह, महाराष्ट्र
भारत के पश्चिमी तट पर मुंबई बंदरगाह स्थित है। इसे भारत का सबसे बड़ा बंदरगाह माना जाता है।
मर्मागाओ बंदरगाह, गोवा
मर्मागाओ बंदरगाह दक्षिण गोवा में स्थित है। मार्मगाओ बंदरगाह भारत के शुरुआती आधुनिक बंदरगाहों में से एक है।
पनमबूर बंदरगाह, कर्नाटक
पनमबूर बंदरगाह को नई मैंगलोर बंदरगाह के रूप में जाना जाता है। पनमबूर कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिले में सुरथकल रेलवे स्टेश के समीप है। ये कर्नाटक का एकमात्र प्रमुख बंदरगाह है।
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कोचीन बंदरगाह, केरल
भारत के बड़े बंदरगाह कोचीन बंदरगाह अरब सागर और हिंद महासागर समुद्र मार्ग पर स्थित प्रमुख बंदरगाह है।
तूतीकोरिन बंदरगाह, तमिलनाडु
तूतीकोरिन बंदरगाह भारत के प्रमुख बंदरगाहों में से एक है। यह तमिलनाडु में दूसरा सबसे बड़ा बंदरगाह है।
मद्रास बंदरगाह, तमिलनाडु
मद्रास बंदरगाह को भारत का सबसे पुराना बंदरगाह माना जाता है। ये बंदरगाह बंगाल की खाड़ी में सबसे बड़ा बंदरगाह है।
विशाखापत्तनम बंदरगाह, आंध्र प्रदेश
आंध्र प्रदेश के दक्षिण पूर्वी तट पर विशाखापत्तनम बंदरगाह है। विशाखापटनम बंदरगाह बंगाल के किनारे में एकमात्र प्राकृतिक बंदरगाह है।
पारादीप बंदरगाह, उड़ीसा
भारत के उड़ीसा राज्य के जगत्सिंगपुर में पारादीप बंदरगाह है।
हल्दिया बंदरगाह, पश्चिम बंगाल
हल्दिया बंदरगाह पश्चिम बंगाल में हुगली नदी के पास स्थित एक प्रमुख बंदरगाह है।
पोर्ट ब्लेयर, अंडमान निकोबार
पोर्ट ब्लेयर अंडमान निकोबार द्वीप समूह की राजधानी है। पोर्ट ब्लेयर भारत में सबसे कम उम्र के समुद्री बंदरगाह और देश के 12 प्रमुख बंदरगाहों में से एक है।
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अब आते हैं मोदी सरकार के मेजर पोर्ट अथाॅरिटी बिल 2020 पर। देश के इन 12 बंदरगाहों का काम मेजर पोर्ट ट्रस्ट एक्ट 1963 के तहत आता है। सरकार चाहती है कि ट्रस्ट की जगह बोर्ड ऑफ मेजर पोर्ट अथाॅरिटी आए। हर बंदरगाह के लिए एक बोर्ड बने, जिसमें चेयरमैन समेत 13 सदस्य हों। इनमें रेल मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय और कस्टम जैसे विभागों के प्रतिनिधि भी हो। पोर्ट परिवहन राज्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा कि भारत के बड़े बंदरगाह के अधिकारियों को निर्णय लेने के ज्यादा अधिकार देने के मकसद से ये बिल लाया गया है।
विपक्ष को क्या आपत्ति
गुजरात से कांग्रेस सांसद शक्ति सिंह गोहिल ने आशंका जताई है कि जैसे दवाई अड्डों के साथ हुआ। इन सारे सुधारों के बाद बंदरगाह भी किसी दोस्त को न दे दिया जाए। उन्होंने विधेयक के मसौदे में त्रुटि होने का दावा करते हुए आरोप लगाया कि विधेयक के प्रावधानों में बंदरगाहों के प्रबंधन के लिए 13 सदस्यीय बोर्ड का प्रस्ताव किया गया है जिसके सात सदस्य गैर-सरकारी होंगे। उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में निर्णय लेने का अधिकार निजी क्षेत्र को मिल जाएगा। उन्होंने कहा कि ऐसा होने पर देश की सुरक्षा भी प्रभावित हो सकती है।
विपक्ष के आरोपों को सरकार ने किया खारिज
मनसुख मंडाविया ने विपक्ष के इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया कि सरकार देश के प्रमुख बंदरगाहों को निजी हाथों में सौंपने जा रही है। इसके साथ ही उन्होंने जोर दिया कि बंदरगाहों का निजीकरण नहीं होगा और सरकार कर्मचारियों के कल्याण का ध्यान रखेगी। पोत परिवहन मंत्री मनसुख मंडाविया ने विधेयक को चर्चा के लिए रखते हुए कहा कि 1963 में बंदरगाह ट्रस्ट कानून लागू हुआ था और उस समय देश में सिर्फ बड़े बंदरगाह ही थे। उन्होंने कहा कि लेकिन अब छोटे बंदरगाह भी बन गए हैं और उन दोनों के बीच प्रतिस्पर्धा भी है। मंडाविया ने कहा कि बड़े बंदरगाहों को सक्षम बनाने और उनकी व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए यह विधेयक लाया गया है।
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