पर्सनल लॉ पर न्यायिक राय की समीक्षा की आवश्यकता है: जेटली
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने उम्मीद जताई कि इस पुरानी न्यायिक राय की जल्द की समीक्षा की जाएगी कि पर्सनल लॉ के संवैधानिक अधिकारों के अनुरूप होने की आवश्यकता नहीं है।
नयी दिल्ली। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने उम्मीद जताई कि इस पुरानी न्यायिक राय की जल्द की समीक्षा की जाएगी कि पर्सनल लॉ के संवैधानिक अधिकारों के अनुरूप होने की आवश्यकता नहीं है। जेटली ने ‘लैंगिक समता सूचकांक’ जारी करने के बाद ‘फिक्की लेडीज आर्गेनाइजेशन’ (एफएलओ) के एक समारोह में कहा कि पर्सनल लॉ के मामले में वर्ष 2017 ‘‘बहुत अलग’’ होगा। उन्होंने ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ’ का अप्रत्यक्ष जिक्र करते हुए कहा कि दशकों पहले ‘‘एक बहुत ही आश्चर्यजनक न्यायिक मत’’ था कि सभी कानूनों को संवैधानिक अधिकारों के अनुरूप होना चाहिए लेकिन पर्सनल लॉ के मामले में ऐसा आवश्यक नहीं है। मंत्री ने कहा, ‘‘.. उम्मीद है कि निकट भविष्य में कुछ समय बाद इसकी समीक्षा की जाएगी।’’ जेटली के इस बयान से कुछ ही दिन पहले केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय से एक शपथपत्र में कहा था कि ‘तीन तलाक’, ‘निकाह हलाला’ और बहुविवाह से मुस्लिम महिलाओं के सामाजिक स्तर और उनकी प्रतिष्ठा पर प्रभाव पड़ता है और इससे उनके मौलिक अधिकारों का हनन होता है जो संविधान में दिए गए हैं।
जेटली ने कहा कि उस समय ‘‘बहुत आश्चर्यजनक न्यायिक राय’’ यह थी कि पर्सनल लॉ को संवैधानिक अधिकारों के अनुरूप होने की आवश्यकता नहीं है ‘‘क्योंकि उनका निर्माण इस मकसद के लिए नहीं किया गया इसलिए उन्हें बाहर रखा जाता है।’’ उन्होंने कहा कि यह मनोदशा लोक तर्क एवं न्यायिक तर्क पर हावी रही लेकिन उन्होंने भरोसा जताया कि वर्ष 2017 इससे अलग होगा। इस अवसर पर जारी रिपोर्ट में कहा गया कि ‘‘लैंगिक असमानता भारत के सभी पेशों में एक समस्या है और यह साफ है कि हमें अभी लंबी दूरी तय करनी है।’’ इसमें कहा गया है कि किसी भी समस्या का समाधान खोजने के लिए पहला कदम समस्या की मौजूदगी को स्वीकार करना है। लैंगिक समानता सूचकांक लागू करके संगठन ऐसा करेंगे।
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