Kailash Chaudhary के पाला बदलने से राजनीति के केंद्र में आए जाट, दिल्ली के मतदाताओं को साधने में जुटे सभी दल
नजफगढ़ इलाके के विधायक व दिल्ली सरकार के मंत्री कैलाश गहलोत के इस्तीफा देने और आम आदमी पार्टी को अलविदा कहने के बाद जाट बिरादरी के नेताओं की प्रासंगिकता और उनकी भूमिका को पुनः दिल्ली की राजनीति के केंद्र में ला दिया है। वर्ष 2008 में मटियाला से कांग्रेस के विधायक रहे सोमेश शौकीन को पार्टी में शामिल किया।
विधानसभा चुनाव से पहले नजफगढ़ इलाके के विधायक व दिल्ली सरकार के मंत्री कैलाश गहलोत के इस्तीफा देने और आम आदमी पार्टी को अलविदा कहने के बाद जाट बिरादरी के नेताओं की प्रासंगिकता और उनकी भूमिका को पुनः दिल्ली की राजनीति के केंद्र में ला दिया है। इस कड़ी में आम आदमी पार्टी ने उनके जाने के बाद जाट बिरादरी को अपने साथ रखने के लिए बीते सोमवार को नांगलोई से अपने जाट विधायक राघवेंद्र शौकीन को मंत्री बनाने का ऐलान किया है। तो वहीं, वर्ष 2008 में मटियाला से कांग्रेस के विधायक रहे सोमेश शौकीन को पार्टी में शामिल किया।
पिछले कुछ वर्षों से भाजपा और उसका शीर्ष नेतृत्व जाट बिरादरी पर अधिक ध्यान केंद्रित नहीं कर रही थी, मगर अब इस समुदाय में अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है। दिल्ली की राजनीति में वर्ष 1971 में जाट बिरादरी के नेताओं को महत्व मिलने की शुरूआत हुई थी। जाट समुदाय से बचने के लिए कैलाश गहलोत के जाने के बाद आप ने तेजी से कदम उठाते हुए नांगलोई से अपने जाट विधायक राघवेंद्र शौकीन को मंत्री पद देने की घोषणा की। इसके अलावा आप ने मटियाला के पूर्व कांग्रेस विधायक सोमेश शौकीन को अपने साथ शामिल करके जाट नेतृत्व को मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ाया है। आप की इस रणनीति से यह साफ है कि पार्टी जाट समुदाय को खोना नहीं चाहती।
दिल्ली के बाहरी इलाकों में निभाते हैं अहम भूमिका
राजधानी के बाहरी ग्रामीण इलाकों में जाट मतदाता अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन क्षेत्रों में भाजपा और कांग्रेस पहले ही अपनी पैठ जमाने की कोशिश में लगी हैं। वहीं भाजपा ने कैलाश गहलोत को पार्टी में शामिल करके यह संकेत दिया कि वह भी अब जाट समुदाय को अपने पक्ष में करने के लिए गंभीर है। यह कदम पार्टी की उस रणनीति का हिस्सा लगता है, जहां वह दिल्ली के ग्रामीण इलाकों में अपने वोट बैंक को मजबूत करना चाहती है। दिल्ली की राजनीति में जाट बिरादरी का महत्व 1971 से देखा गया है। उस समय से लेकर अब तक जाट नेताओं ने दिल्ली की राजनीति में गहरी छाप छोड़ी है। चाहे वह कांग्रेस के शासन का दौर हो या भाजपा और आप की नई राजनीति, जाट नेताओं का प्रभाव कभी भी कम नहीं हुआ।
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