Shaurya Path: Russia-North Korea, Ukraine War, Israel-Hamas और Jake Sullivan India Visit संबंधी मुद्दों पर Brigadier Tripathi से वार्ता

Brigadier DS Tripathi
Prabhasakshi

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि 2000 के बाद प्योंगयांग की अपनी पहली यात्रा पर, पुतिन ने रूसी नीति के समर्थन के लिए किम को धन्यवाद दिया और किम ने यूक्रेन के साथ पुतिन के युद्ध सहित "रूस की सभी नीतियों" के लिए "बिना शर्त" और अटूट समर्थन की पुष्टि की।

प्रश्न- प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में हमने इस सप्ताह ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) से जानना चाहा कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का उत्तर कोरिया में जबरदस्त स्वागत किया गया जिससे नाटो चिंतित हो गया है। इसके अलावा बताया जा रहा है कि रूस और उत्तर कोरिया के संबंधों में गर्माहट से चीन खुश नहीं है। इन विषयों को कैसे देखते हैं आप?

उत्तर- रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की उत्तर कोरिया यात्रा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि 24 वर्षों में पुतिन वहां पहली बार पहुँचे हैं। दोनों नेताओं के बीच जो अहम समझौता हुआ है उसके तहत दोनों देश इस बात पर सहमत हुए हैं कि यदि दोनों में से किसी पर भी सशस्त्र आक्रमण होता है तो वह एक दूसरे को तत्काल सैन्य सहायता प्रदान करेंगे। इस समझौते को शीत युद्ध के सहयोगियों द्वारा अपनाई गई 1961 की संधि के रूप में देखा जा रहा है जिसे 1990 में रद्द कर दिया गया था जब सोवियत संघ ने दक्षिण कोरिया के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए थे। उन्होंने कहा कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन द्वारा हस्ताक्षरित "व्यापक रणनीतिक साझेदारी" का समझौता मॉस्को द्वारा हाल के वर्षों में एशिया में लिये गये सबसे महत्वपूर्ण फैसलों में से एक है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि समझौते में यह भी कहा गया है कि कोई भी पक्ष किसी तीसरे देश के साथ किसी भी संधि पर हस्ताक्षर नहीं करेगा जो दूसरे के हितों का उल्लंघन करता हो। समझौता यह भी कहता है कि किसी भी देश को दूसरे की सुरक्षा और संप्रभुता को नुकसान पहुंचाने के लिए अपने क्षेत्र का उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जायेगी। इसमें कहा गया है कि दोनों देश "युद्ध को रोकने और क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने" के उद्देश्य से संयुक्त कार्रवाई करेंगे।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि बढ़ते अंतरराष्ट्रीय अलगाव का सामना कर रहे दोनों देशों के नेताओं की प्रतिज्ञा अमेरिका और उसके एशियाई सहयोगियों के बीच बढ़ती चिंता के बीच आई है कि रूस उत्तर कोरिया का कितना समर्थन करेगा, जो इस सदी में परमाणु हथियार का परीक्षण करने वाला एकमात्र देश है। उन्होंने कहा कि इस समझौते के बारे में जापान ने "गंभीर चिंता" व्यक्त की है वहीं उत्तर कोरिया के मुख्य राजनीतिक और आर्थिक हितैषी चीन की प्रतिक्रिया मौन रही है। उन्होंने कहा कि रूस और उत्तर कोरिया के बीच गहराते सैन्य सहयोग से वाशिंगटन और सियोल तेजी से चिंतित हो गए हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिका और दक्षिण कोरिया ने रूस और उत्तर कोरिया पर यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में उपयोग के लिए हथियारों का व्यापार करके अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि यूक्रेनी अधिकारियों ने कहा भी है कि उन्हें अपने देश के अंदर उत्तर कोरियाई मिसाइल का मलबा मिला है। हालांकि रूस और उत्तर कोरिया किसी भी हथियार व्यापार से इंकार करते हैं।

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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि 2000 के बाद प्योंगयांग की अपनी पहली यात्रा पर, पुतिन ने रूसी नीति के समर्थन के लिए किम को धन्यवाद दिया और किम ने यूक्रेन के साथ पुतिन के युद्ध सहित "रूस की सभी नीतियों" के लिए "बिना शर्त" और अटूट समर्थन की पुष्टि की। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच हुए समझौते में परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष अन्वेषण, खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा पर सहयोग भी शामिल था। उन्होंने कहा कि जिस तरह रूसी राष्ट्रपति का उत्तर कोरिया में स्वागत हुआ वह देखने लायक था। उन्होंने कहा कि पुतिन ने उत्तर कोरिया में किम को अपने साथ बैठा कर कार ड्राइव कर दुनिया को बड़ा संदेश दिया है। उन्होंने कहा कि उत्साही भीड़ और भव्य समारोहों के जरिये प्योंगयांग में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का स्वागत लंबे समय तक याद किया जायेगा। उन्होंने कहा कि रूसी मीडिया द्वारा प्रसारित वीडियो में दिखाया गया है कि घुड़सवार सैनिकों सहित सलामी गार्ड और नागरिकों की बड़ी भीड़ राजधानी से होकर बहने वाली ताएदोंग नदी के किनारे किम इल सुंग चौराहे पर एकत्र हुई। इस दृश्य में गुब्बारे पकड़े हुए बच्चे और राष्ट्रीय ध्वज के साथ दोनों नेताओं के विशाल चित्र शामिल थे। यहां से किम और पुतिन शिखर वार्ता के लिए कुमसुसान पैलेस पहुंचे। यहां दोनों नेताओं के बीच दो घंटे तक सीधी बातचीत हुई। उन्होंने कहा कि सरकारी मीडिया की तस्वीरों में प्योंगयांग की सड़कें पुतिन की तस्वीरों से सजी दिखाई दे रही थीं और 101 मंजिला पिरामिड के आकार के रयुगयोंग होटल का बाहरी हिस्सा एक विशाल संदेश "वेलकम पुतिन" के साथ चमक रहा था। उन्होंने कहा कि हालांकि संभवतः समय की कमी को देखते हुए, पुतिन का स्वागत चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की 2019 की उत्तर कोरिया यात्रा के दौरान किये गये स्वागत समारोह से छोटा था।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि अमेरिका और उसके सहयोगियों का कहना है कि उन्हें डर है कि रूस उत्तर कोरिया के मिसाइल और परमाणु कार्यक्रमों के लिए सहायता प्रदान कर सकता है, जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों द्वारा प्रतिबंधित हैं। अमेरिका और उसके सहयोगियों ने साथ ही प्योंगयांग पर बैलिस्टिक मिसाइलें और तोपखाने के गोले उपलब्ध कराने का आरोप लगाया है जिनका उपयोग रूस ने यूक्रेन में अपने युद्ध में किया है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक नाटो की बात है तो यह स्पष्ट है कि वह इस बात को लेकर चिंतित है कि रूस उत्तर कोरिया के मिसाइल और परमाणु कार्यक्रमों को समर्थन दे सकता है। नाटो महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन के साथ बातचीत के बाद एक संयुक्त प्रेस वार्ता में कहा कि यूक्रेन में रूस के युद्ध को चीन, उत्तर कोरिया और ईरान द्वारा बढ़ावा दिया जा रहा था। उन्होंने कहा कि यह सभी नाटो गठबंधन को विफल होते देखना चाहते थे। उन्होंने कहा कि स्टोलटेनबर्ग के साथ ब्रीफिंग में मौजूद ब्लिंकन ने कहा कि पुतिन की प्योंगयांग यात्रा उन देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने की उनकी "हताशा" का संकेत है जो यूक्रेन में उनके युद्ध का समर्थन कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि चीन के समर्थन ने रूस को अपने रक्षा औद्योगिक आधार को बनाए रखने में सक्षम बनाया है, जो मॉस्को के 70% मशीन टूल आयात और 90% माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स की आपूर्ति करता है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि चीन ने इस मुद्दे पर सधी हुई प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने कहा कि शिखर सम्मेलन रूस और उत्तर कोरिया के बीच द्विपक्षीय आदान-प्रदान था। उन्होंने कहा कि जब से उत्तर कोरिया ने पिछले साल अपने महामारी-रोधी सीमा नियंत्रण में ढील दी है, चीन के साथ उसका व्यापार फिर से शुरू हो गया है, लेकिन किम अब रूस की ओर झुकते दिख रहे हैं जिससे बीजिंग सतर्क हो गया है। उन्होंने कहा कि किम ने पिछले साल पुतिन से मिलने के लिए महामारी के बाद रूस की अपनी पहली और अब तक की एकमात्र यात्रा की थी। उन्होंने कहा कि इसके अलावा सीमाएं फिर से खुलने के बाद से पुतिन राजनीतिक और आर्थिक रूप से अलग-थलग उत्तर कोरिया का दौरा करने वाले पहले विश्व नेता हैं।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि चीन उत्तर कोरिया का पूरा साथ दे रहा है ताकि पुराना दोस्त छिटक नहीं जाये इसलिए बीजिंग सुरक्षा परिषद में उत्तर कोरिया पर नए प्रतिबंधों को रोकने में रूस के साथ शामिल हो गया है। उन्होंने कहा कि चीन अब तक उत्तर कोरिया का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है और दोनों के बीच 1960 के दशक की एक पारस्परिक रक्षा संधि है। उन्होंने कहा, "जब तक ऐसी कोई स्पष्ट नीति नहीं आती जो चीन की स्थिति को चुनौती देती हो, तब तक चीन बाहर से सबकुछ देखता रहेगा। उन्होंने कहा कि रूस और उत्तर कोरिया के बीच घनिष्ठ संबंध चूंकि अमेरिका को विचलित करते हैं, इसलिए चीन इस बात से खुश भी है कि अमेरिका की परेशानी बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि पुतिन की उत्तर कोरिया की यात्रा ऐसे समय में हुई है जब बुधवार को चीन के विदेश और रक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों की दक्षिण कोरिया यात्रा हुई।

प्रश्न-2. प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में हमने इस सप्ताह ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) से जानना चाहा कि इजराइल के प्रधानमंत्री ने अमेरिका पर आरोप लगाये हैं कि वह हथियार भेजने में देरी और आनाकानी कर रहा है। इजराइल के प्रधानमंत्री ने अपनी वार कैबिनेट भी भंग कर दी है। इस सबका इजराइल-हमास संघर्ष पर क्या असर पड़ सकता है?

उत्तर- पूरी दुनिया हैरान है कि आखिर इजराइल के प्रधानमंत्री को हो क्या गया है। उन्होंने कहा कि पग-पग पर इजराइल का साथ दे रहे अमेरिका के बारे में जो कुछ कहा गया है वह गलत इसलिए है क्योंकि राष्ट्रपति जो बाइडन को इस साल होने वाले राष्ट्रपति चुनावों को देखते हुए भी कई फैसले लेने पड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि घरेलू राजनीति कभी-कभी फैसलों पर हावी हो ही जाती है लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि इजराइल पर हमास के हमले के बाद सबसे पहले बाइडन ही यरूशलम पहुँचे थे और अपना पूर्ण समर्थन दिया था।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि व्हाइट हाउस ने इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के दावे पर कहा है कि हम वास्तव में नहीं जानते कि वह किस बारे में बात कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि नेतन्याहू ने अमेरिका की अब तक की सबसे कठोर सार्वजनिक आलोचना करते हुए कहा है कि अमेरिका ने हथियारों का शिपमेंट रोक दिया है। उन्होंने कहा कि रफा में इजराइल जो जमीनी ऑपरेशन चलाने वाला था उस पर अमेरिका ने चिंता जताई थी जिसके बाद हथियारों की खेप रोक दी गयी। उन्होंने कहा कि बताया जाता है कि इस खेप में लड़ाकू विमानों के लिए 3,500 बम शामिल थे, जिनमें से कई 2,000 पाउंड के बम थे। उन्होंने कहा कि फिलस्तीनी नागरिकों के हताहत होने की संख्या को देखते हुए बाइडन प्रशासन ने सैन्य सहायता रोक दी है। उन्होंने कहा कि अमेरिका में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों से पहले बाइडन प्रशासन बेहद सतर्कता के साथ कदम उठा रहा है इसलिए वह अब इस संघर्ष में इजराइल को ज्यादा मदद देने से कतरा रहा है। उन्होंने कहा कि अमेरिका के इसी रुख से खफा होकर नेतन्याहू ने कहा कि यह समझ से परे है कि आखिर क्यों पिछले कुछ महीनों से अमेरिकी प्रशासन इजरायल के हथियार और गोला-बारूद की आपूर्ति को रोक रहा है। उन्होंने कहा कि लेकिन इजराइल जानता है कि अमेरिका को कैसे मनाना है इसीलिए नेतन्याहू के दो विश्वासपात्र- रणनीतिक मामलों के मंत्री रॉन डर्मर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार तज़ाची हानेग्बी वाशिंगटन गये हैं और उम्मीद है कि वे व्हाइट हाउस और विदेश विभाग के अधिकारियों के साथ उस मुद्दे पर चर्चा करेंगे। उन्होंने कहा कि इसी तरह इज़राइल के रक्षा मंत्री योव गैलेंट भी वार्ता के लिए अगले सप्ताह वाशिंगटन पहुंचेंगे।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक इजराइल की घरेलू राजनीति में चल रही उठापटक की बात है तो इसमें कोई दो राय नहीं कि नेतन्याहू चौतरफा घिरे हुए हैं। एक तो उन पर दबाव है कि वह हमास को पूरी तरह खत्म करें। दूसरा उन पर दबाव है कि वह प्रधानमंत्री पद छोड़ें। उन्होंने कहा कि लेकिन नेतन्याहू के रुख से स्पष्ट झलकता है कि वह ऐसे नेता के रूप में इतिहास में दर्ज नहीं होना चाहते जो युद्ध के समय विफल हुआ हो इसलिए वह घरेलू राजनीति और हमास से युद्ध की चुनौतियों पर विजय पाने के लिए लगे हुए हैं।

प्रश्न-3. प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में हमने इस सप्ताह ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) से जानना चाहा कि रूस-यूक्रेन के बीच शांति कायम करने के लिए स्विट्जरलैंड में जो सम्मेलन आयोजित किया गया था वह बेनतीजा समाप्त हो गया। अब यह युद्ध किस दिशा में जायेगा?

उत्तर- यूक्रेन में युद्ध को समाप्त करने का रास्ता तलाशने के लिए स्विट्जरलैंड में आयोजित दो दिवसीय शिखर सम्मेलन में 90 से अधिक देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने हिस्सा लिया। सम्मेलन में हालांकि कोई ठोस हल नहीं निकल सका और आगे भी शांति के प्रयास जारी रखने पर सहमति व्यक्त की गयी। उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन में रूस को आमंत्रित नहीं किया गया था इसलिए इसके सफल होने की संभावना पहले से ही कम थी। रूस ने भी इस सम्मेलन को समय की बर्बादी बताया था। हालांकि राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन के समक्ष एक सशर्त शांति प्रस्ताव रखा था जिस पर भी इस सम्मेलन में चर्चा की गयी और उसे लगभग खारिज कर दिया गया। उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन से चीन भी नदारद रहा।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि भारत समेत कुछ देशों ने यूक्रेन में शांति के लिए स्विट्जरलैंड द्वारा आयोजित शिखर सम्मेलन में संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर नहीं किए और किसी भी विज्ञप्ति या दस्तावेज से खुद को अलग कर लिया। भारत के अलावा सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, थाईलैंड, इंडोनेशिया, मैक्सिको और संयुक्त अरब अमीरात ने विज्ञप्ति पर हस्ताक्षर नहीं किए। उन्होंने कहा कि यहां हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि भारत, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका और संयुक्त अरब अमीरात ब्रिक्स आर्थिक समूह के सदस्य हैं और इन सभी का रूस के साथ महत्वपूर्ण व्यापारिक संबंध है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक युद्ध की बात है तो वह तीसरे वर्ष में धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि वैसे दोनों ओर से नीरसता देखी जा रही है लेकिन यह भी दिख रहा है कि कोई भी पक्ष पीछे नहीं हटना चाहता और अमेरिका तथा उसके सहयोगी देश भी नहीं चाहते कि रूस विजेता बन जाये इसलिए वह यूक्रेन को मदद दे देकर इस युद्ध को खिंचवा रहे हैं।

प्रश्न-4. प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में हमने इस सप्ताह ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) से जानना चाहा कि अमेरिकी एनएसए जेक सुलिवन की भारत यात्रा के उद्देश्य क्या थे और यह कितनी सफल रही?

उत्तर- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरा कार्यकाल शुरू करने के कुछ दिनों बाद, भारत और अमेरिका व्हाइट हाउस के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन की नई दिल्ली यात्रा के दौरान उच्च प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में सहयोग को मजबूत करने पर सहमत हुए। उन्होंने कहा कि सुलिवन ने यात्रा के दौरान मोदी, भारतीय विदेश मंत्री और अपने भारतीय समकक्ष से मुलाकात की और कहा की कि दोनों देश घनिष्ठ संबंधों को और आगे बढ़ाएंगे।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि सुलिवन की यात्रा का मुख्य फोकस रक्षा, सेमीकंडक्टर, 5जी वायरलेस नेटवर्क और कृत्रिम बुद्धिमत्ता सहित उच्च-प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में अधिक निकटता से सहयोग करने के लिए पिछले साल जनवरी में दोनों देशों द्वारा शुरू की गई एक ऐतिहासिक पहल पर भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के साथ चर्चा करना था। उन्होंने कहा कि देखा जाये तो चीन का मुकाबला करने के उद्देश्य से शुरू की गई यह पहल दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने कहा कि मोदी के नए प्रशासन के शुरुआती दिनों में सुलिवन की यात्रा से संकेत मिलता है कि अमेरिका दोनों देशों के बीच उच्च प्रौद्योगिकी साझेदारी में गति बनाए रखना चाहता है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि डोभाल के साथ सुलिवन की बैठक के बाद दोनों देशों द्वारा एक संयुक्त पत्र में कहा गया कि उन्होंने सटीक-निर्देशित गोला-बारूद और अन्य राष्ट्रीय सुरक्षा-केंद्रित इलेक्ट्रॉनिक्स प्लेटफार्मों के लिए अमेरिकी और भारतीय कंपनियों के बीच एक नई रणनीतिक साझेदारी शुरू की। बयान के अनुसार, दोनों देश "महत्वपूर्ण खनिज आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने के लिए" दक्षिण अमेरिका में लिथियम संसाधन परियोजना और अफ्रीका में दुर्लभ पृथ्वी भंडार में सह-निवेश करने पर भी सहमत हुए और भूमि युद्ध प्रणालियों के संभावित सह-उत्पादन पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि घरेलू रक्षा विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ाना मोदी प्रशासन का शीर्ष फोकस बना हुआ है क्योंकि वह आयातित हथियारों पर अपनी निर्भरता कम करना चाहता है। हालाँकि भारत ने अपने सैन्य उपकरणों के आयात में विविधता ला दी है, फिर भी यह अभी भी रूस पर बहुत अधिक निर्भर है। उन्होंने कहा कि भारत के लिए, प्रौद्योगिकी पहल सर्वोच्च प्राथमिकता है क्योंकि इसका उद्देश्य देश की सुरक्षा को मजबूत करना और उच्च प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में अपनी क्षमताओं का निर्माण करना है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि भारत अत्याधुनिक तकनीकों के मामले में अग्रणी देशों में से एक बनना चाहता है और इन क्षेत्रों में अग्रणी अमेरिका के साथ साझेदारी करना नई दिल्ली के लिए बहुत फायदेमंद है। उन्होंने कहा कि आक्रामक चीन को लेकर दोनों देशों में आपसी चिंताओं के बीच हाल के वर्षों में वाशिंगटन के साथ नई दिल्ली के संबंधों में विस्तार हुआ है। उन्होंने कहा कि जहां तक अमेरिका में एक सिख अलगाववादी नेता की हत्या की कथित साजिश का मामला है तो इससे संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है। उन्होंने कहा कि अमेरिका इन मामलों पर काफी व्यावहारिक है। वे लगातार इस बात पर जोर दे रहे हैं कि भारत के साथ संबंध महत्वपूर्ण हैं, इसलिए मुझे नहीं लगता कि यह कथित साजिश संबंधों को पटरी से उतार देगी। उन्होंने कहा कि अमेरिका में भारतीय उद्योग के लिए द्विदलीय समर्थन मौजूद है और पारिस्थितिकी तंत्र और आपूर्ति श्रृंखला का निर्माण उत्पादन की कुंजी है।

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