Shaurya Path: NATO Summit, Israel-Hamas, North Vs South Korea और Jammu में बढ़ते आतंक से संबंधित मुद्दों पर Brigadier Tripathi से वार्ता

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Prabhasakshi

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि साथ ही नाटो की बैठक में चीन को भी घेरा गया क्योंकि सदस्य देशों का मानना है कि यूक्रेन में रूस के युद्ध को चीन का समर्थन है और बीजिंग यूरो-अटलांटिक सुरक्षा के लिए प्रणालीगत चुनौतियां भी पैदा कर रहा है।

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह हमने ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ नाटो शिखर सम्मेलन, इजराइल हमास संघर्ष, उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया तनाव और जम्मू में बढ़ती आतंकी गतिविधियों के मुद्दे पर चर्चा की। पेश है विस्तृत साक्षात्कार-

प्रश्न-1. नाटो शिखर सम्मेलन से रूस और यूक्रेन को क्या संकेत और संदेश गया है?

उत्तर- नाटो के गठन की 75वीं वर्षगाँठ पर आयोजित इस सम्मेलन से ज्यादा कुछ निकल कर नहीं आया। उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन की सबसे बड़ी घोषणा यह रही कि अमेरिका 2026 में जर्मनी में लंबी दूरी की मिसाइलों को तैनात करना शुरू कर देगा। उन्होंने कहा कि यह एक बड़ा कदम है क्योंकि नाटो सहयोगियों का कहना है कि रूस यूरोप के लिए एक बढ़ता खतरा है। उन्होंने कहा कि यह रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के लिए एक बड़ी चेतावनी है। उन्होंने कहा कि अमेरिकी-जर्मन बयान में कहा गया है कि यह तैनाती यूरोप में रक्षा क्षमताओं को बढ़ायेगी। उन्होंने कहा कि इसके तहत एसएम-6, टॉमहॉक और अधिक रेंज वाले हाइपरसोनिक हथियार भी शामिल होंगे।

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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा नाटो देश यूक्रेन को मदद बढ़ाने के लिए तो साथ खड़े नजर आये लेकिन अगर आप नाटो देशों के प्रमुखों के भाषण सुनेंगे तो यही प्रतीत होगा कि यह मदद यूक्रेन को अपनी रक्षा के लिए दी जा रही है ना कि रूस को खदेड़ने के लिए। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ समय से यूक्रेन को मदद मिलनी कम हो गयी थी जोकि अब बढ़ सकती है। उन्होंने कहा कि एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि नाटो सहयोगी एक वर्ष के भीतर यूक्रेन को कम से कम 40 बिलियन यूरो (43.28 बिलियन डॉलर) की सैन्य सहायता प्रदान करने का इरादा रखते हैं।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि साथ ही नाटो की बैठक में चीन को भी घेरा गया क्योंकि सदस्य देशों का मानना है कि यूक्रेन में रूस के युद्ध को चीन का समर्थन है और बीजिंग यूरो-अटलांटिक सुरक्षा के लिए प्रणालीगत चुनौतियां भी पैदा कर रहा है। उन्होंने कहा कि नाटो की बैठक में चीन से रूस के युद्ध प्रयासों के लिए सामग्री और राजनीतिक समर्थन बंद करने का आह्वान किया गया और चीन की अंतरिक्ष क्षमताओं के बारे में चिंता व्यक्त की गई, तथा चीन के परमाणु शस्त्रागार के तेजी से विस्तार पर भी चिंता जताई गयी। उन्होंने कहा कि नाटो ने अपने वाशिंगटन शिखर सम्मेलन घोषणापत्र में कहा, “पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) की महत्वाकांक्षाएं और आक्रामक नीतियां लगातार हमारे हितों, सुरक्षा और मूल्यों को चुनौती दे रही हैं। रूस और पीआरसी के बीच गहराती रणनीतिक साझेदारी तथा नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को कमजोर करने व नया आकार देने के दोनों देशों के प्रयास गंभीर चिंता का विषय हैं।” शिखर सम्मेलन में शामिल राष्ट्राध्यक्षों और शासन प्रमुखों की ओर से जारी घोषणापत्र में कहा गया है, “हम सरकार में शामिल और उनसे इतर तत्वों से हाइब्रिड, साइबर, अंतरिक्ष और अन्य खतरों तथा दुर्भावनापूर्ण गतिविधियों का सामना कर रहे हैं।”

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इस सम्मेलन में स्वीडन को नाटो के 32वें सदस्य देश के रूप में शामिल किया गया। उन्होंने कहा कि नाटो शिखर सम्मेलन घोषणापत्र में कहा गया है कि फिनलैंड और स्वीडन का नाटो में शामिल होना उन्हें सुरक्षित और संगठन को मजबूत बनाता है, ‘हाई नॉर्थ’ और बाल्टिक सागर क्षेत्रों में भी। उन्होंने कहा कि नाटो के घोषणापत्र में कहा गया है कि यूक्रेन पर रूस के आक्रमण ने यूरो-अटलांटिक क्षेत्र में शांति और स्थिरता भंग कर दी है तथा वैश्विक सुरक्षा को गंभीर नुकसान पहुंचाया है। घोषणापत्र में कहा गया है कि रूस संगठन के सदस्य देशों की सुरक्षा के लिए सबसे महत्वपूर्ण और प्रत्यक्ष खतरा बना हुआ है। उन्होंने कहा कि घोषणापत्र में कहा गया है, “आतंकवाद, अपने सभी स्वरूपों और अभिव्यक्तियों में, हमारे नागरिकों की सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय शांति एवं समृद्धि के लिए सबसे प्रत्यक्ष खतरा है। हम जिन खतरों का सामना कर रहे हैं, वे वैश्विक और परस्पर जुड़े हुए हैं।” उन्होंने कहा कि सम्मेलन में नाटो ने अपनी प्रतिरोधक क्षमता और रक्षा तंत्र को मजबूत करने, रूस से लड़ाई में यूक्रेन को दीर्घकालिक समर्थन बढ़ाने और नाटो के सदस्य देशों के बीच साझेदारी को गहरा करने के लिए कदम उठाए।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इस सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के भाषण पर भी सबकी नजरें लगी थीं। बाइडन ने अपने भाषण में रूस के तेजी से रक्षा उत्पादन बढ़ाने के मद्देनजर नाटो के सदस्य देशों से अपने औद्योगिक आधार को मजबूत करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में कहा कि इस समय रूस तेजी से अपने रक्षा उत्पादन में बढ़ोतरी कर रहा है। वह हथियारों, वाहनों और युद्ध सामग्री का उत्पादन तेजी से बढ़ा रहा है। रूस चीन, उत्तर कोरिया और ईरान की मदद से अपनी रक्षा क्षमता को और मजबूत कर रहा है। जहां तक मेरा विचार है, हमारे संगठन को भी ऐसी स्थिति में पीछे नहीं रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि साथ ही बाइडन ने यूक्रेन के लिए वायु-रक्षा उपकरण दान में देने की ऐतिहासिक घोषणा की और कहा कि रूस इस युद्ध में विफल हो रहा है। उन्होंने बताया कि बाइडन ने कहा है कि अमेरिका, जर्मनी, नीदरलैंड, रोमानिया और इटली, यूक्रेन को पांच अतिरिक्त, सामरिक रूप से महत्वपूर्ण वायु-रक्षा प्रणाली उपलब्ध कराएंगे। उन्होंने बताया कि बाइडन ने कहा है कि आगामी महीनों में अमेरिका और उसके साझेदारों की यूक्रेन को कई अतिरिक्त वायु-रक्षा प्रणालियां उपलब्ध कराने की योजना है। उन्होंने बताया कि अमेरिका यह सुनिश्चित करेगा कि जब हम अहम वायु-रक्षा प्रणालियां भेजें तो यूक्रेन अग्रिम मोर्चे पर हो। ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने रूस को हो रहे नुकसान की बात भी की और नाटो देशों से सतर्क रहने की अपील करते हुए कहा कि कोई गलती ना करें।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इस सम्मेलन में नाटो महासचिव जेम्स स्टोल्टनबर्ग ने जो बड़ी बात कही वह यह थी कि यदि रूस यूक्रेन में जीत जाता है तो यह न केवल राष्ट्रपति पुतिन के हौसले बुलंद करेगा बल्कि यह ईरान, उत्तर कोरिया तथा चीन में अन्य निरंकुश नेताओं को भी बढ़ावा देगा।

प्रश्न-2. इजराइल-हमास संघर्ष में नया अपडेट क्या है? क्या गाजा संघर्षविराम के मुद्दे पर दोहा में आयोजित बैठक सफल हो पायेगी?

उत्तर- दोनों पक्षों के बीच संघर्ष जारी रहने के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा है कि इज़राइल और हमास के बीच नौ महीने से चल रहा संघर्ष अब समाप्त होना चाहिए। उन्होंने कहा कि अमेरिका दोनों पक्षों को संघर्षविराम के फॉर्मूले पर सहमत करने का प्रयास कर रहा है। उन्होंने कहा कि बाइडन इस बात से नाराज हैं कि इजराइल गाजा पट्टी पर कब्जा कर रहा है। उन्होंने कहा कि हालात जिस तरह के दिख रहे हैं उससे प्रदर्शित होता है कि इजराइल को अब पहले जैसा समर्थन नहीं मिल पा रहा है। इसलिए माना जा रहा है कि जल्द ही इजराइल संघर्षविराम के प्रस्ताव पर सहमत हो सकता है।

प्रश्न-3. उत्तर कोरिया किस तरह दक्षिण कोरिया की एअरलाइनों के लिए मुश्किलें खड़ी करता जा रहा है? क्या इससे वैश्विक विमान परिचालन पर भी कोई असर पड़ सकता है?

उत्तर- उत्तर कोरिया के गुब्बारा अभियान, मिसाइल प्रक्षेपण और जीपीएस स्पूफिंग के बढ़ते मामलों ने दक्षिण कोरियाई हवाई क्षेत्र में जोखिम बढ़ा दिया है। उन्होंने कहा कि दोनों प्रतिद्वंद्वी देशों के बीच तनाव बढ़ने से एयरलाइन संचालन जटिल हो गया है। उन्होंने कहा कि मई के अंत में उत्तर कोरिया ने मानव मल सहित कूड़े के थैलों से भरे हजारों गुब्बारे दक्षिण कोरिया में प्रवाहित करना शुरू कर दिया जोकि मनोवैज्ञानिक युद्ध का एक रूप है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि 29 मई से 27 जून के बीच सात लहरों के दौरान सैंकड़ों गुब्बारे दक्षिण में उतरे, जिनमें से एक इंचियोन हवाई अड्डे के रनवे पर था, जिसके कारण इसके सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय प्रवेश द्वार पर टेकऑफ़ और लैंडिंग को तीन घंटे के लिए निलंबित करना पड़ा। उन्होंने कहा कि जब गुब्बारे पहली बार दिखाई दिए उसके बाद से खबरें आईं कि उत्तर कोरिया की ओर से विमानन नेविगेशन में हस्तक्षेप भी बढ़ गया है। उन्होंने कहा कि इसके तहत दक्षिण कोरिया में वाणिज्यिक विमानों को प्रभावित करने वाली "स्पूफिंग" की पहली घटना भी सामने आई थी। उन्होंने कहा कि एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हवाई क्षेत्र की सुरक्षा धीरे-धीरे खराब हो रही है। उन्होंने कहा कि वैसे दक्षिण कोरिया के लिए कोई आधिकारिक हवाई क्षेत्र चेतावनी नहीं दी गयी है लेकिन बताया जा रहा है कि जोखिम की स्थिति गंभीर होती जा रही है। उन्होंने कहा कि दक्षिण कोरिया के परिवहन मंत्रालय ने इस बारे में कहा है कि उसकी सेना, हवाई यातायात नियंत्रण प्राधिकरण और एयरलाइंस 24 घंटे निगरानी और संचार प्रणाली बनाए रखते हैं। उन्होंने कहा कि एक सैन्य प्रवक्ता ने अधिक विवरण दिए बिना कहा, "दक्षिण कोरियाई सेना दिन-रात निगरानी संसाधनों का उपयोग करके इन गुब्बारों का पता लगाती है।"

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि गुब्बारों ने क्षेत्र में उड़ान को "काफी जटिल" बना दिया है। उन्होंने कहा कि उत्तर कोरिया से लगभग 40 किमी (25 मील) दूर, दुनिया के पांचवें सबसे व्यस्त अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे और एक महत्वपूर्ण कार्गो केंद्र इंचियोन में बैलून उड़ानों ने कई बार परिचालन बंद करवाने की नौबत भी लाई है। उन्होंने कहा कि दक्षिण कोरिया इस चुनौती से निबटने की तैयारी कर रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसी रिपोर्टें हैं कि दक्षिणी कोरिया की एयरलाइन अतिरिक्त ईंधन का इंतजाम करके रखती हैं ताकि जरूरत पड़ने पर विमान अधिक समय तक ऊपर रह सकें या वैकल्पिक हवाई अड्डों की ओर जा सकें। उन्होंने कहा कि इसके अलावा वाशिंगटन स्थित सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज के एयरोस्पेस सुरक्षा परियोजना निदेशक कारी बिंगन ने हाल ही में कहा था कि जिस तरह जीपीएस में दखल दिया जा रहा है उससे पायलट अपने रास्ते से भटक सकते हैं। उन्होंने कहा कि दक्षिण कोरिया की सरकार ने भी जानकारी दी है कि 29 मई से 2 जून के बीच लगभग 500 विमानों और सैंकड़ों जहाजों में जीपीएस संबंधी समस्याएं आईं। उसने इस संबंध में संयुक्त राष्ट्र विमानन निकाय आईसीएओ से शिकायत भी की, जिसने उत्तर कोरिया को चेतावनी दी।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि स्विस कंपनी SkAI ने भी इस बारे में कहा है कि उत्तर कोरिया से दक्षिण में जीपीएस व्यवधान एक दशक से अधिक समय से हो रहा है, लेकिन स्पूफिंग नया प्रतीत होता है। उन्होंने कहा कि सह-संस्थापक बेनोइट फिगुएट का हाल ही में बयान सामने आया था कि SkAI ने 29 मई से 2 जून के बीच दक्षिण कोरियाई हवाई क्षेत्र में स्पूफिंग का पता लगाया, जिससे दर्जनों विमान प्रभावित हुए। उन्होंने कहा कि कुछ प्रभावित हवाई जहाज काफी कम ऊंचाई पर उड़ रहे थे। उन्होंने कहा कि वैसे वैश्विक स्तर पर जीपीएस स्पूफिंग से कोई बड़ी विमानन दुर्घटना नहीं जुड़ी है, लेकिन यूरोप से दुबई के लिए उड़ान भरने वाला एक बिजनेस जेट सितंबर 2023 में बिना मंजूरी के ईरानी हवाई क्षेत्र में प्रवेश कर गया था। उन्होंने कहा कि यह भी याद रखना चाहिए कि उत्तर कोरिया ने पिछले साल कहा था कि वह उसके हवाई क्षेत्र में प्रवेश करने वाली किसी भी टोही उड़ान को मार गिराएगा। उन्होंने कहा कि यदि उत्तर कोरिया की शरारत के चलते कोई विमान भटक कर उसके क्षेत्र में आया तो वह उसे मार गिरा सकता है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि अधिकांश एयरलाइंस उत्तर कोरियाई हवाई क्षेत्र से बचती हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिकी संघीय उड्डयन प्रशासन ने बैलिस्टिक मिसाइल परीक्षणों, वायु रक्षा क्षमताओं और संभावित इलेक्ट्रॉनिक युद्ध सहित अन्य कारणों से उत्तर कोरिया हवाई क्षेत्र में उड़ानों पर प्रतिबंध लगा दिया है। 

प्रश्न-4. जम्मू क्षेत्र में जिस तरह आतंकी गतिविधियां बढ़ी हैं उसके कारण और इस समस्या का समाधान क्या है? साथ ही जिस तरह से विदेशी हथियारों का इस्तेमाल आतंकवादी कर रहे हैं वह हमारे लिये कितनी खतरनाक स्थिति है? 

उत्तर- यह वाकई चिंताजनक स्थिति है क्योंकि पूर्णतया शांत रहने वाला क्षेत्र इस समय आतंक के साये में है। उन्होंने कहा कि हाल ही में तीर्थयात्रियों की बस पर हमले के बाद से जिस तरह लगातार सेना को निशाना बनाया जा रहा है वह दर्शाता है कि पाकिस्तान की हिमाकत बढ़ रही है और वह जम्मू तक अपनी पहुँच को दर्शा कर भारत को चेतावनी देना चाहता है। उन्होंने कहा कि चिंताजनक बात यह है कि अगर विदेशी आतंकवादी कठुआ तक पहुँच सकते हैं तो कल को वह पंजाब और हिमाचल भी पहुँच सकते हैं। उन्होंने कहा कि यह साफ दर्शाता है कि सुरक्षा मामलों में हमसे चूक हुई है और गलतियों को शीघ्र सुधारे जाने की जरूरत है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि बताया जा रहा है कि तीन से चार विदेशी आतंकवादियों ने कठुआ हमले को अंजाम दिया। उन्होंने कहा कि बताया जा रहा है कि वे उसी समूह का हिस्सा हैं जो बसनगढ़ हमले में शामिल थे। उन्होंने कहा कि सवाल यह उठता है कि इतनी निगरानी के बावजूद यह आतंकवादी घुस कैसे गये और घुस गये तो वारदात करके भाग कैसे गये? उन्होंने कहा कि देखा जाये तो जम्मू क्षेत्र, जो अपने शांतिपूर्ण माहौल के लिए जाना जाता है, हाल के महीनों में आतंकवादियों द्वारा किए गए हमलों की एक श्रृंखला से दहल गया है। ये हमले सीमावर्ती जिले पुंछ, राजौरी, डोडा और रियासी में हुए हैं। उन्होंने कहा कि आतंकी गतिविधियों में हालिया वृद्धि उनके पाकिस्तानी आकाओं द्वारा आतंकवाद को फिर से बढ़ावा देने के प्रयासों का परिणाम है। 

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक जम्मू-कश्मीर में विदेशी हथियारों के इस्तेमाल की बात है तो वह वाकई चिंताजनक है। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में पिछले कुछ सालों से आतंकवादियों द्वारा अमेरिका निर्मित एम4 कार्बाइन असॉल्ट राइफलों का उपयोग करना हैरानी भरा भी है। उन्होंने कहा कि आतंकवादियों की यह प्रवृत्ति ‘‘चिंताजनक’’ है, क्योंकि 2021 में अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद उनके ‘‘बचे हुए’’ हथियार पाकिस्तानी आकाओं के जरिये घाटी में आतंकवादियों तक पहुंच गए हैं। उन्होंने कहा कि एम4 कार्बाइन एक हल्का, गैस चालित, एयर-कूल्ड, मैगजीन युक्त और कंधे पर रखकर फायर किया जाने वाला हथियार है जिसका इस्तेमाल 1994 से किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि 1980 के दशक से अब तक 500,000 से ज्यादा एम4 असॉल्ट राइफलों का उत्पादन हुआ है और यह कई संस्करणों में उपलब्ध है। उन्होंने कहा कि इस राइफल से एक मिनट में 700 से 970 गोलियां दागी जा सकती हैं और इससे 500 से 600 मीटर दूर लक्ष्य को भी सटीकता से निशाना बनाया जा सकता है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों द्वारा इन असॉल्ट राइफलों का बार-बार इस्तेमाल, 2021 में अफगानिस्तान से बाहर निकलते समय अमेरिकी सेना के हथियार और गोला-बारूद पीछे छोड़ जाने का परिणाम है। उन्होंने कहा कि अमेरिका ने अफगानिस्तान से निकलते समय हथियारों और गोला-बारूद का एक बड़ा भंडार पीछे छोड़ दिया था। उन्होंने कहा कि अमेरिकियों का दावा है कि उन्होंने इन हथियारों में से अधिकांश को नष्ट कर दिया लेकिन मुझे लगता है कि ये हथियार आतंकवादियों के हाथों में पड़ गए हैं। उन्होंने कहा कि यह पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ‘इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस’ (आईएसआई) ही है जो जम्मू-कश्मीर में अपने ‘नापाक मंसूबों’ को आगे बढ़ाने के लिए आतंकवादियों को एम4 कार्बाइन राइफल जैसे अत्याधुनिक हथियारों की मदद दे रही है। उन्होंने कहा कि अमेरिकी सेना के बचे हुए हथियार अब आईएसआई के हाथ लग गए हैं और वह इनका इस्तेमाल आतंकवादियों को प्रशिक्षित करने के लिए कर रही है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि वैसे ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है, सेना पर सबको विश्वास रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि हालात से निबटने के लिए सेना के विशेष बल ‘पैरा’ इकाई के कर्मियों को विशिष्ट क्षेत्रों में ‘सर्जिकल ऑपरेशन’ के लिए तैनात किया गया है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा तलाश अभियान दलों के साथ हेलीकॉप्टर और यूएवी निगरानी भी की जा रही है। इसके अलावा, खोजी श्वान दस्तों को तैनात किया गया है और क्षेत्र के विशेष रूप से घने जंगल वाले इलाकों में मेटल डिटेक्टर का इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पुलिस और सेना के जवान घडी भगवा वन क्षेत्र में तलाशी अभियान चला रहे हैं, जो डोडा शहर से लगभग 35 किलोमीटर पूर्व में स्थित है और किश्तवाड़ जिले की सीमा पर है। 

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि कठुआ में सीमा सुरक्ष बल (बीएसएफ) और पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच एक उच्च स्तरीय अंतरराज्यीय सुरक्षा समीक्षा बैठक भी हुई है। उन्होंने कहा कि दो दशक से पहले जब आतंकवाद बहुत अधिक बढ़ गया था तब भी आतंकवादियों ने इस मार्ग का प्रयोग किया था। हालांकि उस समय इस क्षेत्र को आतंकवादियों से मुक्त कर दिया गया था, लेकिन फिर से आतंकवादी गतिविधियां शुरू होने से सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता होने लगी है।

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