Shaurya Path: Israel-Hamas, Russia-Ukraine, China-Vietnam, Indo-US, PoK-CoK से जुड़े मुद्दों पर Brigadier Tripathi से बातचीत

Brigadier DS Tripathi
Prabhasakshi

एक प्रश्न के उत्तर में ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि अमेरिका ने इज़राइल के युद्ध आचरण की आलोचना की है हालांकि इज़राइल ने उस आलोचना को नजरअंदाज कर दिया है। उन्होंने कहा कि यह बाइडेन प्रशासन के लिए अपमान जैसा लगता है।

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह हमने ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ इजराइल-हमास संघर्ष, रूस-यूक्रेन युद्ध, चीन और वियतनाम के संबंध, भारत-अमेरिका संबंध और पीओके तथा सीओके से संबंधित मुद्दों पर चर्चा की। पेश है विस्तृत साक्षात्कार-

प्रश्न-1. इजराइल-हमास संघर्ष गहराता जा रहा है। इजराइल वैश्विक समर्थन खोता जा रहा है पर उसे इसकी परवाह नहीं दिख रही है। इसे कैसे देखते हैं आप?

उत्तर- इजराइल किसी भी कीमत पर अपने लोगों के लिए आतंकवाद का खतरा हमेशा के लिए खत्म करना चाहता है। उन्होंने कहा कि भले संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव पास हो गया हो लेकिन इजराइल इससे बेपरवाह है और वह हमास को खत्म करना चाहता है। उन्होंने कहा कि एक हकीकत यह भी है कि फिलस्तीन में हमास के प्रति समर्थन बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू भी जानते हैं कि यदि उन्होंने हमास को नेस्तनाबूद नहीं किया तो इतिहास उन्हें माफ नहीं करेगा इसलिए वो पूरा दम लगाये हुए हैं।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि अमेरिका ने इज़राइल के युद्ध आचरण की आलोचना की है हालांकि इज़राइल ने उस आलोचना को नजरअंदाज कर दिया है। उन्होंने कहा कि यह बाइडेन प्रशासन के लिए अपमान जैसा लगता है। उन्होंने कहा कि अमेरिका इज़राइल पर अधिक मानवीय होने के लिए दबाव डालने की कोशिश कर रहा था। उन्होंने कहा कि वास्तव में, पूरे अमेरिका-इज़रायल संबंधों की बात करें तो इज़राइल अमेरिकी राजनीति को समझता है इसलिए इजराइल पर दबाव डालना कठिन है। उन्होंने कहा कि हालांकि एक तथ्य यह भी है कि इज़राइल अब तक अमेरिकी विदेशी सहायता का सबसे बड़ा प्राप्तकर्ता है और अमेरिका काफी लंबे समय से इजरायल के साथ मजबूती से खड़ा है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि अमेरिका यह बात मानता है कि इज़रायली निश्चित रूप से खुद को एक बहुत ही अस्थिर पड़ोस में रहने वाले के रूप में देखते हैं। लेकिन अमेरिका कहता है ‘‘आराम से चलो।’’ वहीं इज़राइल कहता है ‘‘हमें युद्ध के लिए कुछ दिन और दीजिए।’’ उन्होंने कहा कि 2006 में हिज्बुल्ला के खिलाफ इजराइली लड़ाई का भी यही पैटर्न था और इस बार भी यही पैटर्न है कि इज़राइल अपने सैन्य उद्देश्य को पूरा करने के लिए थोड़ा और समय मांगता है। उन्होंने कहा कि इजराइल यह भी जानता है कि अमेरिकी कांग्रेस में दोनों पार्टियों का बहुमत इज़राइल का समर्थन करता है, हालाँकि कॉलेज परिसरों और अन्य जगहों पर उस समर्थन पर असंतोष बढ़ रहा है।

इसे भी पढ़ें: Prabhasakshi Exclusive: Ukraine और Zelensky की कंगाली देखकर खुश हो रहे हैं Vladimir Putin, पूरे यूक्रेन पर जल्द ही लहरा सकता है रूसी झंडा

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने हाल ही में कहा था कि इज़राइल गाजा पर अंधाधुंध बमबारी को लेकर ‘‘समर्थन खो रहा है’’। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच हालात निश्चित रूप से खराब हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि एक और स्थिति यह है कि इज़राइल अब वैश्विक जनमत में अलग-थलग दिख रहा है। उन्होंने कहा कि यह वास्तव में फिर से किसी तरह के संघर्ष विराम का समय है, जिससे कुछ और बंधकों की रिहाई हो सके लेकिन ऐसा लगता नहीं है कि यह जल्द ही संभव हो पायेगा।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि ऐसा लगता है कि इज़राइल के भीतर नेतन्याहू को यह खतरा महसूस हो रहा है कि युद्ध धीमा होने या समाप्त होने पर उनकी सरकार गिर सकती है, इसलिए वह अपने दक्षिणपंथी समर्थकों के बीच अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि मौजूदा रूख को देखें तो ऐसा लगता है कि इजराइली गाजा पर कब्ज़ा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि संभव है कि पर्दे के पीछे इजरायली फलस्तीनी प्राधिकरण को शामिल करने वाले किसी विकल्प के बारे में सोच रहे हैं। उन्होंने कहा कि हालांकि लगभग एक वैश्विक सहमति है कि इस युद्ध को समाप्त करने की आवश्यकता है। 

प्रश्न-2. रूस-यूक्रेन युद्ध में ताजा स्थिति क्या है? रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने तो स्पष्ट कर दिया है कि जीत हासिल होने तक लड़ाई जारी रहेगी।

उत्तर- अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन को यूक्रेन की मदद करने में कितनी दिक्कत आ रही है यह पूरी दुनिया देख रही है। उन्होंने कहा कि यूक्रेन की मदद करने को लेकर जिस तरह से अमेरिकी कांग्रेस विभाजित है उसको देखकर खासतौर पर नाटो देश अचंभित हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति को यूक्रेन की मदद करने के लिए अमेरिकी कांग्रेस से कहना पड़ रहा है कि यदि हमने अभी मदद नहीं की तो यह रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की जीत होगी। उन्होंने कहा कि इस बार भले अमेरिकी कांग्रेस बाइडन की अपील को स्वीकार कर भी ले लेकिन आगे भी वह ऐसा करेगी यह कहना मुश्किल है क्योंकि अगले साल अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं और ऐसे में घरेलू राजनीति को देखकर ही वहां की सरकार कोई फैसला करेगी।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि अमेरिका का यह हाल देखकर यूरोपीय देश भी अपने पांव पीछे खींच रहे हैं और हाल में कई देशों ने यूक्रेन को मदद में कटौती की है या बंद कर दी है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा इजराइल-हमास संघर्ष के चलते नाटो पहले ही विभाजित नजर आ रहा है जिससे यूक्रेन को मिलने वाली मदद पर सीधा और बड़ा असर पड़ा है। उन्होंने कहा कि यूक्रेन को मिल रही विदेशी मदद युद्ध में खर्च होने की बजाय जनता की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में लग जा रही है जिससे राष्ट्रपति जेलेंस्की की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। उन्होंने कहा कि रूस ने यूक्रेन में जो बर्बादी की है उसके चलते हर आने वाला डॉलर बुनियादी जरूरत पर पहले खर्च हो रहा है जिससे सैन्य बलों की जरूरतें पूरी नहीं हो पा रही हैं।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि दूसरी ओर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के हाव-भाव को देखकर लग रहा है कि जैसे उन्हें इसी दिन का इंतजार था। उन्होंने कहा कि पुतिन यूक्रेन की इस हालत पर फूले नहीं समा रहे हैं इसीलिए उन्होंने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है कि लक्ष्य हासिल होने तक यह युद्ध जारी रहेगा। उन्होंने कहा कि देखा जाये तो अब यह साफ तौर पर नजर आ रहा है कि यूक्रेन हार की ओर बढ़ चला है। उन्होंने कहा कि युद्ध के दो साल होने वाले हैं और यूक्रेन पर अरबों डॉलर खर्च कर दिये गये लेकिन वह सिर्फ रूस के कब्जे से चंद किलोमीटर का अपना क्षेत्र ही मुक्त करवा पाया है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने घोषणा की है कि वह 2024 के राष्ट्रपति चुनाव में भाग लेने का इरादा रखते हैं। उन्होंने कहा कि पुतिन का रूसी राष्ट्रपति के रूप में पांचवां कार्यकाल भी जीतना लगभग तय है। उन्होंने कहा कि पुतिन ने 24 वर्षों तक रूस का नेतृत्व किया है और सर्वेक्षणों से पता चलता है कि यूक्रेन में रूस के चल रहे सैन्य अभियान ने उनके लिए समर्थन बढ़ाया है। उन्होंने कहा कि चुनाव जीतने के लिए पुतिन काफी कुछ कर रहे हैं जैसे युद्ध लड़ रहे सैनिकों के परिवारों का मनोबल बढ़ाने के लिए उन्होंने कई कार्यक्रम शुरू किये हैं। उन्होंने कहा कि इसके अलावा सरकार ने सैन्य बलों के वेतन में वृद्धि की है। पिछले सितंबर तक, सेना में भर्ती होने वालों को दिया जाने वाला न्यूनतम मासिक वेतन राष्ट्रीय औसत से तीन गुना था। रूसी सरकार ने घोषणा की है कि वह सैन्य वेतन में 10.5 प्रतिशत की वृद्धि करेगी।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि पुतिन के पक्ष में एक बात और दिख रही है कि रूसी अर्थव्यवस्था को दुनिया से अलग-थलग करने के उद्देश्य से लगाए गए अभूतपूर्व पश्चिमी प्रतिबंध यूक्रेन में रूसी कार्रवाई को बदलने में सफल नहीं हुए हैं। इसके बजाय, ऐसा प्रतीत होता है कि पश्चिम के साथ बढ़ती दुश्मनी ने रूस को चीन और अन्य अंतरराष्ट्रीय साझेदारों के साथ संबंधों को गहरा करने के लिए प्रेरित किया है। उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने हाल ही में 2024 के लिए रूस के आर्थिक विकास के पूर्वानुमान को कम कर दिया है, लेकिन यह पूर्वानुमान अभी भी कनाडा, फ्रांस, इटली और यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों के अनुकूल है। उन्होंने कहा कि पश्चिमी प्रतिबंधों का विरोध करने और नाटो समर्थित यूक्रेन के हमले से लड़ने की रूस की क्षमता ने युद्ध और पुतिन के लिए जनता का समर्थन बढ़ाने में योगदान दिया है।

प्रश्न-3. चीन और वियतनाम एक दूसरे के करीब आ रहे हैं, क्या यह भारत के लिए खतरा हो सकता है?

उत्तर- भारत और वियतनाम के संबंध बहुत प्रगाढ़ हैं। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के ऐतिहासिक संबंध हैं जिसे चीन तो क्या कोई भी ताकत नहीं हिला सकती। उन्होंने कहा कि साथ ही हमें यह भी समझने की जरूरत है कि वियतनाम को भी अपने हित में किसी देश से संबंध बनाने या सुधारने का पूरा अधिकार है। उन्होंने कहा कि चीन और वियतनाम कम्युनिस्ट देश हैं लेकिन दोनों की आपस में बनती नहीं है। उन्होंने कहा कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी छह साल बाद वियतनाम के दौरे पर पहुँचे हैं और इस दौरान दोनों देशों के बीच कई महत्वपूर्ण करार किये गये। उन्होंने याद दिलाया कि हाल ही में दिल्ली में संपन्न जी20 शिखर सम्मेलन के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन भी सीधा वियतनाम पहुँचे थे।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक भारत और वियतनाम के संबंधों की बात है तो अभी अक्टूबर महीने में ही विदेश मंत्री एस. जयशंकर वहां होकर आये थे। उन्होंने कहा कि इसके इस यात्रा के माध्यम से जयशंकर दुनिया को यह संदेश देने में सफल रहे कि भारत एक ऐसा देश बनकर उभरा है जो उच्च स्तर के आत्मविश्वास के साथ दुनिया में कहीं अधिक योगदान देने तथा विश्व के विरोधाभासों से सामंजस्य बिठाने में सक्षम है। उन्होंने कहा कि वियतनाम के साथ भारत के गहरे ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक जुड़ाव रहे हैं जिसको वर्तमान नेतृत्व आगे बढ़ा रहा है। उन्होंने कहा कि भारत और वियतनाम और अमेरिका तथा वियतनाम के बीच होने वाली हर वार्ता, मुलाकात और समझौते को चीन गिद्ध दृष्टि से देखता रहता है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि भारत और वियतनाम एशिया में दो सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाएं हैं। दोनों देशों के बीच 15 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार बहुत तेजी से और बढ़ सकता है। उन्होंने कहा कि भारत और वियतनाम लंबे समय से विश्वसनीय साझेदार रहे हैं। उन्होंने कहा कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने वियतनाम के प्रधानमंत्री फाम मिन्ह चिन्ह समेत शीर्ष नेतृत्व से मुलाकात कर दोनों देशों के बीच व्यापार, ऊर्जा, रक्षा और समुद्री सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के तरीकों पर चर्चा की थी जिसके सफल परिणाम आने वाले समय में देखने को मिलेंगे। इसके साथ ही जयशंकर ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत के दृष्टिकोण को साझा करते हुए इस क्षेत्र में चीन के आक्रामक व्यवहार को लेकर भी चर्चा की थी। साथ ही जयशंकर और वियतनाम के विदेश मंत्री ने भारत और वियतनाम के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना के 50 वर्ष पूरे होने के अवसर पर संयुक्त रूप से स्मारक डाक टिकट भी जारी किया था। दोनों नेताओं ने हनोई में 18वीं भारत-वियतनाम संयुक्त आयोग की बैठक की सह-अध्यक्षता भी की थी। उन्होंने कहा कि दोनों देशों की चर्चाओं में राजनीतिक, रक्षा और समुद्री सुरक्षा, न्यायिक, व्यापार एवं निवेश, ऊर्जा, विकास, शिक्षा एवं प्रशिक्षण, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के अलावा सांस्कृतिक क्षेत्र में सहयोग शामिल था। उन्होंने कहा कि दोनों पक्ष व्यापार और निवेश गतिविधियों के लिए अनुकूल माहौल बनाने के लिए निकट समन्वय पर भी सहमत हुए थे जिसके तहत आपसी कारोबार को जल्द ही 20 अरब अमेरिकी डॉलर तक लाने का प्रयास किया जाएगा। 

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि भारत, अमेरिका तथा कई अन्य शक्तिशाली देश संसाधन संपन्न क्षेत्र में चीन के बढ़ते कदमों के बीच स्वतंत्र, खुले और समृद्ध हिंद प्रशांत क्षेत्र सुनिश्चित करने की जरूरत पर लगातार जोर देते रहे हैं। उन्होंने कहा कि चीन विवादित दक्षिण चीन सागर के लगभग पूरे हिस्से पर अपना दावा करता है, हालांकि ताइवान, फिलीपीन, ब्रुनेई, मलेशिया और वियतनाम सभी इसके कुछ हिस्सों पर दावा करते हैं। उन्होंने कहा कि बीजिंग ने दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीप और सैन्य प्रतिष्ठानों का निर्माण किया है। चीन का पूर्वी चीन सागर में जापान के साथ भी क्षेत्रीय विवाद है। उन्होंने कहा कि दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन (आसियान) को इस क्षेत्र के सबसे प्रभावशाली समूहों में से एक माना जाता है, तथा भारत और अमेरिका, चीन, जापान और ऑस्ट्रेलिया सहित कई अन्य देश इसके संवाद भागीदार हैं। उन्होंने कहा कि देखा जाये तो चीन ने फिशिंग बोट्स के नाम पर दक्षिण चीन सागर में हजारों नावें छोड़ रखी हैं जबकि इनका असल काम जासूसी करना है जिससे इस क्षेत्र के सारे देश परेशान हैं। 

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक चीनी राष्ट्रपति की वियतनाम यात्रा की बात है तो इस दौरान चीन और वियतनाम "साझा भविष्य" के लिए सुरक्षा मामलों पर सहयोग बढ़ाने पर सहमत हुए। उन्होंने कहा कि दोनों कम्युनिस्ट पड़ोसियों ने दर्जनों सहयोग समझौतों पर हस्ताक्षर किए और विवादित जल क्षेत्र में किसी भी आपात स्थिति की संभावना को टालने के लिए और अधिक हॉटलाइन स्थापित करने पर भी सहमति व्यक्त की। उन्होंने कहा कि 16 पेज के संयुक्त बयान में दोनों देशों ने रक्षा उद्योग संबंधों और खुफिया आदान-प्रदान को मजबूत करने के लिए और अधिक निकटता से काम करने की बात कही है। उन्होंने कहा कि चीनी राष्ट्रपति की वियतनाम यात्रा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह इस साल उनकी किसी एशियाई देश की पहली यात्रा थी। उन्होंने कहा कि वियतनाम ने सितंबर में अमेरिका को अपनी राजनयिक रैंकिंग में चीन के बराबर उच्चतम स्तर पर पहुंचा दिया था इसलिए चीन सतर्क हो गया और शी जिनपिंग ने अपने कम्युनिस्ट पड़ोसी से संबंध सुधारने की पहल की। उन्होंने कहा कि देखा जाये तो चीनी राष्ट्रपति ने इस साल रूस, दक्षिण अफ्रीका और अमेरिका के बाद अब वियतनाम की यात्रा की है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि चीन वियतनाम में अपना निवेश बढ़ा रहा है। माना जा रहा है कि चीन के निवेश वाले क्षेत्र टेलीकॉम, इंफ्रास्ट्रक्चर, सैटेलाइट ग्राउंड ट्रैकिंग स्टेशन और डेटा सेंटर आदि हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि इसके अलावा चीन की नजर वियतनाम के महत्वपूर्ण खनिजों पर भी है। शी जिनपिंग ने वियतनामी राज्य समाचार पत्र में एक लेख में महत्वपूर्ण खनिजों पर व्यापक सहयोग का आग्रह किया था। हालाँकि, संयुक्त बयान में दोनों देश प्रमुख खनिजों पर सहयोग के तरीके तलाशने पर सहमत हुए हैं। उन्होंने कहा कि अनुमान है कि वियतनाम के पास चीन के बाद दुर्लभ पृथ्वी का दूसरा सबसे बड़ा भंडार है, इसकी सबसे बड़ी खदानें उस क्षेत्र में स्थित हैं जहां चीन के समर्थन से रेल नेटवर्क स्थापित करने की बात कही गयी है। उन्होंने कहा कि वियतनाम में दुर्लभ पृथ्वी अयस्कों के निर्यात पर सख्त नियम हैं क्योंकि वह इन्हें अपने यहां ही संसाधित करना चाहता है लेकिन उसकी मुश्किल यह है कि उसके पास तकनीक नहीं है लेकिन अब चीन उसे तकनीक देने पर राजी दिख रहा है। उन्होंने कहा कि लेकिन कुल मिलाकर देखें तो वियतनामी जनता के मन में चीन के प्रति आशंका और अविश्वास की भावना है। उन्होंने कहा कि यह बात वियतनाम की सरकार भी समझती है इसलिए दोनों देश कागज पर कितने भी समझौते कर लें लेकिन हकीकत में ज्यादा कुछ होना मुश्किल नजर आ रहा है।

प्रश्न-4. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने गणतंत्र दिवस समारोह में नहीं आने का फैसला किया है जिसके बाद कहा जा रहा है कि गुरपतवंत सिंह पन्नू मामले को लेकर भारत-अमेरिका के संबंधों में खटास आई है। इसे कैसे देखते हैं आप?

उत्तर- भारत और अमेरिका के संबंध अपने सबसे बेहतर दौर में हैं और किसी एकाध घटना का दोनों देशों के रिश्तों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। उन्होंने कहा कि आज का दौर किसी एक क्षेत्र में नहीं बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में रिश्ते मजबूत करने का है और भारत तथा अमेरिका इसी ओर ध्यान दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह सही है कि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन अगले महीने गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल होने के लिए भारत यात्रा पर नहीं आएंगे। उन्होंने कहा कि इसके चलते भारत क्वाड सम्मेलन को अगले साल जनवरी के बजाय बाद में किसी तारीख पर आयोजित करने पर विचार कर रहा है। भारत की क्वाड सम्मेलन को पहले जनवरी में कराने की योजना थी।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि बाइडन ने गणतंत्र दिवस पर नहीं आने का निर्णय इसलिए लिया है क्योंकि जनवरी के अंत या फरवरी की शुरुआत में ‘स्टेट ऑफ द यूनियन’ संबोधन है जिसके लिए राष्ट्रपति को काफी तैयारी करनी पड़ती है। इसके अलावा बाइडन का फिर से राष्ट्रपति चुनाव लड़ने पर ध्यान देना और हमास-इज़राइल संघर्ष पर वाशिंगटन की बढ़ती तवज्जो आदि कारणों की वजह से भी बाइडन का दौरा टला है। उन्होंने कहा कि हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि पिछले कुछ महीनों में अमेरिका के कई वरिष्ठ अधिकारियों ने भारत यात्रा की है। पिछले महीने अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने 'टू प्लस टू' मंत्रिस्तरीय वार्ता के लिए भारत का दौरा किया था। अमेरिकी प्रधान उप एनएसए जोनाथन फाइनर ने पिछले सप्ताह भारत का दौरा किया और हाल ही में एफबीआई निदेशक क्रिस्टोफर रे दिल्ली की यात्रा पर आये थे। इसलिए भारत-अमेरिका रिश्ते खराब होने का सवाल ही पैदा नहीं होता।

प्रश्न-5. भारत सरकार के कई मंत्रियों ने कहा कि पीओके वापस लाएंगे, अब आरएसएस के एक नेता ने कहा है कि सीओके भी वापस आना चाहिए? चीन के पास आखिर भारत की कितनी भूमि है और क्या चीन से अपनी भूमि वापस ले पाना संभव है?

उत्तर- पीओके तो हमारा ही है बस वहां अपना तिरंगा लहराना है। उन्होंने कहा कि जिस तरह पीओके की जनता भारत के समर्थन में नारे लगा रही है उसको देखते हुए वह दिन दूर नहीं जब वहां के लोग खुद ही पाकिस्तान पर दबाव बनाएंगे कि वह उन्हें भारत के साथ जाने दे। उन्होंने कहा कि पीओके के लोगों ने देखा है कि भारत में जम्मू-कश्मीर का किस तेजी से विकास हुआ है जबकि दूसरी ओर पीओके के संसाधनों को लूटने वाली पाकिस्तान सरकार ने उस क्षेत्र के साथ लगातार भेदभाव बरता है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक चीन के पास भारत की भूमि की बात है तो यह सर्वविदित है कि उसने 1965 की लड़ाई में भारतीय भूभाग पर कब्जा किया था। उन्होंने कहा कि इसके अलावा पाकिस्तान ने पीओके का कुछ इलाका भी चीन को दिया है जिसे हमें वापस लाना ही होगा। उन्होंने कहा कि समस्या यह है कि भारत और चीन के बीच कोई सीमा रेखा निर्धारित नहीं है इसलिए अक्सर तनाव की खबरें आती रहती हैं। उन्होंने कहा कि चीन लद्दाख के कुछ क्षेत्र पर जिस तरह खुलेआम दावा करता है तो हमें भी उसके कब्जे वाले तिब्बत पर इसी प्रकार का दावा करना चाहिए। उन्होंने कहा कि पूर्व की सरकारों के दौरान चीन के मुकाबले सैन्य ढांचे को विकसित करने पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया इसीलिए हम पिछड़े रहे लेकिन अब हालात तेजी से बदले हैं और हम मजबूत हुए हैं। उन्होंने कहा कि चाहे डोकलाम हो, चाहे गलवान हो या फिर तवांग, सभी जगह हमने चीन को आगे बढ़ने से रोका है जिससे ड्रैगन को यह समझ आ गया है कि भारतीय सेना इतनी मजबूत है कि हमें आगे तो कतई नहीं बढ़ने देगी। उन्होंने कहा कि जहां तक 1965 में चीन के कब्जे में गयी भारतीय भूमि को वापस छुड़ाने की बात है तो उसके लिए हमें दो मोर्चों पर लगातार काम करना होगा। उन्होंने कहा कि एक तो हमें लगातार अपने सैन्य बलों को मजबूत और सीमा पर बुनियादी ढांचे को विकसित करना होगा साथ ही राजनयिक माध्यम से भी वार्ता जारी रखनी होगी। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान ने कहा था कि जिसकी सेना बलशाली होती है उस देश की राजनयिक वार्ताएं भी सफल होती हैं।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि यह स्पष्ट है कि यह युद्ध का युग नहीं है लेकिन यह भी पूरी तरह स्पष्ट है कि भारतीय सेना हमेशा युद्ध की स्थिति के लिए अपने को पूरी तरह से तैयार रखती है। यही नहीं हम एक साथ दो मोर्चों पर भी लड़ने के लिए तैयार रहते हैं। उन्होंने कहा कि हमें यह भी समझने की जरूरत है कि चीन ने 1965 के बाद से कोई युद्ध नहीं लड़ा है जबकि भारत ने कई युद्ध लड़े और जीते हैं। उन्होंने कहा कि देशवासियों को इस बात के लिए आश्वस्त रहना चाहिए कि अखंड भारत का सपना एक दिन अवश्य पूरा होगा। स्थितियां भले तुरंत अनुकूल नहीं दिख रही हों लेकिन जल्द ही हालात ऐसे होंगे कि पीओके, सीओके हमारे साथ होंगे।

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़