Space Docking Mission: अंतरिक्ष में भारत की धाक, स्पैडेक्स के प्रक्षेपण पर केंद्रीय मंत्री ने जताई खुशी

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ANI
अभिनय आकाश । Dec 31 2024 11:37AM

इसरो के प्रमुख एस सोमनाथ ने कहा कि रॉकेट ने 15 मिनट की उड़ान के बाद उपग्रहों को 475 किलोमीटर की वृत्ताकार कक्षा में स्थापित कर दिया है। उन्होंने मिशन नियंत्रण केंद्र से अपने संबोधन में कहा कि रॉकेट ने दोनों अंतरिक्ष यान को सही कक्ष में स्थापित कर दिया है तथा स्पैडेक्स उपग्रह एक के पीछे एक चले गए हैं तथा समय के साथ यह और अधिक दूरी तय करेगा।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने दो अंतरिक्ष यान सफलतापूर्वक लॉन्च किए हैं जो भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों के लिए डॉकिंग नामक एक महत्वपूर्ण तकनीक का प्रदर्शन करने में मदद करेंगे।  इसरो के दो अंतरिक्ष यान सोमवार की देर रात सफलतापूर्वक एक दूसरे से अलग हो गए और उन्हें वांछित कक्षा में स्थापित कर दिया गया। अंतरिक्ष एजेंसी ने इसकी जानकारी दी। स्पैडेक्स मिशन के सफल प्रक्षेपण पर केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने खुशी जताई। उन्होंने कहा कि भारत स्वदेशी रूप से विकसित भारतीय डॉकिंग सिस्टम के माध्यम से अंतरिक्ष डॉकिंग हासिल करने वाले चुनिंदा देशों की सूची में शामिल होने वाला चौथा देश बन गया है।  

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इसरो के प्रमुख एस सोमनाथ ने कहा कि रॉकेट ने 15 मिनट की उड़ान के बाद उपग्रहों को 475 किलोमीटर की वृत्ताकार कक्षा में स्थापित कर दिया है। उन्होंने मिशन नियंत्रण केंद्र से अपने संबोधन में कहा कि रॉकेट ने दोनों अंतरिक्ष यान को सही कक्ष में स्थापित कर दिया है तथा स्पैडेक्स उपग्रह एक के पीछे एक चले गए हैं तथा समय के साथ यह और अधिक दूरी तय करेगा। यह लगभग 20 किमी दूर तक जाएगा जिसके बाद इन्हें मिलाने और डॉकिंग प्रक्रिया शुरू होगी। हम आशा करते हैं कि डॉकिंग प्रक्रिया अगले एक सप्ताह में पूरी हो जाएगी। उम्मीद है कि सात जनवरी तक प्रक्रिया पूरी हो सकती है।

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इस अभियान को इसरो द्वारा 2035 तक खुद का अंतिरक्षस्टेशन स्थापित करने से पहले का एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। पीएसएलवी सी-60 अभियान के कारण भारत एक विशिष्ट क्लब में शामिल हो जाएगा, क्योंकि वह इस महत्वपूर्ण लक्ष्य को कुछ दिन में हासिल कर लेगा। पीएसएलवी रॉकेट की लंबाई44.5 मीटर है और इसके जरियेदो अंतरिक्ष यान- स्पेसक्राफ्ट ए (एसडीएक्स01) और स्पेसक्राफ्ट बी (एसडीएक्स02) को भेजा गया, जिसमें प्रत्येक का वजन 220 किलोग्राम है। इससे स्पेस डॉकिंग, सैटेलाइट सर्विसिंग और अंतरग्रहीय मिशनों में मदद मिलेगी। 

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