Jan Gan Man: Section 6A को Assam से खत्म नहीं किया गया तो 15-20 साल बाद राज्य में घुसपैठियों की सरकार बनेगी!

supreme court ashwini upadhyaya
Prabhasakshi

1985 में संशोधित किये गये नागरिकता अधिनियम के अनुसार जो लोग 1 जनवरी 1966 को या उसके बाद लेकिन 25 मार्च 1971 से पहले बांग्लादेश सहित निर्दिष्ट क्षेत्रों से असम आए हैं और तब से असम के निवासी हैं, उनको भारतीय नागरिकता दी जायेगी।

भारत की प्रगति और विकास का सारा श्रेय सिर्फ नेहरू-गांधी परिवार को ही देते रहने वाले कभी यह नहीं बताते कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने जम्मू-कश्मीर में धारा 35ए लगा कर इस प्रदेश को देश से कई मायनों में दूर कर दिया था। नेहरू की इस गलती को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35ए हटाकर सुधार दिया था जिससे जम्मू-कश्मीर का असल मायनों में भारत के साथ संपूर्ण विलय हो गया था। लेकिन अब सवाल यह है कि प्रधानमंत्री रहते हुए राजीव गांधी ने जो गलती की थी उसे कौन और कब सुधारेगा? हम आपको बता दें कि राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए असम में धारा 6ए लगा कर खतरनाक काम किया था। एक तरह से धारा 6ए के माध्यम से बांग्लादेश के अवैध घुसपैठियों को भारतीय नागरिकता देने की साजिश रची गयी और आबादी का संतुलन बिगाड़ कर अपने राजनीतिक स्वार्थ पूरे किये गये। लेकिन अब स्थिति खतरनाक स्वरूप ले चुकी है इसीलिए इस मुद्दे का समाधान जल्द से जल्द किया जाना बेहद जरूरी हो गया है।

उच्चतम न्यायालय इस मुद्दे की सुनवाई कर रहा है मगर न्यायालय ने असम में नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए के लाभार्थियों पर आंकड़ा मांगते हुए कहा है कि उसके सामने ऐसी कोई सामग्री नहीं है जो यह संकेत दे सके कि 1966 और 1971 के बीच बांग्लादेशी प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रभाव इतना बड़ा था कि इसका जनसांख्यिकीय और सीमावर्ती राज्य की सांस्कृतिक पहचान पर असर पड़ा। इस मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और भारत के पीआईएल मैन के रूप में विख्यात अश्विनी उपाध्याय का कहना है कि अगर 6ए को तत्काल खत्म नहीं किया गया और असम से तत्काल घुसपैठियों को बाहर नहीं किया गया तो आज से 15-20 साल बाद राज्य में जो सरकार बनेगी वह घुसपैठियों की सरकार बनेगी।

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क्या है 6ए?

हम आपको याद दिला दें कि भारत के नागरिकता अधिनियम में धारा 6ए को असम समझौते के अंतर्गत आने वाले लोगों की नागरिकता के मुद्दे से निपटने के लिए एक विशेष प्रावधान के रूप में जोड़ा गया था। 1985 में संशोधित किये गये नागरिकता अधिनियम के अनुसार जो लोग 1 जनवरी 1966 को या उसके बाद लेकिन 25 मार्च 1971 से पहले बांग्लादेश सहित निर्दिष्ट क्षेत्रों से असम आए हैं और तब से असम के निवासी हैं, उनको भारतीय नागरिकता दी जायेगी। हालांकि इसके लिए उन्हें धारा 18 के तहत खुद को पंजीकृत कराना होगा। इस प्रकार, उन बांग्लादेशी प्रवासियों को आसानी से नागरिकता प्रदान की जा सकती है, जो 25 मार्च 1971 से पहले असम आए थे।

उच्चतम न्यायालय ने क्या कहा?

जहां तक उच्चतम न्यायालय में मंगलवार को हुई सुनवाई की बात है तो आपको बता दें कि असम में सीमा पार घुसपैठ की समस्या को स्वीकार करते हुए, प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने बांग्लादेश की मुक्ति के लिए 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के मानवीय पहलू का उल्लेख किया, जिसके कारण शरणार्थी आए। पीठ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे। पीठ ने असम में अवैध प्रवासियों से संबंधित नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता की जांच करने के लिए 17 याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की।

वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने पीठ से कहा कि शरणार्थियों की आमद और विशेष प्रावधान के कारण मूल निवासियों के सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक और अन्य अधिकार प्रभावित हो रहे हैं। इस पर पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता से कहा, “लेकिन आपके तर्क का परीक्षण करने के लिए हमारे सामने ऐसी कोई सामग्री नहीं है जो यह बताए कि 1966-71 के बीच आए नागरिकों को कुछ लाभ देने का प्रभाव इतना गंभीर था कि राज्य की जनसांख्यिकीय और सांस्कृतिक पहचान उन पांच वर्षों से प्रभावित हुई थी।” न्यायालय ने कहा, “हां, हमें यह देखना होगा कि क्या धारा 6ए का प्रभाव ऐसा था कि 1966 से 1971 के बीच राज्य में जनसांख्यिकी में इस हद तक आमूलचूल परिवर्तन हुआ कि असम की सांस्कृतिक पहचान प्रभावित हो गयी।” पीठ ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से 1966 से 16 जुलाई 2013 तक कानून के लाभार्थियों पर डेटा प्रदान करने के लिए कहा। मेहता ने आश्वासन दिया कि वह इसे दाखिल करेंगे। सॉलिसिटर जनरल ने पहले राज्यसभा में एक सांसद द्वारा पेश किए गए आंकड़ों का हवाला दिया और कहा कि 1966 और 1971 के बीच 5.45 लाख अवैध अप्रवासी असम आए थे। उन्होंने कहा कि 1951 से 1966 तक यह आंकड़ा 15 लाख था।

हम आपको यह भी बता दें कि प्रावधान का विरोध करने वाले असम के कई याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए दीवान ने कहा कि इसने संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन किया है। याचिकाकर्ताओं ने केवल पूर्वोत्तर राज्य पर लागू होने वाली नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए को चुनौती देते हुए न्यायालय से कहा कि इससे असम के स्थानीय लोग अपनी ही मातृभूमि में भूमिहीन और विदेशी बनने के लिए बाध्य हैं। इस मुद्दे पर 2009 में गैर सरकारी संगठन असम पब्लिक वर्क्स द्वारा दायर याचिका सहित कम से कम 17 याचिकाएं शीर्ष अदालत में लंबित हैं।

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