Bail is rule, jail is an exception: सरकार नहीं सुनेगी, पुलिस नहीं सुनेगी तो भी No Tension, कोर्ट है न, जो आपकी सुनेगी और न्याय देगी

Bail
ANI
अभिनय आकाश । Aug 24 2024 3:59PM

आज भी लोग भरोसा करते हैं न्यायपालिका पर। उनको भरोसा होता है कि अगर सरकार उनकी बात नहीं सुनेगी, प्रशासन उनकी बात नहीं सुनेगा, पुलिस उनकी बात नहीं सुनेगी तो कोर्ट सुनेगी उनकी बात और न्याय देगी।

ब्रिटिश विचारक जॉन स्टुअर्ट मिल की लाइन Justice delayed is justice denied न्याय के क्षेत्र में प्रयोग किया जाने वाली लोकप्रिय सूक्ति है। इसका भावार्थ यह है कि यदि किसी को न्याय मिल जाता है किन्तु इसमें बहुत अधिक देरी हो गयी हो तो ऐसे 'न्याय' की कोई सार्थकता नहीं होती। लेकिन आज भी हिन्दुस्तान में जब कहीं दो लोगों के बीच में झगड़ा होता है, कोई विवाद होता है तो वे एक-दूसरे से कहते हुए पाए जाते हैं- ‘आई विल सी यू इन कोर्ट’। क्योंकि आज भी लोग भरोसा करते हैं न्यायपालिका पर। उनको भरोसा होता है कि अगर सरकार उनकी बात नहीं सुनेगी, प्रशासन उनकी बात नहीं सुनेगा, पुलिस उनकी बात नहीं सुनेगी तो कोर्ट सुनेगी उनकी बात और न्याय देगी। 

इसे भी पढ़ें: Land For Job Case: लालू-तेजस्वी को मिली फौरी राहत! कोर्ट ने समन का आदेश टाला, अब 7 सितंबर को होगी अगली सुनवाई

स्वतंत्रता के बाद से ही भारत में जमानत के न्यायशास्त्र का आधार संविधान का अनुच्छेद 21 रहा है। ये अनुच्छेद न केवल जीवन के रक्षा की गारंटी देता है बल्कि स्वतंत्रता को लेकर ये आदेश भी देता है कि स्वतंत्रता से केवल कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के माध्यम से ही वंचित किया जा सकता है। ये प्रक्रिया न्यायपूर्ण, निष्पक्ष और उचित होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने बार बार दोहराया है कि जमानत नियम है और जेल अपवाद। आए दिन जमानत को लेकर कुछ न कुछ खबर आती रही है। इसलिए इस बात पर बहस तेज हो गई है जमानत से जुड़े प्रावधान आखिर हैं क्या? चाहे दिल्ली शराब नीति कानून के मामले में मनीष सिसोदिया को जमानत देने की बात हो या सुप्रीम कोर्ट की तरफ से जीने का अधिकार सबसे ऊपर बताया जाना। 

दाएं हाथ से दी गई चीज बाएं हाथ से छीनने जैसा

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जमानत प्रदान करना और फिर भारी शर्तें लगाना दाएं हाथ से दी गई चीज बाएं हाथ से छीनने जैसा है। कोर्ट ने कहा कि ऐसा आदेश जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्ति के मौलिक अधिकार की रक्षा करेगा और उसकी उपस्थिति की गारंटी देगा, वह तर्कसंगत होगा। न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर अपना फैसला सुनाया, जिसके खिलाफ धोखाधड़ी सहित विभिन्न अपराधों के लिए कई राज्यों में 13 प्राथमिकियां दर्ज हैं। याचिकाकर्ता ने न्यायालय में दलील दी थी कि उसे इन 13 मामलों में जमानत दी गई थी और उसने इनमें से दो मामलों में जमानत की शर्तें पूरी की हैं। 

इसे भी पढ़ें: Yes Milord: आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला दे दिया, किसान मुद्दे को हल करने के लिए बनेगी कमेटी, जानें इस हफ्ते कोर्ट में क्या हुआ

जमानतदार ढूंढ़ने में कठिनाई  का सामना करना पड़ रहा 

सुप्रीम कोर्ट कहा कि याचिकाकर्ता की मुख्य दलील यह थी कि वह अलग-अलग जमानतदार देने की स्थिति में नहीं है, जैसा कि शेष 11 जमानत आदेशों में निर्देश दिया गया है। पीठ ने कहा कि आज स्थिति यह है कि 13 मामलों में जमानत मिलने के बावजूद याचिकाकर्ता जमानतदार नहीं दे पाया है। कोर्ट ने कहा रि जमानत देना और उसके बाद भारी एवं दूभर शर्तें लगाना, जो चीज दाहिने हाथ से दी गई है, उसे बाएं हाथ से छीनने के समान है। मामले का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को कई जमानतदार ढूंढ़ने में वास्तविक कठिनाई  का सामना करना पड़ रहा है। पीठ ने कहा कि जमानत पर रिहा हुए आरोपी की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए जमानतदार होना आवश्यक है। न्यायालय ने कहा कि जमानतदार अकसर कोई करीबी रिश्तेदार या पुराना मित्र होता है तथा आपराधिक कार्यवाही में यह दायरा और भी कम हो सकता है, क्योंकि सामान्य प्रवृत्ति यह होती है कि अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए ऐसी कार्यवाही के बारे में रिश्तेदारों और मित्रों को नहीं बताया जाता। पीठ ने कहा कि ये हमारे देश में जीवन की भारी वास्तविकताएं हैं और एक अदालत के रूप में हम इनसे आंखें नहीं मूंद सकते। हालांकि, इसका समाधान कानून के दायरे में ही तलाशना होगा।

इसे भी पढ़ें: 5 सितंबर तक जेल में ही रहेंगे केजरीवाल, गिरफ्तारी के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टली

जमानत नियम है और जेल अपवाद

इससे पहले दिल्ली शराब नीति मामले में मनीष सिसोदिया को जमानत देते हुए बिना ट्रायल लंबे समय तक जेल में रखने के संबंध में कड़ी टिप्पणियां भी थी। ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट द्वारा जमानत देने के मामलों में सेफ रहने की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता जताते हुए शीर्ष अदालत ने उन्हें याद दिलाया कि जमानत नियम है और जेल अपवाद। न्यायमूर्ति बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ ने सिसोदिया को जमानत देते हुए आदेश में कहा है कि अपराध में दोषी घोषित होने से पहले लंबी अवधि तक जेल में रखने की इजाजत नहीं होनी चाहिए, जो कि बिना ट्रायल के ही दंड बन जाए। जल्दी ट्रायल पूरा होने की उम्मीद में मनीष सिसोदिया को अनिश्चितकाल तक जेल में रखने से अनुच्छेद 21 में मिला उनका स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार छिनता है।

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़