चीन पर कभी यकीन नहीं किया जा सकता

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अशोक मधुप । Sep 16 2024 12:44PM

भारत चीन सीमा विवाद के सुलझने के संकेत 12 सितम्बर को ही सेंट पीटर्सबर्ग में ब्रिक्स एनएसए लेवल की समिट के साइडलाइन्स पर हुई उस बैठक के दौरान ही दिख गए थे जो एनएसए अजित डोभाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच हुई थी।

लगातार चार साल से चले आ रहे भारत चीन के बीच तनाव के कम होने के संकेत हैं। भारत और चीन के द्विपक्षीय संबंधों को लेकर हाल में घटनाक्रम बहुत तेजी से घटा है। चीन भारत सीमा से सेना का पीछे हटना बहुत अच्छा है किंतु चीन की बात पर आंख मूंदकर यकीन नहीं किया जा सकता। समझौते करने के बाद अपनी बात से मुकरना उसकी आदत रही है। धोखा देना चीन का चरित्र है। उस पर पूरी तरह से नजर रखनी होगी। उसकी चाल के अनुरूप हमें अपना व्यवहार और तैयारी करना होंगी।

भारत चीन सीमा विवाद के सुलझने के संकेत 12 सितम्बर को ही सेंट पीटर्सबर्ग में ब्रिक्स एनएसए लेवल की समिट के साइडलाइन्स पर हुई उस बैठक के दौरान ही दिख गए थे जो एनएसए अजित डोभाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच हुई थी। भारतीय विदेश मंत्रालय की ओर से बैठक के बाद जारी प्रेस नोट में इस बात का जिक्र था कि दोनों देशों ने बचे हुए क्षेत्रों में भी पूर्ण डिसएंगेजमेंट की दिशा में काम करने को लेकर सहमति जताई है। जानकार मानते हैं कि गतिरोध दूर करने करने की दिशा में ले जाने की प्रक्रिया एकाएक नहीं होती। इसके लिए बैकग्राउंड में काम होता रहता है ।

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ओआरएफ में फेलो और चीन मामलों के जानकार कल्पित मणकिकर कहते हैं कि ऐसा एक लंबी प्रक्रिया के तहत होता है। दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और दोनों देशों के विदेश मंत्री लगातार मुलाकात करते आ रहे हैं। पिछले चार सालों से बॉर्डर मुद्दों को सुलझाने को लेकर कोशिशें लगातार हो रही है। सेना के कमांडर स्तर पर बातें अलग से होती रही हैं। भारत और चीन दोनों की ओर से इस तरह की कोशिशें की जा रही थी। हालांकि अब जो दिख रहा है, उसके मद्देनजर इस तरह की कोशिशें क्या दिशा लेंगी, इसे लेकर अभी वेट एंड वॉच की स्थिति में ही रहा जा सकता है। बॉर्डर पर आए गतिरोध के मद्देनजर विदेश मंत्रियों और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की बैठकें किए जाने का एक मैकेनिज्म तैयार किया गया है।

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पूर्वी लद्दाख में सीमा मुद्दे पर 12 सितम्बर को कहा कि सैनिकों की वापसी से संबंधित मुद्दे लगभग 75 प्रतिशत तक सुलझ गए हैं लेकिन बड़ा मुद्दा सीमा पर बढ़ते सैन्यीकरण का है। जिनेवा में थिंकटैंक के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि जून 2020 में गलवन घाटी में हुए टकराव ने भारत-चीन संबंधों को समग्र रूप से प्रभावित किया।

जयशंकर ने कहा कि विवादित मुद्दों का समाधान ढूंढ़ने के लिए दोनों पक्षों में बातचीत चल रही है। हमने कुछ प्रगति की है। मोटे तौर पर सैनिकों की वापसी संबंधी करीब तीन-चौथाई मुद्दों का हल निकाल लिया गया है। लेकिन इससे भी बड़ा मुद्दा यह है कि हम दोनों ने अपनी सेनाओं को एक-दूसरे के करीब ला दिया है और इस लिहाज से सीमा का सैन्यीकरण हो रहा है।

सूत्रों का कहना है कि भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच पूर्वी लद्दाख में कुछ टकराव वाले बिंदुओं पर गतिरोध बना हुआ है। भारत कहता रहा है कि सेना के पूर्व स्थान पर पहुंचे बिना सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति नहीं होगी, चीन के साथ संबंध सामान्य नहीं हो सकते। जयशंकर ने कहा कि 2020 में जो कुछ हुआ, वह कुछ कारणों से कई समझौतों का उल्लंघन था जो अभी भी हमारे लिए पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हैं। चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर बहुत बड़ी संख्या में सैनिकों को तैनात किया और स्वाभाविक रूप से जवाबी तौर पर हमने भी अपने सैनिकों को भेजा।

2020 की झड़प के बाद से दोनों देश सीमा पर बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए भी प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, जिसे वास्तविक नियंत्रण रेखा के रूप में भी जाना जाता है। भारत द्वारा उच्च ऊंचाई वाले हवाई अड्डे तक एक नई सड़क का निर्माण चीनी सैनिकों के साथ 2020 में होने वाली घातक झड़प के मुख्य कारणों में से एक माना जा रहा है ।

इस बार चीनी सेना के सीमा से पीछे हटने का कारण चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति के राजनीतिक ब्यूरो के सदस्य वांग काबयान भी है। उन्होने इस बात पर जोर दिया कि अशांत विश्व का सामना करते हुए, दो प्राचीन पूर्वी सभ्यताओं और उभरते विकासशील देशों के रूप में चीन और भारत को स्वतंत्रता पर दृढ़ रहना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि एकता और सहयोग का चयन करना चाहिए तथा एक-दूसरे को नुकसान पहुंचाने से बचना चाहिए। वांग ने उम्मीद जताई कि दोनों पक्ष व्यावहारिक दृष्टिकोण के जरिए अपने मतभेदों को उचित ढंग से हल करेंगे और एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करने का उचित तरीका ढूंढेंगे। चीन-भारत संबंधों को स्वस्थ, स्थिर और सतत विकास के रास्ते पर वापस लाएंगे।

इतना सब हो रहा है पर जरूरी यह है कि दोनों का मई 2020 की यथास्थिति पर वापस लौटना ही समाधान है। निश्चित रूप से पीछे हटना समाधान नहीं है। यदि निश्चित रूप से समाधान के रास्ते पर चले तो भारत नुकसान में ही रहेगा। इन सब को देखकर भारत को चलना होगा। मई 2020 की स्थिति पर चीन सहमत होगा, ऐसा नही लगता।

सीमा विवाद के चार साल के दौरान समाचार आए की चीन सीमा पर नए हवाई अड्डे−सैनिक छावनी उनके लिए बंकर बना रहा है। अपने सीमा से सटे क्षेत्र में गांव विकसित कर रहा है। भारतीय क्षेत्र के स्थानों क नाम बदल रहा है। हांलाकि विवाद की अवधि में भारत ने भी सीमा पर सुरक्षा ढांचा विकसित किया है। नए एयरबेस तैयार कर रहा है। ठंडे स्थानों में रहने के लिए सैनिकों को प्रशिक्षित करने के साथ ही उनके लिए बर्फ के दौरान भी रहने के लिए सोलर से गर्म करने वाले उनके टैंट बना रहा है। इस प्रक्रिया को भारत का और तेज करना होगा। सीमा रेखा के सटाकर गांव विकसित करने होंगे तोकि चीन की गतिविधि पर नजर रखी जा सके। एक तरह से चीन की प्रत्येक कार्रवाई का उत्तर उसके कदम ही से आगे बढकर देना होगा।

एक बात और चीन कभी का काबू में आ गया होगा, काश हम भारतीय सही अर्थ में देशभक्त होते। मई 2020 में चीन से विवाद होने पर भारतीयों की फेसबुक पर बड़ी देशभक्ति दिखाई दी। लगाकि अब भारत में चीन का बना सामान नही आएगा। दीपावली पर व्यापारियों के आंकड़े भी आए कि चीन से बना कोई सामान नही मंगाया गया। जबकि आंकड़े इसके विपरीत हैं। आर्थिक शोध संस्थान ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) के अनुसार वित्त वर्ष 2023-24 में भारत और चीन के बीच कुल 118.4 अरब डॉलर का व्यापार हुआ। वहीं, अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार 118.3 अरब डॉलर रहा। 2021-22 और 2022-23 में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार अमेरिका रहा था। अब चीन है। अमेरिका से हम अस्त्र−शस्त्र जैसे महंगे सामान लेते हैं। इसलिए वहां से आयात जयादा होना चाहिए था। चीन जानता है कि भारतीय और भारतीय व्यापारी सस्ते के लालच में उसका ही माल खरीदेंगे। इसलिए वह हठधर्मी पर है, यदि चीन का आयात दस प्रतिशत भी घट गया होता तो चीन कभी का भारत के आगे झुककर समझौता करने को मजबूर हो   जाता।    

- अशोक मधुप

वरिष्ठ पत्रकार

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