समुंदर में दहाड़ेगा हिन्द का शेर, भागेगा चीन, पाकिस्तान होगा ढेर, विक्रांत से विक्रांत तक... एयरक्रॉफ्ट करियर की पूरी कहानी

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Prabhasakshi
अभिनय आकाश । Sep 2 2022 12:46PM

नए आईएनएस विक्रांत की तुलना में पुराने का विस्थापन आधे से भी कम था और वर्तमान पोत की 260 मीटर लंबाई के मुकाबले इसकी लंबाई 210 मीटर से अधिक थी।

"जो भी हिन्द महासागर पर नियंत्रण स्थापित कर लेगा, उसका एशिया पर वर्चस्व होगा।" अमेरिकी एडमिरल अल्फ्रेड थेयर माहन की 1897 में कही गयी ये बात आज भारत के लिए काफी प्रासंगिक हो गयी है। हिन्द महासागर पर प्रभुत्व स्थापित करने की होड़ बढ़ी हुई दिख रही है। इसी क्रम में आईएनएस विक्रांत के रूप में नौसेना में भारत के पहले स्वदेशी विमान वाहक (आईएसी-1) की कमीशनिंग एक निर्णायक क्षण है। स्वदेशी रूप से डिजाइन और निर्मित होने वाला पहला विमानवाहक पोत, आईएनएस विक्रांत 'ब्लू वाटर नेवी' के रूप में देश की स्थिति को मजबूत करेगा। इसके साथ भारत भी अमेरिका, रूस, फ्रांस, यूके और चीन जैसे देशों के समूह में भी शामिल हो गया है, जो विमान वाहक डिजाइन और निर्माण करने में सक्षम हैं। पूरी तरह से लोड होने पर 43,000 टन की विस्थापन क्षमता के साथ आईएनएस विक्रांत दुनिया में सातवां सबसे बड़ा एयरक्रॉफ्ट कैरियर होगा।

R11 विरासत, विक्रांत से विक्रांत तक

भारत के सामरिक हितों की रक्षा के लिए दीर्घकालीन नजरिये से समुद्री रणनीति को लागू करना जरूरी है। यह अहसास पचास के दशक में ही भारतीय नेतृत्व को हो गया था। आईएनएस विक्रांत, पताका संख्या R11 के साथ भारतीय नौसेना द्वारा संचालित पहला विमानवाहक पोत था। जहाज को आधिकारिक तौर पर 1943 में रखा गया था और द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होने के बाद से एचएमएस (हर मेजेस्टीज़ शिप) हरक्यूलिस के रूप में रॉयल नेवी के लिए बनाया जा रहा था। उस समय के कई अन्य जहाजों की तरह निर्माणाधीन एचएमएस हरक्यूलिस को यूनाइटेड किंगडम द्वारा बिक्री के लिए रखा गया था और 1957 में भारत द्वारा इसे खरीदा गया था। निर्माण कार्य पूरा हो गया था और ब्रिटेन से आयातित इस पोत को 1961 में आईएनएस विक्रांत के रूप में भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था। जो अब रिटायर हो चुका है। उसी के नाम पर नए स्वदेशी पोत का नाम विक्रांत रखा गया है। नए आईएनएस विक्रांत की तुलना में पुराने का विस्थापन आधे से भी कम था और वर्तमान पोत की 260 मीटर लंबाई के मुकाबले इसकी लंबाई 210 मीटर से अधिक थी। R11 ने 1971 के पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान पूर्वी पाकिस्तान की नौसेना नाकाबंदी का नेतृत्व किया। जहाज को 36 साल की सेवा के बाद 1997 में सेवामुक्त किया गया था। भारतीय नौसेना को दूसरा विमानवाहक पोत विराट भी 1988 में ब्रिटेन से ही खरीद कर दिया गया था। तब दक्षिण पूर्व एशिया के देशों ने भारत की समुद्री महत्वाकांक्षाओं में गैरजरूरी विस्तार का आरोप लगाया था। विराट भी अब रिटायर हो चुका है। करीब एक दशक पहले मिला तीसरा विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य रूस से आयातित था। अब  बनाने विक्रमादित्य के साथ विक्रांत भारतीय नौसेना की शान बनकर हिंद महासागर में उसके हितों की रक्षा में मुस्तैदी से तैनात रहेगा।

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कितने अहम होते हैं विमानवाहक पोत

विमानवाहक पोत कितने अहम होते हैं, ये 1961 के गोवा लिबरेशन वॉर और 1971 के बांग्लादेश लिबरेशन वॉर से पता लगता है। तब भारत के पास विमानवाहक पोत के रूप में पुराना विक्रांत था। नौसेना ने पुराना विक्रांत इंग्लैंड से 1961 में लिया था। गोवा लिबरेशन वॉर हो या 1971 का बांग्लादेश लिबरेशन वॉर, विक्रांत ने अहम भूमिका निभाई। थी। हालांकि 1997 में यह सेवा से बाहर हो गया। विक्रांत के अलावा विमानवाहक आईएनएस विराट भी 1987 से 2017 तक सेवा में रहा। हालांकि आईएनएस विक्रांत की तरह ये दोनों देश में नहीं बने थे।

 नाम, आदर्श वाक्य, पताका 

संस्कृत शब्द विक्रांत, जिसका अर्थ है साहसी, भगवद् गीता सहित विभिन्न शास्त्रों में अपनी उत्पत्ति पाता है। गीता के पहले अध्याय के छठे श्लोक में पांडवों की सेना के कुछ सेनापतियों की वीरता का वर्णन करते हुए 'विक्रांत' विशेषण का प्रयोग किया गया है। जहाँ तक शब्द की उत्पत्ति की बात है, संस्कृत शब्द में 'वी' उपसर्ग कुछ ऐसा दर्शाता है जो विशिष्ट या असाधारण है, और 'क्रांत' प्रत्यय का अर्थ है एक दिशा में आगे बढ़ना। ब्रिटिश मूल के सेंटौर-श्रेणी के विमानवाहक पोत विराट के शब्द का अर्थ उदार है, गीता के उसी अध्याय में बाद के एक श्लोक में भी पाया जा सकता है। भारतीय नौसेना की ओर से कहा गया है कि विक्रांत को शामिल करना और उनका पुनर्जन्म न केवल हमारी रक्षा तैयारियों को मजबूत करने की दिशा में उठाया गया एक और कदम है, बल्कि 1971 के युद्ध के दौरान देश की आजादी और हमारे बहादुर सैनिकों के लिए हमारे स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किए गए बलिदानों को भी हमारी विनम्र श्रद्धांजलि भी है। पताका संख्या R11 के साथ, नव स्थापित आईएनएस विक्रांत भी ऋग्वेद से अपने पूर्ववर्ती के आदर्श वाक्य - "जयमा सैम युधि स्पृद्ध" को आगे बढ़ाता है, जिसका अर्थ है- "मैं उन पर विजय प्राप्त करता हूं जो मेरे खिलाफ लड़ते हैं"।

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स्वदेशी डिजाइन और निर्माण

पुराने आईएनएस विक्रांत 1990 के दशक के अंत में बंद होने के करीब पहुंचने के बाद से ही एक स्वदेशी विमानवाहक पोत के निर्माण की योजना ने आकार लेना शुरू कर दिया था। इसके सेवानिवृत्त होने के बाद, भारत ने आईएनएस विराट पर भरोसा किया, जो उस समय एचएमएस हर्मीस के रूप में रॉयल नेवी के साथ अपने 25 साल के कार्यकाल के बाद 10 वर्षों से अधिक समय से भारतीय नौसेना की सेवा की। इस बीच, जनवरी 2003 में स्वदेशी विमान वाहक- I (IAC-I) के डिजाइन और निर्माण को मंजूरी दी गई थी। जहाजरानी मंत्रालय के तहत सार्वजनिक क्षेत्र की जहाज निर्माण इकाई कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (सीएसएल) को जहाज बनाने का काम सौंपा गया था। सीएसएल के लिए यह पहली युद्धपोत निर्माण परियोजना थी।

13 साल लगे बनाने में

  • फरवरी 2009 में इसे बनाने की शुरुआत हुई।
  • अगस्त 2013 में पहली बार विक्रांत को पानी मे उतारा गया।
  • नवंबर 2020 को इसका बेसिन ट्रायल शुरू हुआ।
  • जुलाई 2022 में समुंदर में ट्रायल पूरा हुआ, इसे बनाने वाले शिपयार्ड ने इसे नेवी को डिलीवर कर दिया।

इन वजहों से माना जा रहा महत्वपूर्ण

  • ये पोत समुद्र में जहां भी मौजूद होगा, उसके आसपास के एक से डेढ़ हजार मील के इलाके पर संपूर्ण नियंत्रण रखेगा। 
  • ये अपने इलाके में दुश्मन देश के पोत को फटकने की इजाजत नहीं देगा।
  • 31 लड़ाकू और टोही विमानों, हेलिकॉप्टरों और कई तरह की रक्षात्मक मिसाइलों से लैस स्वदेशी विमानवाहक पोत भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल होकर दुनिया को आगाह कर रहा है कि कोई भी हिंद महासागर पर बुरी नजर ना डाले।

विमान वाहक के निर्माण और संचालन की लागत

विमान वाहक के निर्माण और संचालन के संबंध में लागत हमेशा एक महत्वपूर्ण बिंदु रहा है।हालांकि, वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि IAC-II के निर्माण को मंजूरी देने के निर्णय में न केवल राजनीतिक, आर्थिक और रणनीतिक विचार हैं, बल्कि वैश्विक समुद्री शक्ति के रूप में भारत की एक अनुमानित स्थिति भी है। विक्रांत को करीब 20,000 करोड़ की लागत से बनाया गया है। नौसेना ने कहा है कि लगभग 80 से 85% रकम भारतीय इकोनामी में लगी है। इसमें 76% स्वदेशी सामग्री का उपयोग किया गया है। इससे 2000 सीएसएल कर्मियों को रोजगार दिया गया है। 13 हजार अन्य को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिला है। 

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