कॉर्टून से लेकर तेवर से भरे भाषणों तक, आम लोगों को राज ठाकरे में दिखता बाल ठाकरे का अक्स
2012 में बाला साहब ठाकरे के निधन के बाद शिवसेना की कमान पूरी तरह से उद्धव ठाकरे के हाथ में आ गई। दूसरी तरफ उद्धव के सामने राज ठाकरे चुनौती की तरह खड़े नजर आते रहे। ये राज ही तो थे जिन्होंने युवा सेना, कामगार सेना को आगे बढ़ाया।
राज ठाकरे जिनकी दहाड़ पूरे महाराष्ट्र में गूंजा करती है। जिनके एक इशारे पर जनसैलाब उमड़ पड़ता है। मंच पर खड़े होते ही पार्टी कार्यकर्ता जोश से भर जाते हैं। जिनके बारे में कभी ये भी कहा जाता था कि बाला साहेब ठाकरे के सिंहासन को अगर कोई संभाल सकता है तो वो राज ठाकरे ही हैं। लेकिन बाला साहेब के जीते जी शिवसेना की कमान संभालने को लेकर परिवार में फूट पड़ गई और शिवसेना की कमान उद्धव ठाकरे के हाथ में आ गई। जिससे नाराज होकर वर्ष 2006 में राज ठाकरे ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना यानी एमएनएस की स्थापना की। 2012 में बाला साहब ठाकरे के निधन के बाद शिवसेना की कमान पूरी तरह से उद्धव ठाकरे के हाथ में आ गई। दूसरी तरफ उद्धव के सामने राज ठाकरे चुनौती की तरह खड़े नजर आते रहे।
ये राज ही तो थे जिन्होंने युवा सेना, कामगार सेना को आगे बढ़ाया। शिवसेना ब्रांड ऑफ पॉलिटिक्स जिसमें यूथ पर बड़ा जोर था और उसी ताकत के जरिये बूथ मैनेजमेंट को संभाला। शिवसैनिक और आम लोग राज ठाकरे में बाल ठाकरे का अक्स, उनकी भाषण शैली और तेवर देखते थे और उन्हें ही बाल ठाकरे का स्वाभाविक दावेदार मानते थे, जबकि उद्धव ठाकरे राजनीति में बहुत दिलचस्पी नहीं लेते थे। राज ठाकरे अपने चाचा बाल ठाकरे की तरह अपनी बेबाक बयानबाजी को लेकर हमेशा चर्चाओं में रहे। स्वभाव से दबंग, फायर ब्रांड नेता राज ठाकरे की शिवसैनिकों के बीच लोकप्रियता बढ़ती जा रही थी। बाल ठाकरे को बेटे और भतीजे में से किसी एक को चुनना था। बालासाहब ठाकरे के दबाव के चलते उद्धव ठाकरे 2002 में बीएमसी चुनावों के जरिए राजनीति से जुड़े और इसमें बेहतरीन प्रदर्शन के बाद पार्टी में बाला साहब ठाकरे के बाद दूसरे नंबर पर प्रभावी होते चले गए। पार्टी में कई वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी करते हुए जब कमान उद्धव ठाकरे को सौंपने के संकेत मिले तो पार्टी से संजय निरूपम जैसे वरिष्ठ नेता ने किनारा कर लिया और कांग्रेस में चले गए। 2005 में नारायण राणे ने भी शिवसेना छोड़ दिया और एनसीपी में शामिल हो गए।
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बाला साहब ठाकरे के असली उत्तराधिकारी माने जा रहे उनके भतीजे राज ठाकरे के बढ़ते कद के चलते उद्धव का संघर्ष भी खासा चर्चित रहा। यह संघर्ष 2004 में तब चरम पर पहुंच गया, जब उद्धव को शिवसेना की कमान सौंप दी गई। जिसके बाद शिवसेना को सबसे बड़ा झटका लगा जब उनके भतीजे राज ठाकरे ने भी पार्टी छोड़कर अपनी नई पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बना ली। राज ठाकरे उसी चाल पर चलना चाहते थे जिस धार पर चलकर बाल ठाकरे ने अपनी उम्र गुजार दी। 27 नवम्बर 2005 को राज ठाकरे ने अपने घर के बाहर अपने समर्थकों के सामने घोषणा की। मैं आज से शिवसेना के सभी पदों से इस्तीफ़ा दे रहा हूं। पार्टी क्लर्क चला रहे हैं, मैं नहीं रह सकता। हालांकि राज ठाकरे का पार्टी छोड़कर जाने का दुख बाल ठाकरे को हमेशा से रहा।
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मनसे के गठन के बाद से ही राज ठाकरे का कभी बीजेपी से नजदीकी और दूरी का पल पल बदलता रिश्ता रहा है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने खुले तौर पर बीजेपी के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को सपोर्ट करने का ऐलान कर दिया और कहा कि लोकसभा चुनाव के बाद उनकी पार्टी एमएनएस नरेंद्र मोदी को समर्थन देगी। वक्त बदलता है और मोदी सरकार सत्ता में आती है। पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा करती है। फिर आता है 2019 का लोकसभा चुनाव। लेकिन इस दौरान एक बड़ा बदलाव देखने को मिलता है। पिछले चुनाव में नरेंद्र मोदी को बिन मांगे समर्थन देने वाले राज ठाकरे 2019 आते-आते विरोध में खड़े नजर आते हैं।
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