ब्रह्मांड के साथ भारत के विचार को दर्शाता फौकॉल्ट पेंडुलम, कैसे बनाया गया और क्या है इसकी खासियत, डिटेल में जानें
फौकॉल्ट पेंडुलम नाम 19वीं शताब्दी के फ्रांसीसी वैज्ञानिक लियोन फौकॉल्ट के नाम पर रखा गया है। ये पूरी तरह से पृथ्वी के रोटेशन पर आधारित है। जैसे-जैसे पृथ्वी अपनी धूरी पर घूमेगी, वैसे-वैसे समय का पता चलेगा।
भारत का नया संसद भवन बनकर तैयार है और 28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका उद्धाटन भी कर दिया है। भारत के नए संसद भवन के संविधान हॉल की त्रिकोणीय छत से फौकॉल्ट पेंडुलम एक बड़े रोशनदान से लटका हुआ है। जो अपनी धुरी पर घूमते हुए फर्श को छूता है। ये ब्रह्मांड के विचार के साथ भारत के विचार के एकीकरण का प्रतीक है। कोलकाता में नेशनल काउंसिल ऑफ साइंस म्यूजियम (NCSM) द्वारा निर्मित, पेंडुलम को भारत में अपने आप में ऐसा मास्टपीस बताया जा रहा है, जिसकी ऊंचाई 22 मीटर है, और इसका वजन 36 किलोग्राम है। जमीन पर पेंडुलम की गति को अनुमति देने के लिए एक गोलाकार स्थापना बनाई गई है, जिसके चारों ओर एक छोटी सी ग्रिल है। जहां विजिटर्स चारों ओर खड़े हो सकते हैं। स्थापना में प्रदर्शित विवरण के अनुसार, संसद के अक्षांश पर पेंडुलम को एक चक्कर पूरा करने में 49 घंटे, 59 मिनट और 18 सेकंड लगते हैं।
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फौकॉल्ट पेंडुलम क्या है?
फौकॉल्ट पेंडुलम नाम 19वीं शताब्दी के फ्रांसीसी वैज्ञानिक लियोन फौकॉल्ट के नाम पर रखा गया है। ये पूरी तरह से पृथ्वी के रोटेशन पर आधारित है। जैसे-जैसे पृथ्वी अपनी धूरी पर घूमेगी, वैसे-वैसे समय का पता चलेगा। ये पृथ्वी के घूर्णन को प्रदर्शित करने का एक सरल प्रयोग है। 1851 में जब फौकॉल्ट ने जनता के लिए यह प्रयोग किया, तो यह इस तथ्य का पहला प्रत्यक्ष प्रमाण था कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है। फौकॉल्ट पेंडुलम संविधान हॉल की त्रिकोणीय छत से एक बड़े रोशनदान से लटका हुआ है और ब्रह्मांड के साथ भारत के विचार को दर्शाता है। एक बार इधर-उधर गति करने के बाद, पेंडुलम को समय के साथ धीरे-धीरे अपना अभिविन्यास बदलते देखा जा सकता है।
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संसद के लिए पेंडुलम कैसे बनाया गया था?
पेंडुलम के सभी कंपोनेंट्स भारत में ही बने हैं। द इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए परियोजना प्रभारी तापस मोहराना बताते हैं कि इन्हें बनाने में उन्हें लगभग 10-12 महीने लगे। टीम में मोहराना, एनसीएसएम के क्यूरेटर, डी शतादल घोष और उनकी टीम शामिल थी। केंद्रीय अनुसंधान एवं प्रशिक्षण प्रयोगशाला (सीआरटीएल) एनसीएसएम की अनुसंधान एवं विकास इकाई है, जो संस्कृति मंत्रालय के तत्वावधान में कार्य करती है। मोहराना ने बताया कि उन्हें पिछले साल केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) से इसको लेकर फोन आया था। पेंडुलम के प्रतीकवाद और पवित्र इमारत में इसके प्रमुख स्थान को लेकर मोहराना का कहना है कि संविधान का अनुच्छेद 51ए प्रत्येक नागरिक को "वैज्ञानिक स्वभाव, मानवतावाद और जांच और सुधार की भावना विकसित करने" के लिए प्रतिष्ठापित करता है।
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