पांच दशक बाद काशी के कोतवाल बाबा काल भैरव ने छोड़ा कलेवर, जानिए क्या है मान्यता
इस दुर्लभ दुर्घटना के बाद मंदिर के महंत की अगुवाई में गांजे-बाजे और डमरू की आवाज के बीच शोभायात्रा निकाली गई। फिर गंगा में कलेवर को विसर्जित किया गया। 1971 में भी ऐसे ही कलेवर का विसर्जन किया गया था।
आज वाराणसी स्थित बाबा काल भैरव मंदिर में एक अचंभित घटना हुई। बाबा अचानक से अपना कलेवर छोड़ने लगे। मान्यता है कि बाबा का कलेवर यानी चोला तब छूटता है, जब पृथ्वी पर आने वाले किसी बड़े संकट को बाबा खुद पर ले लेते हैं। ऐसी ही दुर्लभ घटना 1971 में भी हुई थी। उसके बाद आज 2021 में ऐसा हुआ है। हालांकि, 14 वर्ष पूर्व यानी 2007 में भी कलेवर का कुछ अंश टूटकर गिरा था।
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भगवान शंकर के बाल स्वरूप और काशी के कोतवाल कहे जाने वाले काल भैरव मंदिर में बीते मंगलवार को 5 दशक बाद दुर्लभ घटना हुई। बाबा कालभैरव के विग्रह से कलेवर पूरी तरह छूटकर अलग हो गया। मंगलवार की भोर के महंत परिवार से जुड़े लोग जब गर्भगृह में पूजा पाठ के लिए पहुंचे तो उन्हें इसकी जानकारी हुई। उसके बाद इस दुर्लभ दुर्घटना की जानकारी महंत परिवार के मुखिया को दी गई।
इसके बाद गंगा में कलेवर को विसर्जन किया गया उसके बाद पूजा पाठ करके दर्शन के लिए कपाट खोला गया।
पारम्परिक अंदाज में निकाली गयी शोभायात्रा
इस दुर्लभ दुर्घटना के बाद मंदिर के महंत की अगुवाई में गांजे-बाजे और डमरू की आवाज के बीच शोभायात्रा निकाली गई। फिर गंगा में कलेवर को विसर्जित किया गया। 1971 में भी ऐसे ही कलेवर का विसर्जन किया गया था।
पूजा पाठ करके दर्शन के लिए कपाट खोला
मंदिर के महंत नवीन गिरी ने बताया कि इस दुर्लभ दुर्घटना के बाद मोम और सिंदूर से बाबा का लेप किया गया। उसके बाद उनकी आरती की गई और फिर से भक्तों के लिए मंदिर को खोल दिया गया है।
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