पिता दलित, मां की दूसरी जाति, बच्चे को मिलेगा आरक्षण का लाभ, जानें सुप्रीम कोर्ट किया अपनी कौन सी शक्ति का प्रयोग
सुप्रीम कोर्ट ने कोर्ट ने एक गैर-दलित महिला और एक दलित व्यक्ति के बीच विवाह को रद्द कर दिया। कोर्ट ने इसी के साथ पति को अपने नाबालिग बच्चों के लिए अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र प्राप्त करने का आदेश दिया, जो पिछले छह वर्षों से अपनी मां के साथ रह रहे हैं।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने बीते दिन संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेषाधिकार का प्रयोग कर एक अहम फैसला सुनाया। एक गैर-दलित महिला और एक दलित व्यक्ति के जोड़े के बच्चों से जुड़े एक अद्वितीय पारिवारिक कानून मामले को संबोधित करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का उपयोग किया। अदालत ने फैसला सुनाया कि गैर-दलित मां और दलित पिता से पैदा हुए बच्चे अनुसूचित जाति (एससी) का दर्जा पाने के हकदार हैं।
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सुप्रीम कोर्ट ने कोर्ट ने एक गैर-दलित महिला और एक दलित व्यक्ति के बीच विवाह को रद्द कर दिया। कोर्ट ने इसी के साथ पति को अपने नाबालिग बच्चों के लिए अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र प्राप्त करने का आदेश दिया, जो पिछले छह वर्षों से अपनी मां के साथ रह रहे हैं। अदालत ने आदेश दिया कि नाबालिग बच्चों को एससी प्रमाणपत्र प्राप्त हों, जो कानूनी रुख को दर्शाता है कि एक गैर-दलित पति या पत्नी शादी के माध्यम से एससी का दर्जा प्राप्त नहीं कर सकते हैं, लेकिन दलित पिता होने के कारण उनके बच्चे शिक्षा जैसे विभिन्न सरकारी लाभों तक पहुंचने के लिए महत्वपूर्ण जाति पदनाम के हकदार हैं।
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अदालत के फैसले में तलाक के बाद बच्चों के कल्याण और भविष्य को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से कई विशिष्ट निर्देश शामिल थे। पिता को छह महीने के भीतर एससी प्रमाणपत्र हासिल करने और पोस्ट-ग्रेजुएशन तक बच्चों के लिए ट्यूशन, बोर्डिंग और आवास खर्च सहित सभी शैक्षिक खर्चों को कवर करने का काम सौंपा गया है। इसके अलावा, इस निर्णय में रायपुर में भूमि के एक भूखंड के हस्तांतरण के साथ-साथ एकमुश्त वित्तीय निपटान भी शामिल है। अदालत ने उस धारा को भी बरकरार रखा जिसमें पिता को अपनी पूर्व पत्नी को अगले वित्तीय वर्ष के अंत तक दोपहिया वाहन उपलब्ध कराने की आवश्यकता थी।
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