IAS अधिकारी की हत्या के दोषी Anand Mohan Singh को रिहा करा कर Bihar में जंगलराज की वापसी में जुटे Nitish Kumar!
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश से सीख लेनी चाहिए जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शासन में अपराधी थर थर कांपते हैं। यही कारण है कि आज वहां बड़ी संख्या में निवेशक आ रहे हैं दूसरी ओर बिहार में कोई निवेशक नहीं आता।
बिहार का मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश कुमार ने राज्य की जंगल राज की छवि को सुधारा और कानून व्यवस्था को दुरुस्त किया जिसके चलते उन्हें सुशासन बाबू कहा गया। लेकिन अब सुशासन बाबू शायद अपने सारे किये कराये पर पानी फेरने में जुटे हैं। कई घोटालों के आरोपों को झेल रहे लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के साथ गठबंधन करने के बाद अब सुशासन बाबू ने एक आईएएस अधिकारी की हत्या मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे पूर्व सांसद और गैंगस्टर आनंद मोहन को रिहा करवा दिया है। माना जा रहा है कि ऐसा उन्होंने वोटों की राजनीति के चलते किया लेकिन यहां सवाल यह खड़ा होता है कि क्या अपराधियों और गैंगस्टरों की जाति के आधार पर ही वोटरों को आकर्षित किया जा सकेगा। सवाल उठता है कि क्या बिहार की सरकार के पास जनता को बताने के लिए अपनी कोई उपलब्धियां नहीं हैं? बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश से सीख लेनी चाहिए जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शासन में अपराधी थर थर कांपते हैं। यही कारण है कि आज वहां बड़ी संख्या में निवेशक आ रहे हैं दूसरी ओर बिहार में कोई निवेशक नहीं आता क्योंकि उन्हें पता है कि यह राज्य जाति की राजनीति के चलते आगे नहीं बढ़ने का संकल्प ले चुका है।
पूरा मामला क्या था?
बहरहाल, जहां तक गैंगस्टर से नेता बने आनंद मोहन की बात है तो आपको बता दें कि नीतीश कुमार के रहमोकरम के चलते उन्हें गुरुवार सुबह सहरसा जेल से रिहा कर दिया गया। हम आपको बता दें कि आनंद मोहन की रिहाई ‘जेल सजा क्षमादान आदेश’ के तहत हुई है। हाल में बिहार सरकार ने जेल नियमावली में बदलाव किया था, जिससे मोहन समेत 27 अभियुक्तों की समयपूर्व रिहाई का मार्ग प्रशस्त हुआ। गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के मामले में आनंद मोहन उम्रकैद की सजा काट रहे थे। 1994 में मुजफ्फरपुर में एक गैंगस्टर की शवयात्रा के दौरान आईएएस अधिकारी कृष्णैया की हत्या कर दी गई थी। आनंद मोहन कृष्णैया हत्याकांड में दोषी पाए जाने के बाद पिछले 15 वर्षों से सलाखों के पीछे थे। अक्टूबर 2007 में एक स्थानीय अदालत ने मोहन को मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन दिसंबर 2008 में पटना उच्च न्यायालय ने मृत्युदंड को उम्रकैद में बदल दिया था। आनंद मोहन ने निचली अदालत के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
नीतीश ने आनंद मोहन को कैसे रिहा कराया?
हम आपको बता दें कि नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली बिहार सरकार ने 10 अप्रैल को बिहार जेल नियमावली, 2012 में संशोधन किया था और उस उपबंध को हटा दिया था, जिसमें कहा गया था कि ‘ड्यूटी पर कार्यरत जनसेवक की हत्या’ के दोषी को उसकी जेल की सजा में माफी/छूट नहीं दी जा सकती।
बिहार सरकार के फैसले पर विपक्ष की प्रतिक्रिया
सरकार के इस कदम से राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया था। बिहार में विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने नीतीश सरकार के इस कदम की आलोचना की थी। भाजपा सांसद एवं पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा है कि नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के समर्थन से सत्ता में बने रहने के लिए कानून की बलि चढ़ा दी।
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कृष्णैया की पत्नी की प्रतिक्रिया
वहीं, दिवंगत आईएएस की पत्नी उमा कृष्णैया ने आनंद मोहन को रिहा करने के बिहार सरकार के फैसले पर निराशा जाहिर की है। उमा कृष्णैया ने कहा है कि राजनीतिक कारणों से ऐसे निर्णय नहीं लिए जाने चाहिए और राजनीति में अपराधियों को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए। 1994 में हुई कृष्णैया की नृशंस हत्या के बारे में बात करते हुए उमा कृष्णैया ने कहा कि उनके पति को बिना किसी गलती के मार दिया गया था। उन्होंने कहा, ‘‘यह (बिहार के) मुख्यमंत्री का बेहद गलत फैसला है। अच्छे लोगों को चुनाव लड़वाना चाहिए, तभी अच्छी सरकार बनेगी। अगर अपराधियों को चुनाव लड़वाया जाएगा, तो हर कोई विरोध करेगा।’’ हैदराबाद में रहने वाली उमा कृष्णैया ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘हम लोग दुखी हैं। इतने अच्छे अधिकारी की हत्या कर दी गई। उन्हें मारने का कोई कारण नहीं था।’’ उन्होंने कहा कि दोषियों को आजीवन कारावास की सजा होनी चाहिए।
इस मामले में उनके भविष्य के कदम के बारे में पूछे जाने पर उमा कृष्णैया ने कहा कि वह अकेले निर्णय नहीं ले सकती हैं और उनके पति के 1985 बैच के साथी आईएएस अधिकारी उनके संपर्क में हैं। राजनीति में अपराधियों की मौजूदगी की निंदा करते हुए उमा कृष्णैया ने कहा कि ‘गलत लोग’ दूसरों की हत्या करने से नहीं हिचकिचाएंगे, जैसा कि उनके पति के मामले में हुआ। 29 साल पहले अपने पति की हत्या के बाद के संघर्ष को याद करते हुए उमा कृष्णैया ने कहा कि वह यही दुआ करती हैं कि किसी अन्य परिवार को ऐसी स्थिति का सामना न करना पड़े। उन्होंने कहा, ‘‘(दूसरों के लिए) ऐसी स्थिति की पुनरावृत्ति न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए नेताओं को अच्छे फैसले लेने चाहिए। उन्हें अपने स्वार्थ से ऊपर उठना चाहिए।’’ उमा कृष्णैया ने कहा कि जाति की राजनीति खत्म होनी चाहिए और जातियों के वोट सरकार के फैसले लेने का पैमाना नहीं होने चाहिए। उन्होंने कहा कि चूंकि, कृष्णैया अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी थे, ऐसे में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बिहार सरकार का फैसला वापस लिया जाए।
उमा कृष्णैया ने कहा कि उनके पति एक बैठक में हिस्सा लेने के बाद लौट रहे थे, तभी उन पर हमला किया गया, क्योंकि वह एक लोक सेवक थे। उन्होंने कहा कि पति की मौत के बाद उन पर अपनी दो बेटियों की परवरिश की जिम्मेदारी थी, जो उस वक्त पांच और छह साल की थीं। उमा कृष्णैया ने बताया कि बच्चियों को अच्छी परवरिश देने के लिए उन्होंने नौकरी की।
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