शिवराज के 'राज' को चुनौती देने वाला नहीं है कोई नेता, 14 महीने के वनवास के बाद चौथी बार संभाली थी MP की सत्ता
10 साल की उम्र में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़ने वाले शिवराज सिंह चौहान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। भले ही मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को लोगों की मोहब्बत न मिले लेकिन शिवराज सिंह चौहान को प्रदेशवासी मामा की तरह प्यार करते हैं।
भोपाल। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने जन्मदिन के अवसर पर पौधारोपण किया और फिर भोज में शामिल हुए। मुख्यमंत्री शिवराज ने कहा कि आज मैंने सफाईकर्मियों के साथ अपना जन्मदिवस मनाया है इनके साथ खाना खाया। ये दिन और रात कचरे का बोझ उठाकर स्वच्छता का काम करते हैं ये मेरे लिए पूजनीय हैं।
इसे भी पढ़ें: फिरकी के जादूगर और खिलाड़ियों के प्रणेता थे शेन वॉर्न, अच्छे-अच्छे बल्लेबाज हो जाते थे चकित
कौन हैं शिवराज सिंह चौहान ?
10 साल की उम्र में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़ने वाले शिवराज सिंह चौहान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। भले ही मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को लोगों की मोहब्बत न मिले लेकिन शिवराज सिंह चौहान को प्रदेशवासी मामा की तरह प्यार करते हैं।
कॉलेज के दिनों में शिवराज सिंह चौहान छात्रसंघ के अध्यक्ष बन गए थे। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े नेताओं में शिवराज सिंह चौहान का नाम बड़े अदब के साथ लिया जाता है लेकिन उनकी स्वीकार्यता प्रदेश के हर वर्ग के बीच में है और इसका श्रेय उनकी योजनाओं को जाता है। कहा तो यहां तक जाता था कि मध्य प्रदेश की सरकार शिवराज सिंह चौहान नहीं बल्कि अफसर चलाते हैं।
सीहोर जिले के जैत गांव में 5 मार्च, 1959 को प्रेमसिंह चौहान और सुंदरबाई चौहान के घर में शिवराज सिंह चौहान का जन्म हुआ। किसान परिवार में जन्में शिवराज सिंह चौहान साल 1977-78 के दौर में एबीवीपी की भोपाल इकाई के सचिव बने फिर संयुक्त सचिव और 1980-82 में एबीवीपी के प्रदेश मंत्री बने। शिवराज सिंह चौहान एक बार अपने कदम आगे बढ़ाए तो पीछे मुड़कर नहीं देखा।
इसे भी पढ़ें: गांधीवादी नेता थे कृष्णकांत, आपातकाल का विरोध करने पर कांग्रेस ने पार्टी से किया था निष्कासित
साल 1982-83 में शिवराज एबीवीपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य नियुक्त किए गए। इसके बाद उन्होंने पढ़ाई में अपना जलबा बिखेरा और बरकातुल्ला यूनिवर्सिटी से दर्शनशास्त्र में एमए किया और गोल्ड मेडलिस्ट बने।
बुधनी से ही राजनीतिक जीवन की शुरुआत
शिवराज ने साल 1990 में बुधनी से पहली बार विधायकी का चुनाव लड़ा और जीत भी गए लेकिन कुछ वक्त बाद इस्तीफा देकर विदिशा के रास्ते दिल्ली चले गए। दिल्ली में रहते हुए शिवराज ने भाजपा के कद्दावर नेताओं के साथ अपना तालमेल बैठाया। जिसके बाद 1992 में भाजपा महासचिव नियुक्त हो गए और 1994 तक इस पद पर रहे। साल 1992 का साल उनके लिए दोहरी खुशियों वाला रहा। महासचिव बने और फिर साधना सिंह के साथ सात फेरों के बंधन में बंध गए।
इसके बाद 1996, 1998, 1999 और फिर 2004 में विदिशा से लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की। इसी बीच उनकी संगठन में फिर से वापसी हुई। साल 2002 में पार्टी ने उन्हें राष्ट्रीय सचिव बनाया और फिर 2003 में महासचिव बन गए।
इसे भी पढ़ें: इंदिरा गांधी के कट्टर विरोधी थे भारत के पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई, जानें कैसी है उनकी शख्सियत
प्रदेश में वापसी के साथ सजा सिर पर ताज
साल 2005 में मध्य प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनने के साथ ही उनकी प्रदेश में वापसी हो गई और फिर उनकी ताजपोशी भी हुई। इस बीच पार्टी ने उन्हें राघोगढ़ से चुनाव भी लड़ाया था जिसमें वो 20 हजार से अधिक वोटों से हार भी गए थे। लेकिन हार के बाद भी उनकी दावेदारी मजबूत हो गई। उमा भारती, बाबूलाल गौर जैसे नेताओं को किनारे पर पार्टी ने शिवराज की ताजपोशी की और 29 नवंबर 2005 को वो मुख्यमंत्री बन गए। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा सत्ता से बाहर हो गई लेकिन शिवराज ने करीब 14 महीने के वनवास के बाद उनकी फिर वापसी हुई और मार्च 2019 में शिवराज चौथी बार प्रदेश के मुखिया बन गए।
अन्य न्यूज़