पाक के अब्दुल खालिक को हराकर मिल्खा सिंह को मिला था 'फ्लाइंग सिख' का नाम, पढ़िए दिलचस्प किस्सें
पाकिस्तान के गोविंदपुरा में जन्में मिल्खा सिंह अपने माता-पिता की कुल 15 संतानों में से एक थे। उनका जन्म 20 नवंबर 1929 को तब हुआ जब पाकिस्तान का बंटवारा नहीं हुआ था।
नयी दिल्ली। भारत के महान फर्राटा धावक मिल्खा सिंह का एक महीने तक कोरोना संक्रमण से जूझने के बाद शुक्रवार को निधन हो गया। इससे पहले उनकी पत्नी और भारतीय वॉलीबॉल टीम की पूर्व कप्तान निर्मल कौर ने भी कोरोना संक्रमण के कारण दम तोड़ दिया था। आज पूरा देश मिल्खा सिंह को श्रद्धाजंलि दे रहा है। आजादी के तुरंत बाद हिन्दुस्तान का सर 'फख्र' से ऊंचा करने का श्रेय मिल्खा सिंह को जाता है।
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बंटवारे ने दिया अपनो को खोने का दर्द
पाकिस्तान के गोविंदपुरा में जन्में मिल्खा सिंह अपने माता-पिता की कुल 15 संतानों में से एक थे। उनका जन्म 20 नवंबर 1929 को तब हुआ जब पाकिस्तान का बंटवारा नहीं हुआ था। लेकिन बंटवारे ने मिल्खा सिंह से सबकुछ छीन लिया। इस दौरान उनके माता-पिता के साथ-साथ 8 भाई-बहनों की मौत हो गई। वो किसी तरफ छुपते-छुपाते हिन्दुस्तान पहुंचे और फिर वह दिल्ली के शरणार्थी शिविर में रहे। वो अक्सर बंटवारे के दर्द को याद करके भावुक हो जाते थे।
चार बार के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाले मिल्खा सिंह ने 1958 के कॉमनवेल्थ गेम्स में साउथ अफ्रीका के वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर मैल्कम क्लाइव स्पेंस को हराया था। कार्डिफ में उन्होंने मैल्कम क्लाइव स्पेंस को हराने के लिए अपनी जी-जान लगा दी थी। कहा जाता है कि उस वक्त मैल्कम क्लाइव स्पेंस 400 मीटर की रेस में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ धावक थे लेकिन मिल्खा सिंह ने अपने कोच की सहायता से उन्हें हराने की रणनीति बनाई थी। स्पेंस शुरुआत में धीमा दौड़ते थे और फाइनल स्ट्रेच में सबको पछाड़ कर जीत हासिल किया करते थे। लेकिन कहां मिल्खा सिंह किसी के कम थे, उन्होंने पूरी ताकत से अपनी रेस पूरी की और स्पेंस को हरा दिया।
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'फ्लाइंग सिख' की असल कहानी
साल 1960 में मिल्खा सिंह को पाकिस्तान की इंटरनेशनल एथलीट टूर्नामेंट में हिस्सा लेने का न्यौता मिला था लेकिन वह जाना नहीं चाहते थे। क्योंकि मिल्खा बंटवारे के दर्द को नहीं भूल पाए थे। तब उस वक्त के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें काफी समझाया और पाकिस्तान जाने के लिए मनाया था।
कहा जाता है कि उस वक्त अब्दुल खालिक पाकिस्तान के सर्वश्रेष्ठ धावक हुआ करते थे और वहां पर उनकी तूती बोलती थी। मैदान में बैठे फैन्स भी महज अब्दुल खालिक का हौसला बढ़ा रहे थे। फिर भी मिल्खा सिंह को जोश कम नहीं हुआ और जब उन्होंने दौड़ना शुरू किया तो अब्दुल खालिक काफी पीछे छूट गए थे और इस जीत को देखकर पाकिस्तान के राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने मिल्खा सिंह को 'फ्लाइंग सिख' नाम दे दिया।
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अगर आपको ज्ञात हो तो मिल्खा सिंह की बायोपिक पर 'भाग मिल्खा भाग' फिल्म भी बनी हुई है। जिसमें पाकिस्तान की दौड़ दिखाई गई है। फिल्म में पाकिस्तान के कोच मिल्खा सिंह से कहते हैं कि यह तुम्हारी आखिरी दौड़ साबित हो सकती है। जिसका उन्होंने यह कहकर जवाब दिया था कि 'मैं दौडूंगा भी वैसे ही'।
पद्मश्री से सम्मानित मिल्खा सिंह की बेटी सोनिया सांवलका ने पिता के जीवन पर आधारिक 'रेस ऑफ माई लाइफ' नामक किताब लिखी। जो साल 2013 में प्रकाशित हुई थी। जिसके बाद फिल्म निर्माता राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने भाग मिल्खा भाग फिल्म का निर्माण किया।
Former Indian Sprinter Milkha Singh, widely regarded as Flying Sikh, passed way last night ( June 18) at 11:30 pm.
— ANI (@ANI) June 18, 2021
He was admitted to ICU on June 3 due to dipping O2 level. On May 20, he had tested positive for COVID19. pic.twitter.com/SYHitglGkJ
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