Manish Sisodia के ऐलान ने केजरीवाल को किया परेशान? अचानक सुप्रीम कोर्ट पहुंचने की क्या है वजह
समाचार एजेंसी एएनआई ने आप की कानूनी टीम के हवाले से बताया कि गिरफ्तारी का विरोध करने के अलावा, केजरीवाल ने मामले में नियमित जमानत याचिका भी दायर की है।
शराब नीति घोटाले मामले में पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया जेल से जमानत पर बाहर हैं। बाहर निकलते ही सिसोदिया ने अपने घर पर बड़ी बैठक बुला ली।आप के राष्ट्रीय संगठन महासचिव डॉ. संदीप पाठक, राज्यसभा सांसद संजय सिंह, दिल्ली प्रदेश संयोजक गोपाल राय और राष्ट्रीय सचिव पंकज गुप्ता सहित अन्य आप वरिष्ठ नेता बैठक में शामिल हुए। बाद में ये खबर सामने आई कि 14 अगस्त से मनीष सिसोदिया पदयात्रा निकालेंगे। केजरीवाल की तरफ से बार बार कहा जा रहा है कि मनीष सिसोदिया बाहर आ गए औऱ वो नंबर 2 के नेता हैं। आप ने घोषणा की थी कि हरियाणा, महाराष्ट्र, दिल्ली में अकेले लड़ेगी और कैंपेन सुनीता केजरीवाल लीड करेंगी। वो लगातार हर जगह पार्टी फेस बनकर रैलियां कर रही हैं। लेकिन अचानक से मनीष सिसोदिया बाहर आ जाते हैं और बड़ी मीटिंग बुला लेते हैं। जिसके बाद से आप पार्टी में हलचल शुरू हो गई है। अभी तक मीटिंग केजरीवाल के घर पर हुआ करती थी। लेकिन अचानक से बैठक की जगह ही शिफ्ट हो गई।
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वहीं दूसरी तरफ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दिल्ली उच्च न्यायालय के हालिया आदेश को चुनौती दी है जिसमें एकल न्यायाधीश पीठ ने सीबीआई गिरफ्तारी के खिलाफ उनकी याचिका खारिज कर दी थी। समाचार एजेंसी एएनआई ने आप की कानूनी टीम के हवाले से बताया कि गिरफ्तारी का विरोध करने के अलावा, केजरीवाल ने मामले में नियमित जमानत याचिका भी दायर की है।
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उच्च न्यायालय ने कथित शराब घोटाले से संबंधित केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा जांच किए जा रहे एक मामले में केजरीवाल को राहत देने से इनकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने पहले प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा दायर एक अलग मामले में केजरीवाल को जमानत दे दी थी। हालाँकि, हाई कोर्ट द्वारा सीबीआई मामले में राहत देने से इनकार करने के बाद भी केजरीवाल जेल में ही हैं। दिल्ली हाई कोर्ट में अपनी याचिका में सीएम केजरीवाल ने कहा कि वह एक राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी (आम आदमी पार्टी) के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मौजूदा मुख्यमंत्री हैं, जिन्हें पूरी तरह से दुर्भावनापूर्ण और बाहरी कारणों से घोर उत्पीड़न और उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है। अदालत ने कहा कि जांच एजेंसी ने आगे बताया है कि डेढ़ साल की अवधि में याचिकाकर्ता के खिलाफ पर्याप्त सामग्री एकत्र करने के बाद ही उन्होंने याचिकाकर्ता के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी मांगी, जो 23 अप्रैल को दी गई थी। एफआईआर दर्ज होने के बाद याचिकाकर्ता के खिलाफ तुरंत कार्रवाई नहीं करने के कारणों को सीबीआई ने अच्छी तरह से समझाया है और इसमें दुर्भावना की बू नहीं आती है।
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अदालत ने आगे कहा कि यह सही और सत्य है कि याचिकाकर्ता इस देश का एक सामान्य नागरिक नहीं है, बल्कि मैग्सेसे पुरस्कार का एक प्रतिष्ठित धारक और आम आदमी पार्टी का संयोजक है। गवाहों पर उनका नियंत्रण और प्रभाव प्रथम दृष्टया इस तथ्य से पता चलता है कि ये गवाह याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी के बाद ही गवाह बनने का साहस जुटा सके, जैसा कि विशेष अभियोजक ने उजागर किया है। साथ ही, यह स्थापित करता है कि याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी के बाद प्रासंगिक साक्ष्य एकत्र होने के बाद उसके खिलाफ साक्ष्य का चक्र बंद हो गया।
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