प्रियंका की अगुवाई में कांग्रेस को मिल रही मजबूती, कहीं भारी न पड़ जाए सपा-बसपा को ट्विटर की राजनीति
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की जमीनी स्तर पर लड़ाई मजबूती से उस वक्त शुरू हुई जब प्रियंका गांधी को यहां का प्रभारी बनाया गया। उन्होंने हर एक मौके पर यहां की सरकार को घेरने का प्रयास किया और आम लोगों के बीच में यह संदेश दिया कि वह उनके साथ हैं।
लखनऊ। राजनीति संभावनाओं का खेल है और कब, कहां, किसका पासा पलट जाए यह कहा नहीं जा सकता है। हाथरस में हुए सामूहिक दुष्कर्म मामले को जिस तरह से कांग्रेस उठाते हुए नजर आई उससे उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार दबाव में आती हुई दिखाई दी। लेकिन सपा-बसपा महज सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तक ही सीमित रही। प्रदेश में अपनी जमीन तलाश रही कांग्रेस ने एडी से चोटी तक का दम लगा दिया और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी बहन प्रियंका के साथ हाथरस पीड़िता के परिवार को न्याय दिलाने की जंग में कूद पड़े। क्योंकि प्रियंका गांधी वाड्रा यह तो समझती हैं कि उनके हाथरस पहुंचने से कांग्रेस को कितना फायदा हो सकता है।
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उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की जमीनी स्तर पर लड़ाई मजबूती से उस वक्त शुरू हुई जब प्रियंका गांधी को यहां का प्रभारी बनाया गया। उन्होंने हर एक मौके पर यहां की सरकार को घेरने का प्रयास किया और आम लोगों के बीच में यह संदेश दिया कि वह उनके साथ हैं। हालांकि कांग्रेस को इसका कितना फायदा मिलेगा यह कहना अभी जल्दबाजी होगा।
कांग्रेस के अलावा समाजवादी पार्टी ने भी जमीनी स्तर पर काफी काम किया है और पार्टी यह भी कह सकती है कि ऐसा कोई मुद्दा नहीं था जब उनके कार्यकर्ता सड़को पर उतरे न हों और पुलिस की लाठियां ने खाई हों। लेकिन कार्यकर्ताओं के लाठियां खाने से पार्टी का संघर्ष दिखाई दे यह जरूरी भी नहीं। क्योंकि कांग्रेस का संघर्ष प्रियंका गांधी की वजह से दिखाई दे रहा है और बहन की प्रियंका की मदद के लिए राहुल ने भी मोर्चा संभाला लिया। जबकि समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव और बसपा प्रमुख मायावती को महज ट्विटर पर देखा गया है।
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खत्म हो रही बसपा की पहचान
बड़ी-बड़ी रैलियां करने वाली बसपा की पहचान अब धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है। यह वहीं बसपा है जो दलित और पीड़ित परिवारों के साथ खड़ी होती रही हैं और सरकार को रैलियों के माध्यम से घेरने का प्रयास करती थी। बसपा के कार्यकर्ता आए दिन धरना-प्रदर्शन करते थे। प्रदेश में हाथरस से पहले भी कई दलित उत्पीड़न से जुड़ी घटनाएं हुईं लेकिन मायावती महज ट्विटर पर ही दिखाई दीं। उन्होंने कई बड़े मौके गंवा दिए और अब तो विधानसभा चुनाव में महज डेढ़ साल का समय बचा हुआ है। ऐसे में बसपा क्या योजना बनाती है यह देखने लायक होगा।धरना प्रदर्शनों से गायब हैं अखिलेश यादव
जिस तरह से प्रियंका गांधी प्रदेश में कांग्रेस कार्यकर्ताओं का नेतृत्व कर रही हैं और हाथरस घटना को लेकर कभी वाल्मीकी मंदिर में तो कभी हाथरस पहुंच कर पीड़िता के साथ एकजुटता दिखा रही हैं। उससे वह सुर्खियों में तो छाई हुईं हैं साथ ही साथ प्रदेश में खुद को स्थापित भी कर रही हैं। वहीं, दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता पुलिस की लाठियां खा रहे हैं लेकिन पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव महज ट्विटर की राजनीति में ध्यान दे रहे हैं।
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इस मामले में सपा नेताओं का सोचना है कि हर मसले पर अखिलेश यादव को जमीन पर उतरने की जरूरत नहीं है लेकिन पार्टी शायद यह भूल गई कि पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को लोग नेताजी क्यों बुलाते हैं। उन्होंने गांव-गांव जाकर, साइकिल से यात्रा करके अपनी पहचान बनाई थी और वह जनता के मुद्दे पर उनके साथ जमीन पर खड़े दिखाई देते थे। जबकि अखिलेश बिल्कुल विपरीत दिखाई दे रहे हैं। इतना ही नहीं विधानसभा और विधान परिषद दोनों में ही नेता प्रतिपक्ष समाजवादी पार्टी से ही हैं और वह भी नहीं दिखाई दे रहे हैं।
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