उत्तर प्रदेश में सामाजिक समीकरण साधने की कोशिश में भाजपा, रूठों को मनाने की हो रही कवायद
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के शासन के दौरान पार्टी पर विपक्ष ब्राह्मण विरोधी होने का आरोप लगा रहा है। ऐसे में जितिन प्रसाद को पार्टी में शामिल कर भाजपा ब्राह्मणों को एकजुट रखने की कोशिश कर रही है। प्रसाद उत्तर प्रदेश के एक जाने-माने ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते हैं और वह तीन पीढ़ियों से कांग्रेस के साथ थे।
उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने है। इससे पहले सत्तारूढ़ भाजपा ने एक बार फिर से सामाजिक समीकरण को मजबूत करने की शुरुआत कर दी है। इतना ही नहीं विभिन्न जातिगत आधार वाले छोटे दलों को साथ लाने की भी लगातार कोशिश की जा रही है। यह कोशिश उसी रणनीति का हिस्सा है जिसकी वजह से 2017 और 2019 के चुनाव में भाजपा को बड़ी जीत मिली थी। हाल में ही पार्टी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से अपना दल (एस) और निषाद पार्टी के नेताओं ने मुलाकात की थी। इसके अलावा ब्राह्मण चेहरे के तौर पर भाजपा ने जितिन प्रसाद को पार्टी में शामिल किया है। कहीं ना कहीं भाजपा के इन कदमों से इस बात का आभास होने लगा है कि पार्टी अब समीकरणों को ध्यान में रखकर आगे बढ़ने की कोशिश में है। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के शासन के दौरान पार्टी पर विपक्ष ब्राह्मण विरोधी होने का आरोप लगा रहा है। ऐसे में जितिन प्रसाद को पार्टी में शामिल कर भाजपा ब्राह्मणों को एकजुट रखने की कोशिश कर रही है। प्रसाद उत्तर प्रदेश के एक जाने-माने ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते हैं और वह तीन पीढ़ियों से कांग्रेस के साथ थे।
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दूसरी ओर संजय निषाद जोकि निषाद पार्टी के अध्यक्ष है, उनसे मुलाकात कर भाजपा उन्हें मंत्रिपद का तोहफा दे सकती है। निषाद पार्टी के संजय निषाद ने कहा कि उनकी पार्टी वंचित तबकों की आकांक्षाओं को ‘‘पूरा’’ करने के लिए राज्य सरकार में प्रतिनिधित्व चाहती है। उन्होंने विभिन्न समुदायों से संबंधित मुद्दों के समाधान की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि राजनीतिक शक्ति भगवान की शक्ति से ज्यादा मजबूत होती है। उन्होंने निषाद समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग की जगह अनुसूचित जाति के तहत लाभ दिए जाने की मांग भी दोहराई। उत्तर प्रदेश सरकार वर्तमान में निषाद समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग के तहत लाभ प्रदान कर रही है। संजय निषाद ने भाजपा को अपने संदेश में कहा कि उनके समुदाय ने विगत में बसपा, सपा और कांग्रेस जैसे दलों का समर्थन किया, लेकिन अपनी समस्याओं का समाधान न होने पर समुदाय ने इन दलों को वोट देना बंद कर दिया।
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अपना दल की अनुप्रिया पटेल ने शाह से अपनी मुलाकात को लेकर कुछ नहीं कहा है। पटेल पहली मोदी सरकार में मंत्री थीं लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान उनकी पार्टी की कांग्रेस के साथ कथित बातचीत के चलते कुर्मी नेता को दूसरी मोदी सरकार में जगह नहीं मिल पाई। हालांकि बाद में उनकी पार्टी ने भाजपा की सहयोगी के रूप में ही चुनाव लड़ा था। ऐसी भी खबरें हैं कि भाजपा अपनी पूर्व सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को भी फिर से अपने खेमे में ला सकती है लेकिन इसके नेता ओमप्रकाश राजभर ने इस तरह की संभावना को खारिज किया है। भाजपा सूत्रों ने कहा कि उनकी पार्टी ने विभिन्न समुदायों को उचित प्रतिनिधित्व देने के लिए काम किया है और वह छोटे दलों के साथ गठबंधन करने के विरोध में कभी नहीं रही है। भगवा दल के एक नेता ने कहा, ‘‘हमने यह विभिन्न राज्यों में किया है, चाहे यह बिहार, असम हो या उत्तर प्रदेश।’’ प्रदेश भाजपा के कुछ नेता योगी सरकार के कोविड-19 संकट से निपटने को लेकर सवाल उठाते रहे हैं और उनमें से कई अपनी चिंता व्यक्त करने के लिए पत्र लिखते रहे हैं।
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पार्टी नेतृत्व संगठनात्मक और शासनात्मक चुनौतियों के समाधान के लिए कदम उठाता रहा है। इस तरह की अटकलें तेज हैं कि योगी आदित्यनाथ राज्य मंत्रिमंडल का विस्तार कर सकते हैं और सहयोगी दलों के नेताओं के साथ शाह की बैठकों को इसी कवायद का हिस्सा माना जा रहा है। अगले साल के शुरू में पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा का बहुत कुछ दांव पर लगा है क्योंकि इनमें से चार-उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर और सबसे महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश में इसकी सरकारें हैं। हाल में पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन कोई शानदार नहीं रहा। असम में जहां भगवा दल फिर सरकार बनाने में सफल रहा, वहीं पश्चिम बंगाल में तमाम ताकत झोंक देने के बावजूद वह सत्तारूढ़ नहीं हो पाया। हालांकि, बंगाल में भाजपा मुख्य विपक्षी दल बनने में जरूर कामयाब रही। केरल में पार्टी का खाता भी नहीं खुल पाया। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में, खासकर उत्तर प्रदेश में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व द्वारा जीत के लिए पूरी ताकत लगा दिए जाने की संभावना है।
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