Matrubhoomi: प्रथम विश्व युद्ध के दौरान कमजोर पड़ गये थे अंग्रेज, जोधपुर लांसर्स के कारण जीती थी हाइफ़ा की जंग
1914 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान विश्व दो गुटों में बटा हुआ था। युद्ध ने केंद्रीय शक्तियों-मुख्य रूप से जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी और तुर्की को मित्र राष्ट्रों फ्रांस, ग्रेट ब्रिटेन, रूस, इटली, जापान और, संयुक्त राज्य अमेरिका के खिलाफ खड़ा कर दिया। यह युद्ध लगभग 4 सालों तक चला था।
प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत की सेना ने ब्रिटेन के लिए धुरी देशों के खिलाफ जंग लड़ी थी। 1947 से पहले भारत अंग्रेजों के अधीन था। अंग्रेजी फरमान के कारण भारतीय सैनिकों को प्रथम विश्व युद्ध में शामिल किया गया था। आज भी जह कभी देश में संकट आता है तो देश की सेना ही संकट से उबारती है। अपनी जान को जोखिम में डाल कर देश के जवान पहले दूसरों की रक्षा करते हैं। भारतीय सेना की ये खूबी हमारे इतिहास से जुड़ी हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों में वीरों ने ऐसे-ऐसे कारनामे किए हैं जिसका साक्षी हमारा इतिहास है। तत्कालीन जोधपुर राज्य का इतिहास इसकी सेना द्वारा प्रदर्शित वीरतापूर्ण कारनामों, महाकाव्य, जीत और शानदार वीरता का रिकॉर्ड है। सैन्य टुकड़ी जोधपुर लांसर्स की वीरता की कहानी इसके रणबाकुरों ने लिखी हैं। आज हम आपको आजादी से पहले भारत की सेना कैसी थी। किसके अधीन थी और कैसे काम करती थी इसके बारे में जानकारी देंगे साथ ही आपको जोधपुर लांसर्स द्वारा लड़ी गयी हफिया की जंग के बारे में विस्तार से बताएंगे।
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पहले भारत में एक 15वीं इंपीरियल सर्विस के तहत एक सैन्य ग्रुप बनाया गया था। इसमें जोधपुर, हैदराबाद, मैसूर, पटियाला और अलवर की रियासतें शामिल थी। इनका प्रशिक्षण इस प्रकार किया गया था कि यह कठिन से कठिन स्थिति में दुश्मन को मात देने का साहस रखती थी। इस सैन्य टुकड़ियों में अधिकतर भारतीय शामिल थे और कुछ अधिकारी ब्रिटिश थे। इन सैनिकों को हमारे देश के वीरों ने ट्रेंड किया था। गुलामी के दौरान 15वीं इंपीरियल सर्विस एक ब्रिगेड-आकार की संरचना थी जो प्रथम विश्व युद्ध के दौरान सिनाई और फिलिस्तीन अभियान में ब्रिटिश साम्राज्य बलों के साथ काम करती थी।
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1914 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान विश्व दो गुटों में बटा हुआ था। युद्ध ने केंद्रीय शक्तियों-मुख्य रूप से जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी और तुर्की को मित्र राष्ट्रों फ्रांस, ग्रेट ब्रिटेन, रूस, इटली, जापान और, संयुक्त राज्य अमेरिका के खिलाफ खड़ा कर दिया। यह युद्ध लगभग 4 सालों तक चला था। कभी केंद्रीय शक्तियों का दबदबा हो जाता तो कभी मित्र देशों का। युद्ध में हर पल स्थिति बदल जाती थी। दोनों गुट काफी ज्यादा मजबूत थे। युद्ध के दौरान ही एक और छोटा युद्ध हुआ था जिसे हाइफ़ा का युद्ध कहा जाता है। यह युद्ध भले ही एक छोटे से कब्जे के कारण हुआ था लेकिन यह देश मित्र राष्ट्रों के लिए एक हाथ की मजबूती के बराबर था। हाइफ़ा की लड़ाई में भारत के जोधपुर लांसर्स ने हिस्सा लिया था और इस युद्ध को जीता था। जोधपुर लांसर्स की वीरता की यह गाथा सुनहरे अक्षरों में हमारे इतिहास में दर्ज हैं।
हाइफ़ा एक उत्तरी इज़राइली बंदरगाह शहर है जो भूमध्यसागर से लेकर माउंट कार्मेल के उत्तरी ढलान तक फैले हुए स्तरों में बनाया गया है। 1914 के दौरान ग्रेट ब्रिटेन के लिए हाइफ़ा एक महत्वपूर्ण क्षेत्र था। यह युद्ध के दौरान काफी ज्यादा महत्पूर्ण था लेकिन धुरी राष्ट्रों ने हाइफा पर कब्जा कर लिया। प्रथम विश्व युद्ध में इस जंग के लिए ब्रिटेन ने जोधपुर के राजाओं से संपर्क कर जोधपुर लांसर्स को हाइफा का युद्ध लड़ने का आग्रह किया था। मेजर दलपत सिंह के नेतृत्व में जोधपुर लांसर्स ने इकी सेना आगे बढ़ी और अपना साहस दिखाया था। जब हाइफ़ा के पहाड़ों पर रणबाकुरें चढ़े तो दूसरी तरफ से मशीनगन से लगातार फायरिंग हो रही थी। अपने आपको बचाने के लिए जोधपुर लांसर्स के सैनिकों से अपना रास्ता बदला और दूसकी तरफ से चढ़ाई शुरू कर दी। जर्मन सैनिकों को इसका अंदाजा नहीं था वह सोच रहे थे कि जोधपुर लांसर्स भाग गये हैं लेकिन दूसरी तरफ से भारतीय सेना ने हमला कर दिया। भारतीयों की संख्या काफी कम थी लेकिन उन्होंने हाइफा पर फिर से कब्जा कर दिया। इस दौरान इस युद्ध में उन्होंने 1350 जर्मन व तुर्क सैनिकों को बंदी बना लिया। इसमें से से 35 अधिकारी भी शामिल थे।
प्रथम विश्व युद्ध की जिसमे अंग्रेजो की ओर से जोधपुर रियासत की सेना ने भी हिस्सा लिया। इतिहास में इस लड़ाई को हाइफा की लड़ाई के नाम से जाना जाता है। हाइफा की लड़ाई 23 सितंबर 1918 को लड़ी गयी। इस लड़ाई में राजपूताने की सेना का नेतृत्व जोधपुर रियासत के सेनापति मेजर दलपत सिंह ने किया, उनका जन्म वर्तमान पाली जिले के देवली गाँव मे रावणा राजपूत परिवार में हुआ था। अंग्रेजो ने जोधपुर रियासत की सेना को हाइफा पर कब्जा करने के आदेश दिए गए। आदेश मिलते ही जोधपुर रियासत के सेनापति दलपत सिंह ने अपनी सेना को दुश्मन पर टूट पड़ने के लिए निर्देश दिया। जिसके बाद यह राजस्थानी रणबांकुरो की सेना दुश्मन को खत्म करने और हाइफा पर कब्जा करने के लिए आगे की ओर बढ़ी। सैनिकों से ग्यारह मशीनगन के साथ ही बड़ी संख्या में हथियार जब्त किए गए। भीषण युद्ध में सीधी चढ़ाई करने के दौरान जोधपुर लांसर के मेजर दलपतसिंह गंभीर रूप से घायल हो गए। इसके बावजूद उन्होंने प्रयास नहीं छोड़ा। इस युद्ध में दलपतसिंह सहित जोधपुर के आठ सैनिक शहीद हुए। जबकि साठ घोड़े भी मारे गए।
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