अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम ने यूसीसी पर संसदीय समिति के सुझाव का स्वागत किया
सिंह ने कहा कि विधि आयोग सभी हितधारकों से परामर्श के बाद केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपेगा और उसके बाद ही सरकार संसद में विधेयक लाएगी। उन्होंने कहा कि आयोग को जल्दबाजी में अपनी रिपोर्ट नहीं देनी चाहिए।
अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम ने आदिवासियों को समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के दायरे से बाहर रखने के संसदीय समिति के अध्यक्ष सुशील मोदी के सुझाव का रविवार को स्वागत किया। संगठन ने एक बयान में विधि आयोग से यह भी कहा कि वह अपनी रिपोर्ट जल्दबाजी में न सौंपे और उसने पहले अपने प्रमुख सदस्यों और संगठनों से आदिवासी समुदायों की प्रथाओं और परंपराओं को समझने का आग्रह किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम ने अनुसूचित जनजातियों और उनके संगठनों के सदस्यों से आग्रह किया कि यदि उन्हें प्रस्तावित यूसीसी को लेकर कोई चिंता है तो वे सोशल मीडिया पर चर्चाओं से ‘‘गुमराह’’ होने के बजाय इस मुद्दे पर विधि आयोग के समक्ष अपने विचार रखें।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सांसद सुशील कुमार मोदी ने उनकी अध्यक्षता में एक संसदीय समिति की हाल में हुई बैठक में समान नागरिक संहिता बनने की स्थिति में पूर्वोत्तर एवं अन्य क्षेत्रों के आदिवासियों को इसके दायरे से बाहर रखने की वकालत की थी जबकि कुछ विपक्षी दलों के सदस्यों ने इस विवादित मुद्दे पर विचार-विमर्श शुरू करने के विधि आयोग के कदम पर सवाल उठाया था। वनवासी कल्याण आश्रम के उपाध्यक्ष सत्येन्द्र सिंह ने एक बयान में कहा, ‘‘अनुसूचित जनजातियों को इस कानून से बाहर रखने में हम संसदीय समिति के प्रमुख सुशील कुमार मोदी की भूमिका का स्वागत करते हैं।’’ सिंह ने कहा कि इन दिनों यूसीसी को लेकर खासकर सोशल मीडिया पर काफी चर्चा जारी है, जिससे आम लोग भ्रमित हो रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘आदिवासी समाज भी इससे अछूता नहीं है।
निहित स्वार्थ वाले कुछ लोग आदिवासी समाज को भी गुमराह कर रहे हैं।’’ सिंह ने कहा कि ऐसी स्थिति में वनवासी कल्याण आश्रम आदिवासी समाज, विशेषकर उनके सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों और शिक्षित वर्ग को सचेत करना चाहता है कि वे किसी के बहकावे में न आएं। उन्होंने कहा, ‘‘अभी यह भी स्पष्ट नहीं है कि सरकार क्या करने जा रही है। अगर आदिवासी समाज के लोगों और उनके संगठन को लगता है कि इसके (यूसीसी) कारण उनकी प्रथाओं और प्रणालियों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, तो उन्हें सीधे विधि आयोग के समक्ष अपनी चिंताओं को उठाना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘आप 14 जुलाई तक अपने विचार विधि आयोग को ऑनलाइन प्रस्तुत कर सकते हैं।’’ सिंह ने कहा कि विधि आयोग सभी हितधारकों से परामर्श के बाद केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपेगा और उसके बाद ही सरकार संसद में विधेयक लाएगी। उन्होंने कहा कि आयोग को जल्दबाजी में अपनी रिपोर्ट नहीं देनी चाहिए।
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