Prajatantra: चुनावी जंग में 7 साल बाद यूपी के दो लड़के फिर संग-संग, क्या वोटों का हो पाएगा संगम?
समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस के बीच उत्तर प्रदेश में सीट बंटवारे को लेकर जारी गतिरोध दूर हो गया है। दोनों पार्टियों ने ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस’ (इंडिया गठबंधन) के तहत सीट बंटवारे की औपचारिक घोषणा कर दी गई, जिसके तहत राज्य की 80 सीट में से कांग्रेस रायबरेली और अमेठी सहित 17 सीट पर अपने प्रत्याशी उतारेगी।
एक साथ आने के सात साल बाद, “यूपी के लड़के” अखिलेश यादव और राहुल गांधी कांग्रेस की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान रविवार को आगरा में फिर से मिले। राहुल और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ इस कार्यक्रम में समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष की उपस्थिति ने 2017 की यादें ताजा कर दीं जब उन्होंने विधानसभा चुनावों के लिए एक गठबंधन किया था। हालांकि, गठबंधन को सफलता नहीं मिल पाई और एसपी ने केवल 47 सीटें जीतीं, जो 2012 में सत्ता में आने पर जीती गई 224 सीटों से भारी गिरावट थी, जबकि कांग्रेस की सीटें 2012 में 28 से गिरकर सात हो गईं। इसके बाद दोनों दलों के रास्ते अगल-अलग हो गए। लोकिन एक बार फिर से इंडिया गठबंधन के तहत होनों दल 2024 लोकसभा चुनाव के लिए एक साथ आए हैं।
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सीटों का बंटवारा
समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस के बीच उत्तर प्रदेश में सीट बंटवारे को लेकर जारी गतिरोध दूर हो गया है। दोनों पार्टियों ने ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस’ (इंडिया गठबंधन) के तहत सीट बंटवारे की औपचारिक घोषणा कर दी गई, जिसके तहत राज्य की 80 सीट में से कांग्रेस रायबरेली और अमेठी सहित 17 सीट पर अपने प्रत्याशी उतारेगी। जबकि राज्य की बाकी 63 सीटों पर सपा और गठबंधन के अन्य सहयोगी दलों के उम्मीदवार चुनाव लड़ेंगे। कांग्रेस उत्तर प्रदेश में रायबरेली, अमेठी, कानपुर नगर, फतेहपुर सीकरी, बांसगांव, सहारनपुर, प्रयागराज, महराजगंज, वाराणसी, अमरोहा, झांसी, बुलंदशहर, गाजियाबाद, मथुरा, सीतापुर, बाराबंकी और देवरिया सहित 17 सीट पर चुनाव लड़ेगी। सपा ने मध्य प्रदेश की खजुराहो लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने का इरादा जाहिर किया था जिसे कांग्रेस ने स्वीकार कर लिया है।
राहुल-अखिलेश की हुंकार
आगरा में राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ में अखिलेश यादव के शामिल होने के बाद कांग्रेस ने कहा कि ‘इंडिया’ ‘जनबंधन’ ‘अन्याय काल के अंधेरे’ को दूर करने के लिए पूरी तरह से तैयार है। आगरा में रोड शो के दौरान राहुल और अखिलेश ने हाथ हिलाकर भीड़ का अभिवादन स्वीकार किया। उनके साथ कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाद्रा भी मौजूद थीं। अखिलेश ने आगरा में अपने संबोधन में ‘भाजपा हटाओ, संकट मिटाओ’ का नारा देते कहा, ‘‘आज लोकतंत्र और संविधान संकट में है। भाजपा सरकार लोकतंत्र खत्म कर रही है। संविधान विरोधी काम कर रही है। बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर ने संविधान में पिछड़ों, दलितों, आदिवासियों को जो हक दिया था उसे भाजपा सरकार ने छीना है। राहुल ने अपने संबोधन में कहा, ‘‘मैं, प्रियंका और अखिलेश मिलकर नफरत को मिटाने निकले हैं। ये देश मोहब्बत का है। पहली लड़ाई नफरत को खत्म करने की है। नफरत को मोहब्बत से मिटाएंगे।’’
अतीत से सबक
दोनों दलों के नेताओं ने यह भी कहा कि 2017 और 2024 के बीच एक बड़ा अंतर है। हमने अतीत से सबक लेते हुए इस बार गठबंधन बनाया। इस गठबंधन के पास नेतृत्व के रूप में लोग हैं, जो इसकी जीत सुनिश्चित करेंगे। सपा सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर और कांग्रेस की संगठनात्मक खामियों ने 2017 में गठबंधन की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया। इस बार स्थिति हमारे पक्ष में है। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, 2017 की तुलना में, "यूपी के लड़के" अब "राजनीतिक नौसिखिए" नहीं हैं। जबकि अखिलेश ने अपने पिता और सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव सहित अधिकांश वरिष्ठ नेताओं की इच्छाओं के खिलाफ गठजोड़ करने से पहले केवल कुछ महीनों के लिए अपनी पार्टी का नेतृत्व किया था, राहुल तब कांग्रेस के उपाध्यक्ष थे।
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2024 से उम्मीद
उत्तर प्रदेश में गठबंधन होने के बाद समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को लगता है कि भाजपा विरोधी वोट अब एक साथ हो गए हैं। एमवाई समीकरण को मजबूती मिली है। इसके अलावा जो लोग केंद्र और राज्य सरकार से नाराज है, उन्हें भी अपने पाले में लिया जा सकता है। अखिलेश यादव लगातार पीडीए की बात कर रहे हैं तो वहीं राहुल गांधी हाल में ही भारत छोड़ो न्याय यात्रा के दौरान राज्य में ओबीसी को लेकर खूब बात की और जाति आधारित जनगणना कराई जाने की मांग की। कांग्रेस के साथ आने से समाजवादी पार्टी को पिछड़े वोट का फायदा भी हो सकता है। इसके अलावा अगड़ों का भी वोट सपा को मिल सकता है। कांग्रेस ने शुरू से उत्तर प्रदेश में 21 सीटों की डिमांड रखी थी। हालांकि सपा ने 17 सीटें दी। 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सपा ने 105 सीटें दी थी लेकिन वह सिर्फ सात ही जीत पाई थी। इसलिए अखिलेश यादव इस बार पूरी तरीके से अपने हिसाब से गठबंधन करना चाहते थे।
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