बाबरी मामले में आडवाणी, जोशी, उमा पर चलेगा मुकदमा
भाजपा के नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती को वर्ष 1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में अदालती कार्यवाही का सामना करना पड़ेगा।
भाजपा के नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती को वर्ष 1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में अदालती कार्यवाही का सामना करना पड़ेगा क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने आज सीबीआई की याचिका को स्वीकार कर लिया है और इन नेताओं के खिलाफ लगे आपराधिक साजिश के आरोपों को बहाल कर दिया है। न्यायालय ने नेताओं और ‘कारसेवकों’ के खिलाफ लंबित मामले को भी इस मामले में शामिल कर दिया और कहा कि कार्यवाही दो साल में पूरी हो जानी चाहिए।
न्यायमूर्ति पीसी घोष और न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन की पीठ ने कहा, ‘‘हमने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सीबीआई की अपील को कुछ निर्देशों के साथ स्वीकार कर लिया है।’’ हालांकि शीर्ष अदालत ने कहा कि राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह के पास संवैधानिक छूट है और उनके खिलाफ मामला पद छोड़ने पर ही चलाया जा सकता है। कल्याण सिंह वर्ष 1992 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे।
न्यायालय ने आगे कहा कि सत्र न्यायाधीश के संतुष्ट हुए बिना किसी भी पक्ष को स्थगन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। न्यायालय ने जांच एजेंसी सीबीआई को यह निर्देश भी दिया कि वह अभियोजन पक्ष के गवाहों का अपना बयान दर्ज कराने के लिए प्रत्येक तारीख पर पेश होना सुनिश्चित करे। न्यायालय ने कहा कि निचली अदालत को आज से चार सप्ताह के भीतर कार्यवाही शुरू कर देनी चाहिए। हालांकि न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया कि इस मामले में कोई नई सुनवाई नहीं होगी। पीठ ने कहा कि उसके आदेश का पूर्णत: पालन होना चाहिए। इसके साथ ही न्यायालय ने मामले से जुड़े पक्षों को यह अधिकार दिया है कि यदि न्यायालय के निर्देशों का पालन नहीं होता है तो वे उससे संपर्क कर सकते हैं।
छह दिसंबर, 1992 को गिराए गए विवादित ढांचे से जुड़े मामलों के दो सेट हैं। पहला सेट बेनाम ‘कारसेवकों’ के खिलाफ है, जिसकी सुनवाई लखनऊ की अदालत में चल रही है। दूसरा सेट नेताओं से जुड़ा है और यह रायबरेली की अदालत में चल रहा है। छह अप्रैल को पीठ ने संकेत दिया था कि वह मामले को रायबरेली की अदालत से लखनऊ की अदालत में स्थानांतरित करके मामलों के दोनों सेटों की संयुक्त सुनवाई का आदेश जारी कर सकती है। न्यायालय ने यह भी कहा था कि चूंकि इस घटना को 25 साल बीत चुके हैं, ऐसे में न्याय के हित में न्यायालय तय समय सीमा के भीतर दिन-प्रतिदिन की सुनवाई का आदेश देने के मुद्दे पर विचार करेगा, जो दो साल में पूरी हो जाए। आडवाणी और जोशी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील केके वेणुगोपाल ने साझा सुनवाई करवाने और उनके मामले का स्थानांतरण रायबरेली से लखनऊ करवाने के प्रस्ताव का पुरजोर विरोध किया। सीबीआई ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वह अति विशिष्ट आरोपियों पर चलाए जाने वाले मुकदमे के मुद्दे पर कोई अभ्यावेदन नहीं दे रही है। बल्कि खुद को इन लोगों के खिलाफ साजिश के आरोप को बहाल करवाने तक सीमित रख रही है। शीर्ष न्यायालय ने पहले यह फैसला किया था कि वह आडवाणी, जोशी, उमा भारती और 10 अन्य के खिलाफ साजिश के आरोप हटाने के खिलाफ दायर अपील की जांच करेगा।
आरोपियों के वकील ने दो प्राथमिकियों का मिलाए जाने का विरोध इस आधार पर किया था कि दोनों मामलों के आरोपी अलग-अलग हैं। इनके मुकदमे दो अलग-अलग स्थानों पर अग्रिम चरण में हैं। उनका मानना है कि संयुक्त सुनवाई से नये तरीके से कार्यवाही शुरू हो जाएगी। आडवाणी, जोशी और भारती समेत 13 आरोपियों के खिलाफ साजिश के आरोप हटा दिए गए थे। इस मामले की सुनवाई रायबरेली की एक विशेष अदालत में चल रही है। दूसरा सेट अज्ञात ‘कारसेवकों’ के खिलाफ है, जो इस विवादित ढांचे के अंदर और आसपास थे और जिन्होंने उसे गिरा दिया था। उनके खिलाफ सुनवाई लखनऊ की अदालत में चल रही है। भाजपा के शीर्ष नेताओं समेत 21 आरोपियों के खिलाफ साजिश के आरोप हटाने के खिलाफ ये अपीलें हाजी महबूब अहमद :मृत: और सीबीआई द्वारा दायर की गई थीं। इनमें से आठ आरोपियों की मौत हो चुकी है।
आठ लोगों के खिलाफ एक पूरक आरोपपत्र दायर किया गया था लेकिन यह उन 13 लोगों के खिलाफ दायर नहीं किया गया था, जिन्हें विध्वंस की साजिश रचने के आरोप से बरी कर दिया गया था। भाजपा नेता आडवाणी, जोशी और भारती के अलावा कल्याण सिंह (राजस्थान के मौजूदा राज्यपाल), शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे और विहिप के नेता आचार्य गिरिराज किशोर (दोनों का निधन हो चुका है) के खिलाफ आरोप हटाए लिए गए थे। जिन अन्य लोगों के खिलाफ साजिश के आरोप हटाए गए थे, उनमें विनय कटियार, विष्णु हरि डालमिया, सतीश प्रधान, सीआर बंसल, अशोक सिंघल (निधन हो चुका है), साध्वी रितांभरा, महंत अवैद्यनाथ (निधन हो चुका है), आरवी वेदांती, परमहंस राम चंद्र दास (निधन हो चुका है), जगदीश मुनि महाराज, बीएल शर्मा, नृत्य गोपाल दास, धर्म दास, सतीश नागर और मोरेश्वर सावे (निधन हो चुका है) शामिल हैं। अपीलों में मांग की गई थी कि न्यायालय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 20 मई 2010 के उस आदेश को दरकिनार कर दे, जिसमें एक विशेष अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी (आपराधिक साजिश) हटाने का निर्देश दिया गया था।
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