Aditya L1 Launch : सूरज की तरफ बढ़े भारत के कदम, PSLV C57 के जरिए हुई सफल लॉन्चिंग
सूर्य का अध्ययन करके आकाशगंगा के साथ-साथ अन्य आकाशगंगाओं के तारों के बारे में भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है। सूर्य पर कई विस्फोटक घटनाएं होती रहती हैं जिससे यह सौर मंडल में भारी मात्रा में ऊर्जा छोड़ता है।
सूर्य के पास जाने के लिए भारत का मिशन आदित्य एल1 अपने सफर पर निकल चुका है। इसरो के भरोसेमंद पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (पीएसएलवी) के जरिये श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे लॉन्च पैड से प्रक्षेपित किया गया है। ये देश का पहला सूर्य मिशन है। सूर्य के अध्ययन के लिए ‘आदित्य एल1’ को धरती से 15 लाख किलोमीटर दूर ‘लैग्रेंजियन-1’ बिंदु तक पहुंचने में 125 दिन लगेंगे।
वर्तमान में भारत का ये मिशन बेहद अहम है जिस पर ना सिर्फ पूरे देश की बल्कि पूरी दुनिया की नजरे है क्योंकि हाल ही में 23 अगस्त को चंद्रयान-3 के साथ चांद के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र पर सफलतापूर्वक ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ कर इतिहास रच दिया था। चंद्रयान 3 की सफलता के अगले दिन ही सूर्य मिशन को लॉन्च किए जाने की घोषणा की गई थी। इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने कहा कि सूर्य मिशन को सटीक त्रिज्या तक पहुंचने में 125 दिन लगेंगे। इस मिशन की सफल लॉन्चिंग से पहले इसरो ने बताया था कि शनिवार को पीएसएलवी सी57 रॉकेट के जरिए किए जाने वाले ‘आदित्य एल1’ के प्रक्षेपण के लिए शुक्रवार को 23.10 घंटे की उलटी गिनती शुरू हुई।
बता दें कि ‘आदित्य एल1’ को सूर्य परिमंडल के दूरस्थ अवलोकन और पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर ‘एल1’ (सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंजियन बिंदु) पर सौर हवा का वास्तविक अवलोकन करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसरो के अनुसार, सूर्य और पृथ्वी के बीच पांच लैग्रेंजियन बिंदु हैं, और प्रभामंडल कक्षा में ‘एल1’ बिंदु से उपग्रह सूर्य को बिना किसी बाधा/बिना किसी ग्रहण के लगातार देखकर अध्ययन संबंधी अधिक लाभ प्रदान करेगा। अंतरिक्ष वैज्ञानिक ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) के अधिक शक्तिशाली संस्करण एक्सएल का उपयोग कर रहे हैं जो शनिवार को सात उपकरणों के साथ अंतरिक्ष यान को ले जाएगा। शुरू में, ‘आदित्य-एल1’ अंतरिक्ष यान को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया जाएगा।
इसरो ने कहा कि सूर्य का अध्ययन करके आकाशगंगा के साथ-साथ अन्य आकाशगंगाओं के तारों के बारे में भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है। सूर्य पर कई विस्फोटक घटनाएं होती रहती हैं जिससे यह सौर मंडल में भारी मात्रा में ऊर्जा छोड़ता है। इसरो के अनुसार, इस तरह की घटनाओं से अंतरिक्ष यान और संचार प्रणालियों में गड़बड़ी हो सकती है, इसलिए इस तरह की घटनाओं की पूर्व चेतावनी पहले से ही सुधारात्मक उपाय करने के लिए महत्वपूर्ण है।
इसी तरह के पीएसएलवी-एक्सएल संस्करण का इस्तेमाल 2008 में चंद्रयान-1 मिशन और 2013 में मंगल ग्रह से संबंधित मार्स ऑर्बिटर मिशन (मॉम) में किया गया था। अंतरिक्ष यान में लगे कुल सात उपकरणों में से चार सीधे सूर्य को देखेंगे, जबकि शेष तीन ‘एल1’ बिंदु पर कणों और क्षेत्रों का वास्तविक अध्ययन करेंगे।
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