Jan Gan Man: सुशासन बाबू के राज में Bihar में 77 हजार फर्जी शिक्षकों की भर्ती का जिम्मेदार कौन?
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दावा करते हैं कि उन्होंने बिहार के स्कूलों की तकदीर बदल दी है लेकिन हाल ही में हुआ खुलासा मुख्यमंत्री के दावों की पोल खोल रहा है और रोजगार दिये जाने के दौरान बरती गयी अनियमितताओं को भी दर्शा रहा है।
प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम जन गण मन में आप सभी का स्वागत है। आज बात करेंगे बिहार की। बिहार में सरकार कैसे चल रही है। यह सबको दिख रहा है। शराब पर प्रतिबंध है मगर शराब फिर भी हर जगह उपलब्ध बतायी जाती है। जहरीली शराब पीकर लोगों के मरने की घटनाएं अक्सर सामने आती हैं, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का क्या हाल है, इसकी तस्वीरें अक्सर सामने आती रहती हैं। रोजगार के लिए लोग मारे-मारे फिर रहे हैं, अगर नौकरी निकलती भी है तो भ्रष्टाचारियों की ऐश हो जाती है। कहने को राज्य में सुशासन बाबू की सरकार है लेकिन शासन कैसे चल रहा है यह सबके सामने है। मुख्यमंत्री को अपनी गद्दी बचाने की ही चिंता है इसलिए कभी इस गठबंधन तो कभी उस गठबंधन में जाने से फुर्सत नहीं है। आजकल तो मुख्यमंत्री जरा-जरा-सी बात पर आग बबूला भी हो जाते हैं।
मुख्यमंत्री दावा करते हैं कि उन्होंने बिहार के स्कूलों की तकदीर बदल दी है लेकिन हाल ही में हुआ खुलासा मुख्यमंत्री के दावों की पोल खोल रहा है और रोजगार दिये जाने के दौरान बरती गयी अनियमितताओं को भी दर्शा रहा है। हम आपको बता दें कि बिहार में सरकारी विद्यालयों में फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर 77 हजार 57 शिक्षकों की भर्ती हो गयी और वह सरकारी खजाने से वेतन भी लेते रहे। सोचिये कि जिसके पास योग्यता ही नहीं है वह छात्रों को क्या शिक्षा दे रहा होगा?
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पटना उच्च न्यायालय के आदेश पर अब विजिलेंस ब्यूरो ने प्राथमिकी दर्ज करने की अनुमति मांगी है क्योंकि शिक्षक बार-बार अनुरोध किये जाने के बावजूद अपने प्रमाण पत्र नहीं उपलब्ध करा पा रहे हैं। हम आपको यह भी बता दें कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बार-बार अपने भाषणों में कहते रहे हैं कि विशेष उच्च अध्ययन के लिए नालंदा में एक आधुनिक विश्वविद्यालय स्थापित करने की उनकी इच्छा रही है। वह इस परियोजना के आगे नहीं बढ़ने को लेकर नरेन्द्र मोदी सरकार को दोषी भी ठहराते हैं लेकिन क्या वह 77 हजार 57 फर्जी शिक्षकों की भर्ती पर कोई बयान देंगे? संभव है जिन आयोगों ने शिक्षकों की भर्ती की उनसे प्रमाणपत्र इधर उधर हो गये हों, लेकिन क्या 77 हजार से ज्यादा शिक्षकों के प्रमाणपत्र इधर उधर हो सकते हैं।
वैसे यह मुद्दा सिर्फ राजनीतिक नहीं है बल्कि इसकी सामाजिक अहमियत भी है क्योंकि सवाल बच्चों के भविष्य का है। बिहार आदि काल से शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी रहा है और यहां से हुई क्रांतियों ने देश को नई दिशा दी है। लेकिन आज वहां जो शिक्षा, शिक्षकों और शिक्षा के मंदिरों का हाल है वह चिंतनीय है। फर्जी प्रमाणपत्रों के आधार पर नौकरी पा लेने के बढ़ते मामलों को कैसे रोका जा सकता है और क्यों सरकार इस मुद्दे पर गंभीर नहीं है, आदि जैसे विषयों पर प्रभासाक्षी ने वरिष्ठ अधिवक्ता और देश के पीआईएल मैन अश्विनी उपाध्याय से चर्चा की। अश्विनी जी ने चर्चा में कहा कि यह सब कमजोर कानूनों की बदौलत संभव हो पा रहा है इसलिए जरूरी है कि कानूनों को कड़े से कड़ा बनाया जाये ताकि छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ और सरकारी खजाने को नुकसान बंद हो सके।
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