तो इसलिए 76 साल के येदियुरप्पा पर नहीं है उम्र की कोई सीमा
मोदी सरकार को सत्ता में वापसी कराने का श्रेय मोदी और शाह की जोड़ी को जाता है। इसके पीछे सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास मंत्र सबसे ज्यादा कारगर नजर आता है।
कर्नाटक में करीब तीन हफ्तों तक चले सियासी ड्रामे के बाद 23 जुलाई दिन मंगलवार को कुमारस्वामी की अगुवाई वाली गठबंधन सरकार विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव हार बैठी। कर्नाटक में ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ है। इससे पहले गठबंधन वाली कोई भी सरकार प्रदेश में अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई और सिर्फ तीन ही मुख्यमंत्री प्रदेश में हुए जिन्होंने पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा किया। उनमें एन निजलिंगप्पा (1962-68), डी देवराजा उर्स (1972-77) और सिद्धरमैया (2013-2018) शामिल हैं।
यूं तो भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बीएस येदियुरप्पा इस खेल के पुराने और माहिर खिलाड़ी हैं लेकिन उम्र तो कही उन्हें सत्ता से दूर न कर दें। क्योंकि पार्टी के मौजूदा उसूलों पर जाएं तो पार्टी 75 पार वाले नेताओं को मार्गदर्शक मंडल में भेज देते हैं और यह लोकसभा चुनाव के दौरान देखा भी गया था। एक तरफ जोरो-सोरो से चर्चा थी कि एक बार फिर से गांधीनगर से चुनाव लड़ेंगे लालकृष्ण आडवाणी लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया।
नियम बनते ही हैं तोड़ने के लिए और राजनीति में अक्सर अपवाद भी देखने को मिलता है। बीएस येदियुरप्पा जिनकी उम्र 76 वर्ष हैं वो कर्नाटक की जिम्मेदारी को संभालने वाले हैं और इस दिशा की तरफ उन्होंने कदम उसी वक्त बढ़ा दिया था जब कुमारस्वामी सरकार अपना बहुमत साबित नहीं कर पाई थी। सप्ताह की शुरुआत में सरकार गिरती है और अंत होते-होते नई सरकार के गठन की चर्चा तेज हो जाती है। मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि येदियुरप्पा ने कर्नाटक के मौजूदा हालात का जिक्र पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के साथ किया और बाद में उन्होंने येदियुरप्पा के नाम को मंजूरी दे दी कि वह राज्य का कार्यभार संभालेंगे लेकिन इसका अभी तक औपचारिक ऐलान नहीं हुआ है।
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76 साल के येदियुरप्पा के सामने क्या उम्र चुनौती नहीं ?
मोदी सरकार को सत्ता में वापसी कराने का श्रेय मोदी और शाह की जोड़ी को जाता है। इसके पीछे सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास मंत्र सबसे ज्यादा कारगर नजर आता है। क्योंकि इस जोड़ी ने राजनीति के लिए एक बेंचमार्क तय कर दिया था। मोदी-शाह की जोड़ी ने 75 साल पूरे होने पर पूर्व प्रधानमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी को मार्गदर्शक मंडल में शामिल करा दिया था लेकिन 76 साल के येदियुरप्पा को अपना आशीर्वाद दे रहे हैं? ऐसे कई सवाल लोगों के जहन में पनप रहे हैं।
ऐसा क्या हो गया कि येदियुरप्पा की उम्र अब पार्टी के लिए मुश्किल का सबब नहीं बन रहीं। इसका भी जवाब अमित शाह के एक बयान से साफ हो गया था लोकसभा चुनाव के दरमियान उन्होंने कहा था कि पार्टी में ऐसा कोई नियम नहीं है न ही कोई परम्परा है कि 75 साल की उम्र पार कर चुका व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकता।
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संभवत: यह अवधारणा उस वक्त जरूर बन गई थी जब लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कलराज मिश्र, हुकुमदेव नारायण यादव, सुमित्रा महाजन, करिया मुंडे, बाबूलाल गौर, सरताज सिंह, नजमा हेपतुल्ला जैसे नेताओं का या तो टिकट काट दिया गया, या फिर उन्हें मंत्री पद से हटा दिया गया... जिसके बाद यह कहा जाने लगा कि 75 पार नेताओं के लिए पार्टी में महज मार्गदर्शक मंडल में ही जगह हो सकती है। बाद में जरूर मंत्री पद से हटाए गए कुछ नेताओं को राज्यपाल नियुक्त कर दिया गया था।
प्रधानमंत्री के विश्वासपात्र हैं येदियुरप्पा
कुमारस्वामी द्वारा राज्यपाल को अपना त्यागपत्र दिए जाने के बाद कर्नाटक भाजपा के प्रमुख नेता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह को समर्थन देने के लिए व्यक्तिगत तौर पर चिट्ठी लिखकर धन्यवाद कहा। राजनीतिक विशेषज्ञों ने इस चिट्ठी के पीछे छुपे हुए रहस्य के बारे में बताया कि येदियुरप्पा ने चिट्ठी लिखकर आलाकमान को यह दर्शाया है कि वह मौजूदा हालातों पर लगातार नजर बनाए हुए हैं और राज्य की स्थिति को संभालने के लिए तैयार भी हैं।
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संभवत: शुक्रवार को बीएस येदियुरप्पा कर्नाटक के चौथे मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले सकते हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि कर्नाटक में भाजपा का सिर्फ एक ही लोकप्रिय चेहरा हैं जिसने तीन बार सत्ता को संभाला है और तो और उनके पास समर्थन के तौर पर लिंगायत समुदाय भी है। इसीलिए भाजपा आलाकमान के हाथ बंधे हुए है। जिसकी वजह से अमित शाह ने अपना आशीर्वाद येदियुरप्पा को दे दिया।
विशेषज्ञ तो येदियुरप्पा को प्रधानमंत्री के विश्वासपात्र मानते हैं। क्योंकि अच्छे रिश्तों के सामने कभी भी नेता पार्टी लाइन को साइड कर सकते हैं। येदियुरप्पा और नरेंद्र मोदी के बीच संबंध उस वक्त से गहन है जब दोनों मुख्यमंत्री हुआ करते थे और तो और येदियुरप्पा उन नेताओं में से हैं जिन्होंने लालकृष्ण आडवाणी के स्थान पर प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी की उम्मीदवारी की वकालत की थी।
इतना ही नहीं दक्षिण भारत में पहली बार अगर किसी ने भाजपा की सरकार बनाई है तो उसका श्रेय येदियुरप्पा को ही जाता है। एक वक्त था 1985 का जब कर्नाटक विधानसभा में पार्टी की महज 2 सीटें थी। देखते ही देखते प्रदेश की राजनीति में येदियुरप्पा का उदय हुआ और साल 2008 में पार्टी ने 110 सीटें हासिल की।
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कुमारस्वामी द्वारा खाली की गई कुर्सी में दोबारा बैठेंगे येदियुरप्पा
यह कोई पहली दफा नहीं हो रहा है कि कुमारस्वामी द्वारा खाली की गई कुर्सी पर येदियुरप्पा बैठने जा रहे हो। इससे पहले साल 2006 में कुमारस्वामी को हटाकर येदियुरप्पा ने राज्य का कार्यभार संभाला था। दरअसल उस वक्त हालात कुछ ऐसे थे कि राज्य में जेडीएस और भाजपा के गठबंधन वाली सरकार थी और समझौता हुआ था कि दोनों पार्टियों के नेता बारी-बारी से मुख्यमंत्री बनेंगे। इसीलिए कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा और फिर येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बने। हालांकि साल 2008 में हुए चुनाव में भाजपा को अपने दम पर बहुमत हासिल हुई और येदियुरप्पा दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। लेकिन कथित भ्रष्टाचार के चलते उन्हें जुलाई, 2011 में कुर्सी छोड़नी पड़ी। मुख्यमंत्री के रूप में उनका तीसरा कार्यकाल 2018 में महज छह दिन 17 मई, से लेकर 23 मई रहा और उन्होंने बहुमत के अभाव में इस्तीफा दे दिया।
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