मध्य प्रदेश के मंडला जिले में 11 माह में 298 बच्चों की हुई जिला चिकित्सालय में मौत
जानकारी के अनुसार इन मृतक 146 बच्चों में 70 नवजात को सांस लेने में तकलीफ थी। जबकि 32 बच्चों को झटके आ रहे थे और 13 बच्चों का वजन बहुत ही कम था। वही 11 बच्चे समय से पहले ही जन्मे थे तो 9 बच्चों को इंफेक्शन था और 4 बच्चे गंदा पानी पी चुके थे।
मण्डला। मध्य प्रदेश के शहडोल में लगातार हो रही बच्चों की मौत से जहां पूरे प्रदेश में हड़कंप मचा हुआ था, तो वही अब मंडला जिले से भी बच्चों के मौत का मामला सामने आया है। यहां 11 माह में 146 नवजात शिशु मौत के मुंह में समा चुके हैं। ज्यादातर बच्चों की मौत सांस की तकलीफ, दिमागी झटके, समय के पहले जन्म और कम वजन होने के कारण हुई है जो यह बताने के लिए काफी है कि जिले में नवजात का जन्म सुरक्षित नहीं है। जिले के एसएनसीयू में 1321 बच्चे जनवरी से नवंबर माह तक भर्ती कराए गए। जिनमें से 1060 डिस्चार्ज हुए और 100 बच्चों को अन्य अस्पतालों में रैफर कर दिया गया। वही अप्रैल से नवंबर तक अस्पताल में भर्ती किए गए बच्चों की मौत पर नज़र दौड़ाए तो 0 से 29 दिनों के बच्चों के आंकड़े हैं, जिन्हें गहन शिशु वार्ड में रखा गया। जबकि शून्य से 5 साल के बच्चों के आंकड़ों की बात की जाए तो यह आंकड़ा 298 तक पहुंच जाता है।
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मंडला जिले के निवास विधानसभा क्षेत्र से विधायक डॉ. अशोक मर्सकोले द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकडों के हिसाब से अप्रैल 2020 माह से नवम्बर माह तक 0 से 28 दिन के 212 बच्चे, 29 दिन से 1 साल तक के 61 बच्चे, 1 साल से 5 साल तक के 25 बच्चे काल के गाल में समा गए जिनकी कुल संख्या 298 होती है। प्रसव के लिए आने वाली गर्भवती महिलाओं में से अनेक महिलाओं को सूनी गोद लेकर लौटना पड़ता है। मिली जानकारी अनुसार जिला चिकित्सालय में जनवरी 2020 से लेकर नवम्बर 2020 तक यानि कि 11 माह में 298 बच्चों की मौत हो चुकी है। जिसमें से 146 नवजात शिशु हैं। इन मौतों की मुख्य वजह इलाज में देरी, स्टॉफ की कमी और संसाधनों का अभाव बताया गया है।
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जानकारी के अनुसार इन मृतक 146 बच्चों में 70 नवजात को सांस लेने में तकलीफ थी। जबकि 32 बच्चों को झटके आ रहे थे और 13 बच्चों का वजन बहुत ही कम था। वही 11 बच्चे समय से पहले ही जन्मे थे तो 9 बच्चों को इंफेक्शन था और 4 बच्चे गंदा पानी पी चुके थे। मतलब मृत सभी नवजात की हालत नाजुक थी। विधायक डॉ. अशोक मर्सकोले ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए जिले की स्वास्थ सुविधाओं पर बड़ा सवाल खड़ा किया है। उनका कहना है कि जिले का जिला चिकित्सालय हो या फिर दूरदराज के कोई भी स्वास्थ्य केंद्र हर जगह स्टॉफ की कमी है । जिले में कोई डॉक्टर आना ही नहीं चाहता ऐसे में लगातार हो रही मौतों का आखिर जिम्मेदार कौन है। यह तय करना शासन-प्रशासन और सरकार की जिम्मेदारी है।
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वही मुख्य जिला चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. श्रीनाथ सिंह ने कहा कि बच्चों की हुई मौतों के अलग-अलग कारण हैं। इससे ज्यादा मौतें प्रदेश के अन्य जिलों में हो रही हैं। उन्होंने कहा कि मामला जानकारी में आया है जिसकी विधिवत जानकारी ली जा रही है। किन कारणों से मौंत हो रही है और कैसे रोका जा सकता है। इस पर प्लानिंग की जा रही है।जबकि कमिशनर जबलपुर संभाग बी.चंद्रशेखर का कहना है कि 11 माह में 298 बच्चों की मौंत हुई है। स्टॉफ संसाधन सहित जागरूकता का अभाव दिखाई दे रहा है। राज्य सरकार की जानकारी में मामला लाया जाएगा।
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