नागरिकता संशोधन कानून से लेकर कृषि कानून तक, साल 2020 के 10 महत्वपूर्ण घटनाक्रम
हिन्दुस्तान के लिए साल 2020 काफी उतार-चढ़ाव वाला रहा है। नागरिकता संशोधन कानून से लेकर कृषि संबंधी कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन तक चक्का जाम होता रहा। हालांकि, इन तमाम मुद्दों के बीच एक मुद्दा ऐसा था जो सालभर सुर्खियों में रहा और वो था कोरोना वायरस संक्रमण।
- लद्दाख सीमा विवाद
भारतीय सीमा में घुसपैठ की कोशिश कर रहे चीन की पीएलए ने भारतीय सैनिकों पर हमला कर दिया था। इस हमले में भारतीय सेना के एक अधिकारी समेत 20 जवानों की मौत हो गई थी। हालांकि, रिपोर्ट्स कहती है कि झड़प में चीन के भी 50 सैनिक मारे गए थे। पूर्वी लद्दाख के गलवान घाटी इलाके में यह झड़प 15-16 जून की दरमियानी रात को हुई थी। बाद में खबर यह भी आई कि पैंगॉन्ग इलाके में चीनी सैनिक घुसपैठ की कोशिश कर रहे थे, जहां पर भारतीय सैनिकों ने उन्हें खदेड़ा था।
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भारत-चीन के बीच बढ़ते तनाव को कम करने के लिए फिर सैन्य स्तर की वार्ता शुरू हुईं, जिनका कुछ खास असर दिखाई नहीं दिया लेकिन भारत हमेशा से शांति बनाए रखने की कोशिश करता रहा है और वह अभी भी अपने पड़ोसी देश के साथ बातचीत के जरिए हल निकालने के प्रयास में जुटा हुआ है।
इस मामले को लेकर संसद में विपक्षी दलों ने सरकार को घेरने का प्रयास भी किया और साथ-साथ राष्ट्रीय मुद्दे पर सरकार के साथ खड़े रहने की बात भी कही। चीन के साथ जारी सैन्य वार्ता की जानकारी रखने वाले लोगों ने बताया कि भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने स्पष्ट और कड़े शब्दों में चीनी पक्ष को बताया कि दोनों देशों के बीच समग्र संबंधों के लिए पूर्वी लद्दाख के सभी क्षेत्रों में विवाद शुरू होने से पहले की यथास्थिति की बहाली आवश्यक है और बीजिंग को विवाद के बाकी बिन्दुओं से सैनिकों की वापसी सुनिश्चित करनी चाहिए। भारत चाहता है कि पहले वाली स्थिति दोबारा बहाल हो जाए और चीनी सैनिक पीछे चले जाए।
महत्वपूर्ण है गलवान घाटी
पश्चिमी हिमालय की गलवान नदी घाटी को लेकर भारत और चीन के बीच विवाद है। गलवान घाटी विवादित क्षेत्र अक्साई चीन में आता है। गलवान घाटी पर वास्तविक नियंत्रण रेखा अक्साई चीन को भारत से अलग करती है। 1962 की जंग के समय भी गलवान का यह क्षेत्र युद्ध का प्रमुख केंद्र बिंदु था। इसकी शुरुआत 1958 से हो गई थी जब अक्साई चीन में चीन ने सड़क बनाई थी जो कराकोरम रोड से जुड़ती है और पाकिस्तान की तरफ आगे जाती है। जब सड़क बन रही थी तब भारत का ध्यान उस पर नहीं गया लेकिन सड़क बनने के बाद भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उस पर आपत्ति जताई थी और वही समय था जब से भारत यह कहता आया है कि चीन ने अक्साई चीन पर कब्जा कर लिया है और अब वह धीरे-धीरे आगे बढ़ने का प्रयास कर रहा है।
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- नागरिकता संशोधन कानून
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में नागरिकता संशोधन कानून पर बहुत बल दिया और 10 जनवरी 2020 को इसे लागू कर दिया। नागरिकता संशोधन कानून की सुगबुगाहट मात्र से ही जगह-जगह प्रदर्शन होने लगे थे और लोग इसे एनआरसी के साथ जोड़कर देख रहे थे लेकिन सरकार ने दोनों के बीच के अंतर का बताया और यह भी साफ किया कि एनआरसी को लाने की अभी कोई योजना नहीं है।
उल्लेखनीय है कि एनडीए 2.0 की मोदी सरकार ने संसद से नागरिकता संशोधन कानून को पारित किया। इस विषय पर भाषण देते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में कहा था कि एनआरसी तो आकर ही रहेगा। जिसके बाद विवाद खड़ा हो गया। सरकार के खिलाफ लोगों का गुस्सा सड़कों पर दिखाई देने लगा। जगह-जगह विरोध प्रदर्शन होने लगे और क्रोनोलॉजी जैसे शब्दों का चलन शुरू हो गया। हालांकि, बढ़ते हुए विरोध प्रदर्शन को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक चुनावी जनसभा में यह साफ कर दिया कि सरकार एनआरसी के बारे में कोई विचार नहीं कर रही है।
प्रधानमंत्री के संबोधन के बाद विवाद पहले से थोड़ा कम जरूर हुआ लेकिन जारी रहा और फिर 10 जनवरी 2020 को इसे लागू कर दिया। एक मत ऐसा भी है कि एनआरसी और सीएए को लोगों ने मिलाकर एक नए विवाद को जन्म दे दिया था। जबकि दोनों एक-दूसरे के उलट हैं। मोदी सरकार ने देश में नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन किया। जिसके मुताबिक 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से भारत आए हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों एवं ईसाइयों को अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा।
- उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगा
दिल्ली के उत्तर पूर्वी इलाकों में नागरिकता संशोधन कानून का समर्थन और विरोध करने वाले गुटों के बीच झड़प शुरू हो गई, जो बाद में हिंसा में तब्दील हुई और इसमें करीब 53 लोगों को अपनी जान गंवाई पड़ी। मौजपुर से शुरू हुआ बवाल इतना ज्यादा बढ़ गया था कि दोनों गुटों के बीच ईट-पत्थर चलने लगे। हिंसा ग्रस्त इलाकों में आवाजाही रोकने पड़ी और मोदी सरकार को अपने सबसे काबिल अफसरों में से एक राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को हिंसाग्रस्त इलाकों में भेजना पड़ा। जिसके बाद मामला थोड़ा ठंडा पड़ा और फिर दिल्ली पुलिस ने तहकीकात तेज कर दी। धीरे-धीरे गिरफ्तारियां होने लगीं।
क्यों और कैसे जली दिल्ली ? क्या सोची समझी रणनीति के तहत हुई थी हिंसा ? इस तरह के सवालों के साथ दिल्ली पुलिस एसआईटी जांच में जुट गई। जांच के लिए पुलिस ने निवासियों और मीडिया कर्मियों से भी मदद मांगी और कहा कि जिनके पास भी हिंसा से जुड़ी हुई तस्वीरें, वीडियो फुटेज या फिर अन्य सबूत हों वह दिल्ली पुलिस को मुहैया कराएं।
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राजधानी के उत्तरपूर्वी इलाकों में हुई हिंसा को लेकर विपक्षी दलों ने सरकार की जमकर आलोचना की थी। इतना ही नहीं वायनाड से कांग्रेस सांसद और पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल दंगा ग्रस्त इलाकों का दौरा करने पहुंचा था। उस वक्त राहुल ने कहा था कि इस हिंसा से भारत माता को कोई फायदा नहीं है। हर समय हर किसी को एक साथ काम करके भारत को आगे ले जाना होगा।
हालांकि, विपक्ष द्वारा उठाए गए सभी सवालों का जवाब देते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में कहा था कि दिल्ली दंगा को राजनीतिक रंग देने का प्रयास हुआ है। जिन लोगों की जान गई है उनके लिए दिल से दुख व्यक्त करता हूं।
उस वक्त गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि दिल्ली पुलिस के सिर पर पहली जिम्मेदारी हिंसा को रोकना थी। 24 फरवरी 2020 को 2 बजे के आस-पास पहली सूचना प्राप्त हुई थी और अंतिम सूचना 25 फरवरी को रात 11 बजे प्राप्त हुई। दिल्ली पुलिस ने 36 घंटे में दंगे को समाप्त करने का काम किया है।
- प्रवासी मजदूर
कोरोना वायरस महामारी के दौरान देश ने आजादी के बाद का सबसे बड़ा पलायन देखा। हालांकि, केंद्र की मोदी सरकार ने प्रवासी कामगारों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए श्रमिक विशेष रेलगाड़ियों की व्यवस्था कीं फिर भी बहुत से कामगार पैदल अपने घरों की तरफ जाने के लिए मजबूर हुए और पैदल चले भी गए। इस दौरान कई हृदय-विदारक घटनाओं भी सामने आईं तो सड़क दुर्घटनाओं ने कई प्रवासियों की जान ले ली।
चीन के वुहान शहर से फैले इस वायरस ने लगभग दुनिया के हर एक देश को अपनी चपेट में ले लिया था और सरकारों, स्वास्थ्य अधिकारियों के पास इससे बचाव का कोई उपाय नहीं था। थी तो महज उम्मीद, कोरोना से जंग जीतने की। इसी बीच सरकार ने देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा कर दी। जो जहां था, वो वहीं रह गया और फिर दिखाई दिया सबसे बड़े पलायन की तस्वीर सामने आई। कोई श्रवण कुमार अपने माता-पिता को उठाकर पैदल घर की तरफ निकला तो एक मासूम सा बच्चा रेलवे स्टेशन के भीतर मर चुकी अपनी मां के साथ खेलने की कोशिश करते दिखा। तो एक तस्वीर ऐसी भी सामने आई जिसमें बच्चा सूटकेश के ऊपर लेटा हुआ था और उसकी मां सूटकेश को घसीटते हुए ले जा रही थी... इत्यादि... ऐसी बहुत सी कहानियां दिखाई और सुनाई दी हैं।
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एक तरफ कामगार पलायन का दर्द झेल रहे थे तो दूसरी तरफ करोड़ों लोगों की नौकरियां उनसे छिन गई थी। एक नया शब्द गूंज रहा था वर्क फ्राम होम का... लेकिन देहाड़ी मजदूरों को भला वर्क फ्राम होम से क्या नाता रहा होगा यह भी सोचने लायक है।
- कमलनाथ सरकार का गिरना
देश में एक तरफ कोरोना महामारी की एंट्री हो चुकी थी और दूसरी तरफ मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार को बाहर का रास्ता दिखाने की योजना भी तैयार हो चुकी थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक 22 विधायकों द्वारा इस्तीफा दिए जाने के कारण कमलनाथ की सरकार गिर गई और एक बार फिर से शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए। इस बीच कांग्रेस और भाजपा के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया।
कांग्रेस के 22 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था लेकिन उपचुनाव होते-होते 28 सीटें खाली हो गईं थीं। जिस पर उपचुनाव कराए गए थे। 28 सीटों पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस को महज 9 सीटें ही मिली थी और शिवराज सिंह चौहान ने 19 सीटें जीतकर अपनी सरकार को सुरक्षित कर लिया था।
- हाथरस मामला
एक बार फिर से गैंगरेप की घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था लेकिन इस बार यह भयाभय घटना योगी आदित्यनाथ के राज्य उत्तर प्रदेश में हुई थी। उत्तर प्रदेश के हाथरस में 14 सितंबर को यह घटना घटित हुई थी, जिसके बाद पीड़िता को उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वहीं, उत्तर प्रदेश सरकार का कहना है कि शुरुआत में पीड़िता ने गैंगरेप की बात नहीं बताई थी लेकिन जब इस बारे में बयान सामने आया उसके बाद पीड़िता को तुरंत ही दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल ले जाया गया। हालांकि, 29 सितंबर को पीड़िता ने देह त्याग दिया था।
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हाथरस पीड़िता की मौत के बाद राजनीतिक पार्टियां एक्टिव हो गईं थीं और पीड़िता के परिवार को न्याय दिलाने की मांग करने लगी और फिर कुछ वक्त के बाद हाथरस छाविनी में तब्दील कर दिया और नेताओं की एंट्री बंद कर दी गई। हालांकि, विवाद जब ज्यादा बढ़ने लगा तो कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, महासचिव प्रियंका गांधी और फिर बाद में कुछ और नेताओं को मिलने दिया गया।
उत्तर प्रदेश सरकार पर मामले को दबाने के भी आरोप लगे थे। वहीं, उत्तर प्रदेश पुलिस ने आधी रात को पीड़िता का अंतिम संस्कार कर दिया था और वो भी परिवारवालों की मौजूदगी के बिना। फिलहाल यह मामला न्यायालय में है।
- किसान आंदोलन
केंद्र की मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानून के विरोध में किसान यूनियनों ने चक्का जाम किया हुआ है। पहले किसानों ने 'रेल रोको अभियान' की शुरुआत की थी लेकिन बाद में उसे वापस ले लिया गया था लेकिन अब किसानों ने दिल्ली की तरफ कूच करते हुए 'दिल्ली चलो' अभियान का नेतृत्व किया है। किसान संगठनों की मांग है कि सरकार नए कृषि कानूनों को वापस लें और इन्हीं मांगों के साथ किसान ठंड में ठिठुरते हुए दिल्ली की सीमाओं पर धरना दिए हुए हैं। दिल्ली की सीमाओं पर तकरीबन चार सप्ताह से किसान डटे हुए हैं और इसके कारण सीमा पर कई बिंदुओं पर यातायात का मार्ग परिवर्तित किया गया है जिसकी वजह से यात्रियों को असुविधा का सामना करना पड़ रहा है। किसान आंदोलन जब से शुरू हुआ है तब से ही दिल्ली यातायात पुलिस लगातार ट्वीट कर सड़के बंद होने और वैकल्पिक मार्गों से जुड़ी जानकारी यात्रियों को दे रही है।
वहीं, इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रुख साफ है कि सरकार एमएसपी प्रणाली को वापस नहीं लेगी। हालांकि, सरकार किसान संगठनों के लगातार बातचीत कर इसका समाधान निकालने की कोशिश कर रही है।
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- नेपाल का विवादित नक्शा
भारत-चीन के साथ जारी सीमा विवाद के बीच नेपाल ने विवादित नक्शा को मंजूरी दे दी। जिसमें कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा क्षेत्रों को नेपाल में अपना बताया है। नेपाल की संसद में विवादित नक्शे में संशोधन का प्रस्ताव हुआ और 275 सदस्यों वाली संसद में 258 वोट पक्ष में पड़े। हालांकि, भारत सरकार ने नेपाल के दावे को खारिज कर दिया।
बता दें कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 8 मई को लिपुलेख से धारचूला तक बनी गई सड़क का उद्धाटन किया था। जिसके बाद नेपाल ने इसे अपना हिस्सा बताते हुए विरोध दर्ज कराया और फिर 10 दिन बाद यानी की 18 मई को नेपाल ने नया नक्शा भी जारी कर दिया। जिसमें उन्होंने भारत के तीन इलाकों को अपना बताया। नेपाल के इस कदम पर भारत सरकार का बयान सामने आया। जिसमें कहा गया कि नेपाल का दावा ऐतिहासिक सबूतों और तत्थों पर आधारित नहीं है। जिसका मतलब साफ है कि नेपाल की ओर से किया गया दावा मान्य नहीं है।
- बिहार चुनाव
वैश्विक कोरोना महामारी के बीच चुनाव आयोग ने बिहार में विधानसभा चुनाव का आयोजन किया। जो सरकारी दिशा-निर्देशों के साथ सफल हुआ। हालांकि, बिहार के कई हिस्सों से कोरोना महामारी के नियमों के उल्लंघन की भी तस्वीरें सामने आईं। लेकिन वैश्विक महामारी के बीच बिहार जैसे राज्यों में चुनाव कराना अपने आप में काबिल-ए-तारीफ है।
243 सीटों पर हुए विधानसभा चुनाव के परिणाम देर रात तक सामने आए लेकिन एक बार फिर से प्रदेश में नीतीश कुमार की सरकार बन गई। नीतीश कुमार एनडीए का हिस्सा हैं। हालांकि, चुनाव परिणामों में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। आरजेडी को सबसे ज्यादा 75, भाजपा को 74, जदयू को 43, कांग्रेस को 19 सीटें मिली हैं।
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एग्जिट पोल में महागठबंधन का सरकार बनते हुए दिखाई दे रही थी लेकिन जब बिहार चुनाव के परिणाम सामने आए तो महागठबंधन की तरफ से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव काफी निराश हुए। हालांकि, पिता लालू प्रसाद यादव के बिना चुनाव लड़कर सबसे ज्यादा सीट लाने वाले तेजस्वी ने अपना काम तो कर दिया था मगर उनकी सहयोगी पार्टी कांग्रेस कुछ खास नहीं कर पाई और अंतत: ईवीएम का रोना शुरू कर दिया। जिसके बाद चुनाव आयोग ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर साफ कर दिया कि ईवीएम से कोई छेड़छाड़ नहीं हो सकती है।
- भारत-बांग्लादेश ट्रेन सेवा की शुरुआत
भारत-बांग्लादेश के रिश्तों में उस वक्त और भी ज्यादा मधुरता आ गई जब 55 साल से बंद पड़ी चिल्हाटी-हल्दीबाड़ी रेल लाइन को शुरू करने पर मुहर लगा दी गई। बता दें कि भारत और तब के पूर्वी पाकिस्तान के बीच रेल संपर्क टूटने की वजह से हल्दीबाड़ी से चिल्हाटी जाने वाली रेल साल 1965 में बंद हो गई थी। लेकिन अब रेल सेवा की शुरुआत होने से व्यापार में तेजी आएगी।
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