देवी दुर्गा को अनेकों रूप में प्रस्तुत करने वाला बंगाल महुआ और उनकी इमैजिनेशन वाली 'काली मां' को लेकर क्यों हुआ असहिष्णु?
हम भगवान को कई रूप में स्वीकार करते हैं। लेकिन जहां बात मां काली की आती है तो फिर ये सारी चीजें इतनी आसान नहीं रह जाती हैं। काली को लेकर बंगाल के लोग अत्यंत विश्वासी है।
जय काली कलकत्ते वाली बंगाल के मंदिरों के बाहर कुछ साधु संत ये बोलते हुए नजर आ जाएंगे। मां काली और कोलकाता एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं। काली की कथा बंगाल के सांस्कृतिक अस्तित्व का एक अच्छा हिस्सा हैं। न केवल इतना बल्कि वो अपने ही परिवार की एक और सदस्य हैं। वो राक्षसों का संहार करती हैं और कुछ के लिए वह एक मां हैं। देवी दुर्गा की अराधना और उनके प्रति आस्था व्यक्त करते हुए कला और सामाजिक संदेश प्रस्तुत किए जाने के अनेकों उदाहरण आपको बंगाल में मिल जाएंगे। समान भोजन के वितरण वाले संदेश प्रसारित करने वाली बिस्किट से बनी पूजा पंडाल जो भोजन और पोषण की दाता हिंदू देवी अन्नपूर्णा पर केंद्रित है। शहर के तेजी से और अनियोजित शहरीकरण का शिकार बनी आदी गंगा को बचाने के लिए एक मंदिर समिति द्वारा पंडाल का निर्माण कराया गया। इतना ही ही नहीं देवी दुर्गा की मूर्ति ममता बनर्जी की शक्ल की भी बनाई जा चुकी है। कहीं एनआरसी का दर्द बयां करते पंडाल, किसान आंदोलन से लेकर कोरोना वायरस की थीम। एक जगह तो बीते बरस ऐसी मूर्ति नजर आई जहां ममता के दस हाथ नजर आए। हरेक हाथ में बंगाल सरकार की योजनाओं को चित्रित किया गया। इतना लंबा सार बताने के पीछे का मकसद ये है कि हम भगवान को कई रूप में स्वीकार करते हैं। लेकिन जहां बात मां काली की आती है तो फिर ये सारी चीजें इतनी आसान नहीं रह जाती हैं। काली को लेकर बंगाल के लोग अत्यंत विश्वासी है। इसलिए पूजा की प्रक्रिया से लेकर मूर्ति की रूप रेखा में किसी भी किस्म के बदलाव से परहेज किया जाता है।
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2 जुलाई को काली नाम की एक डॉक्यूमेंट्री का पोस्टर लॉन्च हुआ। इस पोस्टर में देवी काली के वेश में एक महिला है। एक हाथ में त्रिशूल, एक हाथ में प्राइड फ्लैग और तीसरे हाथ में सिगरेट। इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म की डॉयरेक्टर लीना मणिमेकलाई के खिलाफ देश के अलग-अलग हिस्सों में एफआईआर भी दर्ज हो गई। 5 जुलाई को तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा से इंडिया टुडे कॉन्क्लेव ईस्ट में इस विवाद पर सवाल किया गया। तब महुआ ने कहा था कि इस बात पर निर्भर करता है कि आप अपने ईष्ट या अराध्या की कल्पना कैसे करते हैं। मेरे लिए काली एक ऐसी देवी हैं जो मांस खाती हैं, शराब को भी स्वीकार करती हैं। अगर आप तारा पीठ जाएं तो आप साधुओं को ध्रूमपान करते हुए भी देख सकते हैं। काली का एक ये स्वरूप भी है, हिन्दू धर्म के भीतर। मुझे एक काली उपासक के रूप में हक है कि मैं काली की अपनी अलहदा कल्पना तैयार करूं। इससे किसी की भावनाओं कै आहत नहीं होना चाहिए। मुझे ये करने का उतना ही हक है, जितना आपको ये सोचने का कि आपके ईष्ट सफेद कपड़े पहनते हैं, शाकाहार करते हैं। बयान देकर महुआ मोइत्रा डॉक्यूमेंट्री फिल्म काली के पोस्टर को लेकर छिड़े विवाद की लपटों में घिर गयीं। तृणमूल कांग्रेस ने महुआ मोइत्रा के नजरिये से तौबा कर ही लिया है। महुआ मोइत्रा के ये बयान आने के साथ ही इस पर विवाद शुरू हो गया। मध्य प्रदेश में भावनाएं भड़काने का मामला भी दर्ज हो गया। महुआ के संसदीय क्षेत्र कृष्णानगर में भी उनके खिलाफ विरोध हुए।
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कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने ट्वीटर पर लिखा कि महुआ मोइत्रा पर वही कहने के लिए हमले हो रहे हैं जो हिंदू पहले से जानते हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों में पूजन का तरीका अलग है। अनुयायी भोजन में जो चढ़ाते हैं वो ईष्ट से ज्यादा अनुयायी के बारे में बताता है। आगे थरूर ने लिखा की आप बिना किसी को आहत किए धर्म के बारे में कुछ भी कहना संभव नहीं रह गया है। थरूर का मोइत्रा को सपोर्ट किया जाना राहुल गांधी और सोनिया गांधी की फजीहत बढ़ाने वाला ही मामला लगता है। ऐसे में कहीं रणदीप सिंह सुरजेवाला को भी कांग्रेस की तरफ से शशि थरूर को लेकर वैसा ही ट्वीट करना पड़े जैसा टीएमसी ने महुआ मोइत्रा के केस में किया है। शशि थरूर ने ये कहते हुए महुआ मोइत्रा का बचाव किया है, 'ये पक्की बात है कि महुआ मोइत्रा किसी को अपमानित नहीं करना चाहती थीं। फिर क्या कहा जाये ये बात तृणमूल कांग्रेस यानी ममता बनर्जी भी नहीं समझ पा रही हैं?
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मां काली पर दिए गए विवादित बयान के बीच अब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपनी ही पार्टी टीएमसी की सांसद महुआ मोइत्रा को इशारों में नसीहत दे डाली। टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा को इशारों में ही नसीहत देते हुए कहा कि, लोगों की भावनाओं को समझना जरूरी है। ममता बनर्जी ने यह भी कहा कि, कभी कभी मुझे लगता है कि, हम हमेशा किसी नकारात्मक मुद्दे पर विवाद पैदा करने पर जोर देते हैं। ममता बनर्जी ने आगे बोलते हुए कहा कि, हालांकि, कभी कभी कुछ गलतियां हो जाती हैं। एक बार नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने कहा था कि, भूल करने के लिए लिखो. जो काम करता है उससे गलती हो सकती है। इसे ठीक किया जा सकता है। बीजेपी से टीएमसी में गए सांसद बाबुल सुप्रियो ने भी अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर ऐसी टिप्पणी से बचने की सलाह दी। यानी महुआ मोइत्रा का मां काली को लेकर बयान आया तो ममता बनर्जी से लेकर बंगाल के लोग भी इसे खुले मन से स्वीकार नहीं कर पाए। कुल मिलाकर कहा जाए तो हरेक सभ्यता, संस्कृति की एक बारिक रेखा होती है जिसे पार किया जाना स्वीकार योग्य नहीं होता है।
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200 साल पुराने काली घाट में हर दिन जानवरों की बलि दी जाती है। आम तौर पर भक्तों द्वारा लाया जाता है जो इसे देवी को प्रतिज्ञा करते हैं। बाद में मांस पकाया जाता है और भक्तों को प्रसाद के रूप में पेश किया जाता है। हालांकि, यहां देवी को शाकाहारी भोजन दिया जाता है, जबकि उनके साथियों- डाकिनी और योगिनी को बलिदान से प्राप्त मांसाहारी भोजन दिया जाता है। देश भर में देवी काली को विभिन्न तरीकों से चित्रित और मनाया जाने के बावजूद, एक सामान्य डोर है जो उनकी भक्ति को बांधता है। इसके साथ ही काली को शराब, सिगरेट के साथ दिखाए जाने वाले रूप तो बर्दाश्त के बाहर है। देश के बाकी हिस्सों को छोड़ कर देखें, तो मां काली की बंगाल में खास अहमियत है। महुआ मोइत्रा की टिप्पणी ऐसे वक्त आयी है जब देश में बहस हिंदुत्व बनाम मुस्लिम चल रही है। तृणमूल कांग्रेस का महुआ मोइत्रा के बयान से दूरी बना लेना भी बंगाल से आगे बढ़ कर व्यापक हिंदू भावना और मां काली के अपमान को देखते हुए लगता है। महुआ मोइत्रा ने तृणमूल कांग्रेस को नयी मुसीबत में डाल दिया है। फिर भी जैसा एक्शन बीजेपी ने नुपुर शर्मा के मामले में लिया है, ममता बनर्जी ने फिलहाल नरमी ही दिखायी है।
-अभिनय आकाश
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