कौन हैं बदरुद्दीन अजमल जिसे BJP मानती है असम का दुश्मन नंबर 1
कंधे पर असमिया गमछा, सिर पर टोपी और जुबान पर तल्खी। यही पहचान है एआईयूडीएफ चीफ बदरुद्दीन अजमल की। असम के घमासान में बीजेपी को परास्त करना, हर हाल में मुस्लिम वोट बैंक को अपने पाले में रखना यही बदरुद्दीन अजमल की सियासत का एकमात्र फलसफां है।
असम विधानसभा चुनाव में सियासी पंडित बीजेपी और कांग्रेस में टक्कर की भविष्यवाणी कर रहे हैं। लेकिन सियासत में एक चेहरा ऐसा भी है जो खुद को मुसलमानों का मसीहा मानता है और बीजेपी को अपना सबसे बड़ा दुश्मन। वहीं बीजेपी इस नेता को असम का सबसे बड़ा दुश्मता बताती है। वैसे तो पिछले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस को करारी शिकस्त देकर सत्ता हासिल की थी और 15 साल से सत्ता में रही कांग्रेस को किनारे लगा दिया। लेकिन इस बार के चुनाव में असम के मुस्लिम नेता की वजह से कई सारे चुनावी समीकरण बदल गए हैं। नाम है बदरुद्दीन अजमल। इस बार के चुनाव में बदरुद्दीन अजमल ने कांग्रेस से हाथ मिलाया है ताकी बीजेपी को सिंहासन से हिलाया जा सके। आखिर कौंन हैं बदरुद्दीन अजमल जिसपर बीजेपी कांग्रेस के मुकाबले ज्यादा हमलावर है और आखिर क्या है अजमल का असम विजय प्लान।
चुनाव में जाने वाले राज्य असम में मुललमानों की आबादी एक तिहाई से अधिक है, वहीं पश्चिम बंगाल और केरल में एक चौथाई से अधिक है। असम और पश्चिम बंगाल में दो राजनीतिक दल, ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) और इंडियन सेकुलर फ्रंट (ISF) क्रमशः केरल में समुदाय विशेष को जुटाने के इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) की सफलता का अनुकरण करने की कोशिश कर रहे हैं। आईयूएमएल केरल में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (UDF) का एक प्रमुख घटक है। जबकि एआईयूडीएप और आईएसएफ असम और पश्चिम बंगाल में गठबंधन के घटक हैं जिनमें कांग्रेस और वामपंथी दल शामिल हैं।
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कौन हैं बदरुद्दीन अजमल ?
कंधे पर असमिया गमछा, सिर पर टोपी और जुबान पर तल्खी। यही पहचान है एआईयूडीएफ चीफ बदरुद्दीन अजमल की। असम के घमासान में बीजेपी को परास्त करना, हर हाल में मुस्लिम वोट बैंक को अपने पाले में रखना यही बदरुद्दीन अजमल की सियासत का एकमात्र फलसफां है। बदरुद्दीन अजमल का जन्म 1950 को असम में हुआ था। उनके कामकाज की बात की जआए तो वे राजनेता के अलावा समाजसेवी, व्यापारी और धर्मशास्त्री भी हैं। धुबरी से लोकसभा सांसद अजमल का मुम्बई ले लेकर दुबई और सिंगापुर तक आर्थिक सामराज्य है। मुसलमानो को रिझाने के लिए उनके तरकस में हर तीर है। अस्पताल ,अनाथालय, मदरसा चलाने के साथ ही वे वंशवादी सियासत भी चलाते हैं। उनके दो बेटे विधायक हैं और भाई बरपेटा से सांसद रहे है। अजमल हकीमी पानी देते हैं (जिसमें वो थूकते है) और उनके अनुयायी कहते हैं कि उससे बीमारी ठीक हो जाता है। अजमल से जब इस अंधविश्वास के बारे में पूछा जाता है तो वे कहते हैं कि अल्लाह की फजल से हम उनकी मदद करते हैं। साफ है कि गरीबी से परेशान मुसलमानो पर उनकी जादुई पकड़ है। बदरुद्दीन अजमल के सात बच्चे हैं।
कांग्रेस सरकार गिराने की धमकी और 2005 में बदरुद्दीन अजमल ने बनाई एआईयूडीएफ
भारतीय मुसलमानों का 9 दशक से भी ज्यादा पुराना संगठन जमीयत उलेमा ए हिंद की असम शाखा की तरफ से 3 अप्रैल 2005 को गुवाहाटी में एक विशाल रैली का आयोजन किया था। उस रैली में जमीयत के अध्यक्ष मौलाना असद मदनी ने अपने तीखे भाषणों में कांग्रेस को गिराने की धमकी दे डाली वो भी उस वक्त के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के मंच पर उपस्थित होते हुए। उस रैली में पूर्व सीएम प्रफुल्ल कुमार महंत समेत कई बड़े नेता वहां उपस्थित थे और सभी मदनी का भाषण सुनकर हैरान रह गए थे। ये वही जमीयत उलेमा ए हिंद है जिसकी ताकत और प्रभाव के दम पर बदरुद्दीन अजमल ने असम की सियासत में एंट्री की। असम की सियासत में मुस्लिम आबादी की दखल और जमीयत की ताकत की बदौलत ही रैली में मदनी ने एक मुख्यमंत्री की मौजूदगी में सरकार गिराने की बात कह डाली थी। इस घटना के ठीक छह महीने बाद बदरुद्दीन अजमल ने ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) नाम से अलग पार्टी बना ली। 2006 के विधानसभा चुनाव में एआईयूडीएफ ने 10 सीटें जीत ली। इस चुनाव में खुद बदरुद्दीन अजमल असम की दो विधानसभा सीट दक्षिण सालमारा और जमुनामुख से भारी वोटों से जीतकर आए। इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने धुबरी से चुनाव लड़ा और सांसद चुने गए जिसके बाद से वो लगातार सांसद हैं। 2011 में उन्होंने 18 सीटों पर अपने उम्मीदवारों को जिताने में सफल रहे। साल 2016 में असम के विधानसभा चुनाव में एआईयूडीएफ को 14 सीटें मिली थी। हालांकि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की सीटी 3 से घटकर 1 रह गई।
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इत्र का कारोबार
राजनीति के साथ ही अजमल परिवार का इत्र का कारोबार भी है।दुनियाभर में फैले करोड़ों रुपयों के इत्र के कारोबार की बदौलत अजमल परिवार ने अपने पैतृक जिले होजाई में 500 बिस्तर वाला ग्रामीण अस्पताल बनवाया है। बदरुद्दीन अजमल के पिता अजमल अली शुरुआती दिनों में गांव में खेती करते थे लेकिन बाद में परफ्यूम बनाने वाले अगर के पेड़ का कारोबार करने लगे। धीरे-धीरे जब इस कारोबार में सफलता मिली तो वे मुंबई चले गए और वहां इत्र का एक बड़ा कारोबार खड़ा कर दिया। इस वक्त दुबई समेत खाड़ी के करीब सभी देशों में अजमल के इत्र के बड़े शोरूम हैं।
गोगोई सरकार से टकराव
साल 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने विवादास्पद अवैध अप्रवासी कानून (आईएमडीटी) को रद्द कर दिया था। इसके लिए ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के नेता और बीजेपी के सीएम उम्मीदवार सर्बानंद सोनोवाल ने लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी थी, जिसके बाद अदालत का ये फैसला आया। आईएमडीटी की वजह से बदरुद्दीन अजमल और उस वक्त के कांग्रेस मुख्यंत्री तरुण गोगोई से टकराव बढ़ने लगा और वे सीधे तौर पर राजनीति में आ गए। आईएमडीटी कानून में अगर किसी की नागरिकता पर कोई संदेह होता था तो जांच अधिकारी को उस संदिग्ध व्यक्ति की नागरिकता प्रमाणित करनी होती थी और ये बहुत कठिन काम माना जाता था। लेकिन फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल व्यवस्था में जिस व्यक्ति की नागरिकता पर सवाल उठता है उसे खुद को अपनी नागरिकता का प्रमाण देना होता है। आईएमडीटी कानून रद्द होने से प्रदेश के बंगाली मुसलमानों के सामने एक बड़ी परेशानी खड़ी हो गई थी। मुसलमानों की इस परेशानी पर कांग्रेस कुछ खास नहीं कर पा रही थी और अवैध नागरिक ठहराए जाने से मुस्लिम समुदाय किसी नए नेता की उम्मीद में थे जो उन्हें भरोसा दे सके और संरक्षक भी। ऐसे में बंगाली मूल के मुसलमानों का बड़ा वर्ग बदरुद्दीन के साथ हो लिया। वहीं कांग्रेस की गोगोई सरकार के साथ उस वक्त अजमल के टकराव की अन्य वजह भी थी। कहा जाता है कि 2001 में तरुण गोगोई ने राज्य में कांग्रेस की सरकार बनाई लेकिन मंत्रिमंडल में जमीयत की सहायता से जीतकर आए अपने विधायकों के लिए अजमल प्रमुख विभाग चाहते थे, जिसे गोगोई ने नहीं माना। एक वक्त तो ऐसा भी रहा जब तरुण गोगोई ने सार्वजनिक तौर पर कह दिया था कि ये बदरुद्दीन कौन हैं?
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2021 का चुनाव बदरुद्दीन के लिए अबतक का सबसे बड़ा चुनाव
नरेंद्र मोदी को रोकने के लिए और असम जीतने के लिए बदरुद्दीन अजमल ने चुनावी मौसम में कांग्रेस का हाथ पकड़ लिया। सवाल ये है कि बदरुद्दीन अजमल की राह कितनी आसान और कितनी मुश्किल है। कितने फीसदी मुसलमान उनके साथ हैं और ये जानना और समझना बेहद ही जरूरी है। असम के चुनाव में कांग्रेस पार्टी 93 सीटों पर और एआईयूडीएफ 19 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। वहीं बीजेपी बदरुद्दीन अजमल पर कांग्रेस से भी ज्यादा हमलावर है और चुनावी रैलियों में उसके बयानों से लगता है कि वो कांग्रेस एक्ट्रा प्लेयर है और बड़ी चुनौती अजमल को माना जा रहा है। गृह मंत्री अमित शाह ने भी बीते दिनों अजमल और कांग्रेस को घुसपैठ को शरण देने का आरोप लगाया। वहीं पिछले चुनाव में बीजेपी को सत्ता तक लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले हिमंत बिस्व सरमा भी अजमल को असम का दुश्मन बता चुके हैं।
असम में मुसलमानों की अहमियत का सबब
1. जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक असम में मुस्लिम आबादी में सबसे ज्यादा बढोतरी दर्ज
हुई है। जो 2001 में 30.9 प्रतिशत से बढकर 2011 में 34.2 प्रतिशत हो गई।
2. भारत की कुल आबादी में मुसलमानों का प्रतिशत 13.4 प्रतिशत से बढकर 14.3 फिसदी
हुआ है।
3. असम में 35 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिम आबादी वाली सीट 2001 में 36 थी जो 2011 में
40 हो गई। इसके अलावा 14 अन्य विधानसभा क्षेत्रों में मुसलमानों की आबादी 25 से 30
फीसदी है।
4. 2011 में इन 40 में से कांग्रेस 18 और अजमल की पार्टी ने 16 सीट जीती। दूसरी ओर 14 अन्य विधान सभा में दस कांग्रेस और दो अजमल की पार्टी के खाते में गई।
बदरुद्दीन अजमल के विवादित बोल
बदरुद्दीन अजमल का विवादित बयान देने से भी पुराना नाता रहा है। एक बार उन्होंने कहा था कि अगर 2024 में बीजेपी फिर से सत्ता में आती है तो वह देश के 3500 मस्जिदों को ध्वस्त कर देगी। बदरुद्दीन ने दावा किया कि बीजेपी ने अभी से देशभर की 3500 मस्जिदों की लिस्ट बना ली है जिसे 2024 के आम चुनावों में सरकार बनने के बाद गिराया जाएगा।
तीन तलाक का विरोध करते हुए संसद में बदरुद्दीन अजमल ने कहा था कि मुसलमानों में जो लोग तीन तलाक को गलत मानते हैं, वह सलफी मसलक (सुन्नी मुसलमानों में मौजूद विचारकों का एक धड़ा) के लोग हैं, वह तो आतंकवादी हैं। जिसके बाद उनके अपने ही धर्म में अलग-अलग धर्म गुरुओं ने इस बयान की निंदा की जिसके बाद अजमल को लिखित माफी मांगनी पड़ी। बदरुद्दीन अजमल ने असम सरकार के 2 बच्चों से ज्यादा होने पर सरकारी नौकरी नहीं मिलने के फैसले को बकवास बताते हुए कहा था कि असम सरकार के नए मानदंड के बावजूद मुसलमान बच्चे पैदा करते रहेंगे।
प्रधानमंत्री मोदी पर भी बयान देते हुए लोकसभा चुनाव के वक्त उन्होंने कहा था कि इस बार देश से मोदी जी को बाहर निकालेंगे। उन्होंने कहा था कि मोदीजी कहीं ना कहीं जाकर चाय की दुकान चलाएंगे और पकोड़े भी बेचेंगे।
अभी हाल ही में बदरुद्दीन अजमल ने जनसंख्या बढ़ने व इसके नियंत्रण को लेकर अपनी राय सामने रखते हुए कहा कि जब लोग पढ़-लिख जाएं तो खुद अपने अच्छे-बुके को समझेंगे। इसके साथ ही उन्होंने गरीबी की समस्या को उजागर करते हुए कहा कि इसे दूर किए बिना जनसंख्या नियंत्रण नहीं हो पाएगा। अजमल ने पूछा कि गरीबीों को उनके मनोरंजन के लिए क्या दिया गया है? गरीबों के पास देखने के लिए टेलीविजन नहीं है, रहने को घर नहीं है और बिजली नहीं है। अब इंसान हैं वो भी। गरीब जब रात को उठेगा तो फिर मियां-बीवी हैं दोनों क्या करेंगे? बच्चे ही तो पैदा करेंगे। -अभिनय आकाश
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