Ayodhya Ram Mandir Inauguration: सरयू के तट से शुरुआत, अभिषेक के साथ समाप्त, प्राण प्रतिष्ठा समारोह क्या है? 22 जनवरी को होने वाले इस अनुष्ठान के बारे में जानें
राम मंदिर प्रतिष्ठा समारोह (प्राण प्रतिष्ठा) का सात दिवसीय विस्तृत अनुष्ठान 16 जनवरी को सरयू के तट पर शुरू होगा। अनुष्ठान 22 जनवरी को राम लला की मूर्ति के अभिषेक के साथ समाप्त होगा।
भगवान श्री राम सिर्फ अयोध्या की पहचान नहीं हैं, सबके प्राण हैं। रग रग में रोम रोम में राम समाए हुए हैं। अब उन्ही श्री राम की प्राण प्रतिष्ठा की घड़ी नजदीक आने वाली है। दिन तय हो गया है। मूर्हत निकाला जा चुका है। 22 जनवरी को पूरा देश इस अदभुत क्षण का साक्षी बनेंगा। जब रामलला इस भव्य, दिव्य और नव्य मंदिर में विराजमान होंगे। ये घड़ी 500 वर्षों के संघर्ष और प्रतीक्षा के बाद आने वाली है। लिहाजा भक्तों का उत्साह चरम पर है और तैयारियां भी अंतिम चरण में है। श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने इस उत्सव को सिर्फ अयोध्या तक ही सीमित नहीं रखा है बल्कि शहर शहर, गांव-गांव को इस शुभ घड़ी का हिस्सा बनाने की तैयारी है। कैसे तैयार हो रहा है राम का धाम, क्या है आयोजन की रूप रेखा इसको लेकर तो आपने कई सारी रिपोर्ट पढ़ी या देखी होंगी। लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि प्राण प्रतिष्ठा समारोह क्या है? इसकी हिंदू धर्म में क्या मान्यता रही हैं, मूर्ति में प्राण डालने की हिंदू रीति-रिवाज के बारे में सबकुछ।
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कब से शुरू होगी प्राण प्रतिष्ठा की प्रक्रिया
राम मंदिर प्रतिष्ठा समारोह (प्राण प्रतिष्ठा) का सात दिवसीय विस्तृत अनुष्ठान 16 जनवरी को सरयू के तट पर शुरू होगा। अनुष्ठान 22 जनवरी को राम लला की मूर्ति के अभिषेक के साथ समाप्त होगा। वाराणसी के पुजारियों द्वारा तय किए गए 'मुहूर्त' के अनुसार, यह 1 मिनट 24 सेकंड तक रहेगा। पंडित गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ और पंडित विश्वेश्वर शास्त्री ने कहा कि 'मूल मुहूर्त' 22 जनवरी को दोपहर 12:29:08 बजे से शुरू होगा और 12:30:32 बजे समाप्त होगा। उन्होंने कहा कि 'शुद्धि करण' की अवधि 19 जनवरी को शाम 6 बजे से शाम 6:20 बजे तक 20 मिनट तक रहेगी। एक और 'शुद्धि करण' अनुष्ठान 20 जनवरी को सूर्योदय से पहले आयोजित किया जाएगा। पिछले दिनों पं. गणेश्वर शास्त्री ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के उद्घाटन और राम मंदिर के शिलान्यास का समय भी तय किया था। प्रतिष्ठा समारोह के अनुष्ठान 16 जनवरी से शुरू होंगे और 22 जनवरी तक चलेंगे। इस बीच, वह सिंहासन तैयार हो गया है जिस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रामलला की नई मूर्ति स्थापित करेंगे। सिंहासन 3 फीट ऊंचा और 8 फीट चौड़ा है और मकराना संगमरमर से बना है और सोने की प्लेटों से ढका हुआ है।
अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन को लेकर पूरे देश में उत्साह का माहौल है। 22 जनवरी, 2024 को प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बाद भगवान राम लला की मूर्ति को राम मंदिर में स्थापित किया जाएगा। प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में दुनिया भर से बड़ी संख्या में वीवीआईपी और मशहूर हस्तियों के शामिल होने की उम्मीद है, क्योंकि मंदिर का निर्माण पूरा होने वाला है। क्या आप हिंदू प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान के बारे में जानते हैं? जबकि भगवान राम के भक्त इस पवित्र घटना का बेसब्री से इंतजार करते हैं, आइए पहले उन अनुष्ठानों की जांच करें जिनमें प्राण प्रतिष्ठा शामिल है।
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प्राण प्रतिष्ठा का क्या मतलब है?
अगर इसके शाब्दिक अर्थ पर जाए तो प्राण का अर्थ है जीवन शक्ति और प्रतिष्ठा का अर्थ है स्थापना। प्राण प्रतिष्ठा का अर्थ होता है किसी जीवन शक्ति को स्थापित करना। हिंदू धर्म में "प्राण प्रतिष्ठा" के नाम से जाने जाने वाले एक प्राचीन अनुष्ठान में पवित्रीकरण के बाद एक मंदिर में देवता की मूर्ति स्थापित करना शामिल है। वैदिक मंत्रों का जाप करते हुए पुजारी मूर्ति स्थापना अवधि के दौरान कई अनुष्ठान करते हैं। प्राण जीवन शक्ति का प्रतीक है, जबकि प्रतिष्ठा नींव का प्रतीक है। मूर्ति के भीतर जीवन शक्ति का आह्वान करना प्राण प्रतिष्ठा या अभिषेक समारोह के रूप में जाना जाता है।
प्राण प्रतिष्ठा समारोह का महत्व
प्रत्येक मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा को एक महत्वपूर्ण रिवाज माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि प्रत्येक मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा प्रक्रिया से पहले एक आकृति का एक सजावटी घटक मात्र है। ऐसा माना जाता है कि प्राण प्रतिष्ठा के माध्यम से, पवित्र मूर्तियों को भगवान की असाधारण शक्तियों से संपन्न किया जाता है। प्राण प्रतिष्ठा के पूरा होने के बाद भक्त इन मूर्तियों की पूजा कर सकते हैं।
प्राण प्रतिष्ठा समारोह की प्रक्रिया
प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान शुरू करने के लिए मूर्ति को सावधानीपूर्वक मंदिर में ले जाया जाता है। उसके बाद, उन्हें पवित्र दूध से स्नान कराकर और सुगंध से संतृप्त करके पुनर्जीवित किया जाता है। इसके बाद प्रक्रिया शुरू करने के लिए मूर्ति को गर्भगृह में रखा जाता है। इस समय मुख्य पुजारी मूर्ति को कपड़े पहनाते हैं और उसे पूर्व की ओर मुख करके रखते हैं। एक बार जब यह ठीक से स्थापित हो जाता है तो पुजारी भजन और मंत्रों का पाठ करना और अनुष्ठान करना शुरू कर देते हैं। सबसे पहले मूर्ति की आंखें खोली जाती हैं। ऐसा करने के बाद मूर्ति को पूजा के योग्य माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि अनुष्ठानों से मूर्ति में जान आ जाती है और मंदिर में पीठासीन देवता की स्वर्गीय उपस्थिति आ जाती है। ऐसा माना जाता है कि एक बार प्रतिष्ठित होने के बाद मूर्ति को अमर माना जाता है। हालाँकि, प्राण प्रतिष्ठा के बाद, मूर्ति पूजा अपने सभी अनुष्ठानों के साथ प्रतिदिन की जानी चाहिए।
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घर में ना रखे पत्थर की मूर्ति
हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार घर में कभी भगवान की पत्थर से बनी मूर्ति नहीं रखनी चाहिए। इसका महत्व मंदिरों तक ही होना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि पत्थर की मूर्ति हमेशा प्राण प्रतिष्ठा करके ही स्थापित करना चाहिए। इसके बाद नियमित रूप से इसकी विधिवत पूजा पाठ होते रहनी चाहिए। ऐसा अगर ना किया गया तो मूर्ति अपने आसपास की चीजों से ऊर्जा ग्रहण करने लगती है जो जातकों के लिए नाकारात्मक हो सकता है।
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