क्या है Hybrid Warfare, जिसे जीतने के लिए चीन जुटा रहा है भारतीयों की जानकारी
हाइब्रिड वॉरफेयर यानी सूचनाओं के सहारे युद्ध लड़ना। हाइब्रिड वॉरफेयर के तहत चीन अपने दुश्मन देश में सामाजिक विद्वेष को बढ़ा रहा है, आर्थिक गतिविधियों में बाधा डाल रहा और संस्थाओं को खोखला कर रहा है, राजनीतिक नेतृत्व और उसकी क्षमता को कलंकित कर रहा है।
भारत ने चीनी एप्स पर एक-एक कर तीन बार डिजिटल स्ट्राइक की और उस वक्त चीन के कई पैरवीकारों ने बार्डर और बिजनेस को आपस में नहीं जोड़ कर देखने की दलील दी थी। लेकिन आज के इस विश्लेषण में आपको बताएंगे की चीनी एप्स को बैन करना हमारे देश के लिए देश की आवाम के लिए चाहे वो खास हो या आम के लिए कितना जरूरी था। लद्दाख सीमा पर चीन की ओर से पिछले चार महीनों से घुसपैठ की कोशिश की जा रही है। चीन सीमा से पीछे हटने का नाम नहीं ले रहा है और युद्ध के लिए उकसाने में लगा है और भारतीय जवान लगातार चीन के छल और चालबाजियों का जवाब बार्डर पर दे रहे हैं। लेकिन चीन की डिजिटल घुसपैठ की कवायद पर स्ट्राइक कर मोदी सरकार ने इन्हें बैन किया। सोचिए जरा राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री,चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया, कैबिनेट मंत्री, कांग्रेस अध्यक्ष, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ, सेना अध्यक्ष, बड़े साइंटिस्ट जैसे 10 हजार लोगों की चीन की एक कंपनी जासूसी कर रही है। अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि चीन की जेनहुआ डाटा इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी करीब दस हजार भारतीयों का डाटा इकट्ठा कर रहा है। इसमें सोशल मीडिया पर हरकत से लेकर लाइक और कमेंट तक, उनकी होने वाली उपस्थिति तक शामिल है। जेनहुआ डेटा इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी कारपोरेशन लिमिटेड इस काम को अंजाम दे रही थी। एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक चीन राष्ट्र को नई मजबूती और हाईब्रिड वारफेयर के लिए इन विदेशी टारगेट्स की सूची तैयार की गई। आखिर चीन ने किस तरह की डेटा का कलेक्शन किया है? हाईब्रिड वारफेयर के क्या मायने हैं? और चिंता की बात क्या है? आइए इन सवालों के जवाब जुटाने की कोशिश करते हैं।
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किन-किन लोगों की हो रही है जासूसी?
वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह
कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी
सीडीएस बिपिन रावत
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एसए बोबडे
24 मुख्यमंत्री
16 पूर्व मुख्यमंत्री
350 सांसद
70 मेयर
क्या है जेनहुआ डेटा का काम?
जेनहुआ डेटा के ओनर खुद आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में एक्सपर्ट हैं। उन्होंने ओवरसीज सोशल मीडिया डेटा में 10 साल की की इंटेंशिव रिसर्च की है। यह टेक्नॉलजी कंपनी राजनीति, सरकार, कारोबार, प्रौद्योगिकी, मीडिया और सिविल सोसायटी को टारगेट करती है। चीनी इंटेलिजेंस, मिलिट्री और सिक्यॉरिटी एजेंसियों के साथ काम करने का दावा करने वाली कंपनी जेनहुआ सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स और अन्य डिजिटल माध्यमों से डेटा जुटाती है और इन्फॉर्मेशन लाइब्रेरी तैयार करती है, जिनमें ना केवल न्यूज सोर्स, बल्कि फोरम, पेपर, पेटेंट, बिडिंग डॉक्युमेंट्स और यहां तक की रिक्रूटमेंट का कॉटेंट शामिल होता है। कंपनी एक 'रिलेशनल डेटाबेस' तैयार करती है, जो व्यक्तियों, संस्थाओं और सूचनाओं के बीच संबंधों को रिकॉर्ड करती है व्याख्या करती है। दरअसल डेटा नहीं बल्कि इसके रेंज और इस्तेमाल को लेकर चिंता है। जेनहुआ की ओर से टारगेट व्यक्तियों और संस्थाओं के सोशल मीडिया अकाउंट्स से सभी जानकारियां एकत्रित कर ली जाती हैं। दोस्तों और संबंधियों पर भी नजर रखी जाती है। किसने क्या पोस्ट किया, उस पर किसने लाइक किया, क्या कॉमेंट किया। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए यह तक जानकारी जुटाई जाती है कि कौन कहां जा रहा है। घरेलू सुरक्षा एजेंसियां कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए इस तरह की डेटा का इस्तेमाल करती हैं, लेकिन विदेशी ताकतें इस डेटा का कई उद्देश्यों से इस्तेमाल कर सकती हैं। जानबूझकर सामरिक पैंतरेबाज़ी के लिए व्यापक रूप से सहज ज्ञान युक्त जानकारी को एक व्यापक ढांचे में एक साथ रखा जा सकता है। छोटी और अहितकर समझी जाने वाली जानकारियों को एकत्रित करके भी सामरिक छल के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। जासूसी करने वाली कंपनी जेनहुआ खुद इसे हाईब्रिड वारफेयर बताती है।
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क्या है हाइब्रिड वॉरफेयर और क्या चाहता है चीन?
हाइब्रिड वॉरफेयर यानी सूचनाओं के सहारे युद्ध लड़ना। वर्ष 1999 के शुरू में चीन के पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने हाइब्रिड वॉरफेयर के लिए 'असीमित युद्धकौशल' नाम से रणनीति बनाई जिसके तहत हिंसा को सेना से ले जाकर नेताओं, अर्थव्यवस्था और तकनीक की दुनिया में शुरू करना था। इस नए युद्ध के मास्टरमाइंड चीन के कर्नल कीआओ लिआंग और कर्नल वांग शिआंगसूई थे। हाइब्रिड वॉरफेयर के तहत चीन अपने दुश्मन देश में सामाजिक विद्वेष को बढ़ा रहा है, आर्थिक गतिविधियों में बाधा डाल रहा और संस्थाओं को खोखला कर रहा है, राजनीतिक नेतृत्व और उसकी क्षमता को कलंकित कर रहा है। एक शीर्ष साइबर सिक्यॉरिटी एक्सपर्ट ने कहा कि रूस के बिना युद्ध के ही क्रीमिया में सफलता के बाद अब हर दूसरा देश अब हाइब्रिड वॉरफेयर का इस्तेमाल कर रहा है। हालांकि चीन की तुलना में किसी ने इसका व्यापक इस्तेमाल नहीं किया है। चीन ने इसका व्यापक इस्तेमाल हॉन्गकॉन्ग में किया।
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हाइब्रिड वॉरफेयर का काला इतिहास
हाइब्रिड वॉरफेयर का सबसे ताजा उदाहरण चीन का ही मिलता है। ताइवान और साउथ चाइना सी के मामले में न सिर्फ चीन ने दुनिया के कई देशों का मुंह बंद करवा दिया। बल्कि उनसे अपने पक्ष में बयान दिलवाया। इसमें दक्षिण अफ्रीका और कई खाड़ी के देश शामिल हैं।
2006 में इजराइल और हिजबुल्लाह की लड़ाई में सैकड़ों वीडियो और ऑडियो मैसेज फैलाएं। जिससे विरोधी पक्ष में दहशत फैल गई थी।
2014 में ISIS ने इराक की सेना के खिलाफ युद्ध में हाइब्रिड वॉरफेयर इस्तेमाल किया। आईएसआईएस ने बड़े पैमाने पर साइबर हैकिंग और प्रोपोगैंडा किया था जिसके कारण इराक की सेना ने जल्दी हार मान ली थी।
2015 में सीरिया के गृह युद्ध में रूस ने विद्रोही सेना के कम्युनिकेशन सिस्टम को हैक कर लिया था।
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इस डेटा पर चीन के जासूसों की नजर
- व्यक्तिगत जानकारी
- दोस्तों के बारे में जानकारी
- पारिवारिक संबंधों की जानकारी
- किस-किस लोकेशन पर गए
- सोशल मीडिया अकाउंट
- सोशल मीडिया पर कमेंट्स, लाइक्स
- सोशल मीडिया के पोस्ट
भारत के अलावा इन देशों के भी नाम
कंपनी के डेटाबेस में अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, ऑस्ट्रेलिय, कनाडा, जर्मनी और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों के बारे में जानकारियां हैं। चीन इसे हाइब्रिड वारफेयर का नाम देता है। इसके जरिए वह अपने विरोधियों पर बढ़त बनाने उसे नुकसान करने की कोशिश को अंजाम दे सकता है। कंपनी के शब्दों में इस वारफेयर में 'इन्फॉर्मेशन पलूशन' पर्सेप्शन मैनेजमेंट और प्रोपगेंडा शामिल होता है।
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जेनहुआ की जासूसी को लेकर क्या है चिंता?
सीमा पर चीन की आक्रामकता बढ़ने के बाद भारत ने 100 से ज्यादा चीनी मोबाइल ऐप्स को भारत में बैन कर दिया है। भारत ने इसके लिए देश की सुरक्षा, संप्रभुता, अखंडता और शांति व्यवस्था का तर्क दिया। हालांकि, इस कदम से जेनहुआ जैसे ऑपरेशन पर असर पड़ने की संभावना कम है। हाल में कई रिपोर्ट आईं जिनमें बताया गया कि चीन सोशल मीडिया के माध्यम से अमेरिका और यूरोप में संवेदनशील सैन्य, खुफिया या आर्थिक जानकारियां जुटा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह डेटा वॉर का जमाना है। हम जब डेटा को टुकड़ों में देखते हैं तो नहीं समझ पाते हैं कि आखिर इससे कोई क्या हासिल कर सकता है? लेकिन इन्हीं छोटी-छोटी जानकारियों को एक साथ जुटाकर और उनका किसी खास मकसद से हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। देश के आतंरिक मुद्दों, राष्ट्रीय नीति, सुरक्षा, राजनीति, अर्थव्यवस्था सबसे में सेंधमारी के प्रयास किए जा सकते हैं।
हालांकि जासूसी की घटना पहली बार नहीं हुई है। कोल्ड वार के वक्त अमेरिका और सोवियत संघ के बीच में जासूसी का दौर देखने को मिला था। लेकिन वर्तमना दौर में जासूसी के तरीके बदल रहे हैं। पहले किसी भी देश को दूसरे देश की जासूसी कराने के लिए आदमी भेजने पड़ते थे। आज आप साइबर सिस्टम के अंदर सॉफ्टवेयर, मैलवेयर डालकर वहां से डेटा चुराने की कोशिश करते हैं। - अभिनय आकाश
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