शिव को जल चढ़ाने की कहानी: परशुराम ने गढ़मुक्तेशवर तो रावण ने बागपत तक की थी कांवड़ यात्रा, सपा ने DJ पर बैन लगाया, योगी ने विमान से फूल बरसाया

Kanwar
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अभिनय आकाश । Jul 22 2024 4:04PM

28 दिन की यात्रा में 4 सोमवार पड़ते हैं। सोमवार को भगवान भोलेनाथ का पसंदीदा दिन माना जाता है। इसलिए कांवड़ियों की ये कोशिश रहती है कि उनकी यात्रा सोमवार के दिन मंदिर पहुंचे। यानी सावन के सोमवार को कांवड़ यात्रा सबसे ज्यादा एक्टिव दिखती है।

भारत का 12 महीनों वाला कैलेंडर और उनमें से एक सावन का महीना। मोटा-मोटी बारिश का महीना। तभी तो कवि कह गए हैं मेरे नयना सावन भादो, फिर भी मेरा मन प्यासा। सावन के पवित्र महीने को भगवान शिव को समर्पित किया जाता है। माना जाता है कि सावन में भगवान शिव की कृपा बरसती है। सावन के महीने की शुरुआत 22 जुलाई से हो गई है। ये महीने 19 अगस्त सावन पूर्णिमा पर पूरा होगा। शिवभक्त भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कांवड़ यात्रा निकालते हैं। 28 दिन की यात्रा में 4 सोमवार पड़ते हैं। सोमवार को भगवान भोलेनाथ का पसंदीदा दिन माना जाता है। इसलिए कांवड़ियों की ये कोशिश रहती है कि उनकी यात्रा सोमवार के दिन मंदिर पहुंचे। यानी सावन के सोमवार को कांवड़ यात्रा सबसे ज्यादा एक्टिव दिखती है।  

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कांवड़ क्या है

कावड़ को लेकर दो थ्योरी दी जाती है। मूल शब्द कांवड़ यानी कंधा मतलब जो कंधे पर ले जाया जाए वो कांवड़। दूसरी थ्योरी संस्कृत का शब्द कांवांरथी जिसका मतलब है कंधे पर कांवड़ रखे हुए। लकड़ी की सजी-धजी पट्टी, उसके दोनों तरफ टोकड़ी। टोकड़ी के अंदर पानी का बर्तन यानी कलथ और कलश के अंदर गंगाजल। शिव के भक्त मन्नत मांगते हैं कि हम सावन में कांवड़ लेकर यात्रा करेंगे। घर से कांवड़ लेकर निकलेंगे सबसे पास जहां से गंगा नदी गुजरती है वहां से जल लेकर फिर आसपास के जो भी प्रतिष्ठित शिव मंदिर है वहां जाकर शिवलिंग पर जल का अर्पण करेंगे।

कांवड़ यात्रा के नियम

देश में गंगा एक बड़े हिस्से से गुजरती है। शिव के सबसे महत्वपूर्ण मंदिर यानी की ज्योर्तिलिंग 12 हैं। प्रतिष्ठित शिव मंदिर भी खूब हैं। इसलिए कांवड़ यात्रा के रूट भी खूब हैं। इसके साथ ही कांवड़ यात्रा के नियम भी हैं। जैसे - कांवड़ यात्रा के समय मन, कर्म और वचन शुद्ध होना चाहिए, शराब, पान, गुटखा, तंबाकू, सिगरेट के सेवन से दूर रहना होता है। एक बार कांवड़ उठाने के बाद उसे जमीन पर नहीं रखा जाता है, ऐस करने पर कांवड़ यात्रा अधूरी मानी जाती है, ऐसे में कांवड़िए को फिर से कांवड़ में पवित्र जल भरना होता है। कांवड़ यात्रा के समय कांवड़ियों से चमड़ा स्पर्श नहीं होना चाहिए और न ही कावड़ को किसी के ऊपर से ले जाना चाहिए। 

चार लोग माने जाते हैं पहले कांवड़िया

1. परशुराम- फरसाधारी परशुराम ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ किया। हापुड़ के गढ़मुक्तेशवर में कांवड़ लेकर गंगाजल लेने पहुंचे। बागपत के पुरा महादेव मंदिर में शिवलिंग पर जलाभिषेक किया। गढ़मुक्तेश्वर का वर्तमान में नाम ब्रजघाट हो गया है। 

2. श्रवण कुमार- अपने अंधे माता-पिता के साथ श्रवण कुमार हिमाचल के ऊना में थे। माता-पिता ने मायापुरी यानी हरिद्वार में गंगा स्नान की बात कही। श्रवण कुमार माता-पिता की इच्छा पूर्ति के लिए हरिद्वार गए। कांवड़ की शुरुआत यहीं ये मानी जाती है। 

3. राम- राजा सागर के 60 हजार पुत्रों के उद्दाऱ के लिए भागीरथ सुल्तानगंज से गंगा लेकर निकले। सुल्तानगंज के अजगैबीनाथ में गंगा की तेज धारा से ऋषि जाह्नवी की तपस्या भंग हो गई। क्रोधित ऋषि पूरी गंगा को पी गए। भागीरथी की विनती पर ऋषि ने जंघा को चीरकर गंगा को बाहर निकाला। यहीं से श्रीराम ने जल भरकर देवघर में जलाभिषेक किया। 

4. रावण- सूरत जिले के पिंजरात गांव के पास क्षीरसागर में समुद्र मंथन हुआ। समुद्र मंथन से निकले विष को शिव ने पी लिया। विष का असर ख्तम करने के लिए शिवभक्त रावण ने तपस्या की। रावण ने हरिद्वार से जल लेकर बागपत के पुरा महादेव में चढ़ाया। 

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कांवड़ यात्रा के 5 तरीके

बोल बम कांवड़- सामान्य कांवड़ यात्रा के लिए कांवड़िये रास्ते में आराम करते हुए यात्रा करते हैं और फिर अपने लक्ष्य तक पहुंचते हैं। इसके नियम बेहद सहज और सरल है। इसकी सबसे अच्छी बात है कि कांवड़ियां बीच रास्ते में कभी भी आराम कर सकता है और फिर यात्रा शुरू कर सकता है। 

खड़ी कांवड़- खड़ी कांवड़ यात्रा सामान्य से थोड़ी मुश्किल होती है। इस कांवड़ यात्रा में लगातार चलना होता है। इसमें एक कांवड़ के साथ दो से तीन कावड़िए होते है। जब कोई एक थक जाता है, तो दूसरा कावड़ लेकर चलता है। ऐसा इसलिए क्योंकि यात्रा में कावड़ को नीचे जमीन पर नहीं रखते। इसी कारण इसे खड़ी कावड़ यात्रा कहते हैं।

झूला कांवड़- बांस से झूले के आकार की कांवड़ बनाई जाती है। गंगाजल से भरे पात्र दोनों तरफ बराबरी से लटके होते हैं। आराम करते वक्त कांवड़ जमीन पर नहीं रखते हैं। ऐसे में कांवड़ किसी ऊंची जगह टांग दी जाती है। 

डाक कांवड़- डाक कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़ियों को गंगाजल लेकर भगवानशिव का जलाभिषेक करने तक लगतार चलना होता है। एक बार यात्र शुरू करने के बाद जलाभिषेक के बाद ही यात्रा खत्म की जाती है। शिव मंदिरों में जलाभिषेक के लिए विशेष व्यवस्था भी की जाती है। इसके नियमों का पालन करने के लिए शिव भक्त को बहुत मजबूत बनना पड़ता है, क्योंकि इस यात्रा में कांवड को पीठ पर ढोकर लगातार चलना पड़ता है।

दंडवत कांवड़- दांडी कावड़ को सबसे कठिन यात्रा माना जाता है। इसमें कावड़िए को बोल बम का जयकारा लगाते हुए दंडवत करते हुए यात्रा करते हैं। कावड़िए घर से लेकर नदी तक और उसके बाद जल लेकर शिवालय तक  दंडवत करते हुए जाते हैं। इसने सामान्य कावड़ यात्रा से काफी समय लगता है।

सपा ने लगाया डीजे पर बैन, योगी ने हवाई जहाज से फूल बरसाए  

साल 1990 को कांवड़ यात्रा के विस्तार का साल कहा जाता है। बाजारों में कांवड़ियों के लिए एक रंग के ड्रेस मिलने लगे। उस वक्त करीब 20 लाख लोग कांवड़ लेकर जाते थे। साल 2005 आते-आते कांवड़ का वाहन से कांवड़ रूप दिखने लगे। डीजे बजाकर, नाच-गाना करते हुए गाड़ियों से लोग चलने लगे। साल 2015 में समाजवादी पार्टी की सरकार ने कांवड़ यात्रा में डीजे बैन कर दिया। इस साल तक करीब 2 करोड़ लोग कांवड़ लेकर जाते थे। लेकिन उत्तर प्रदेश में सरकार बदलते ही कांवड़ियों को लेकर रवैया भी बदलने लगा। योगी सरकार ने कांवड़ यात्रा में डीजे बजाने की परमिशन दे दी। इसके साथ ही शिवभक्तों पर हवाई जहाज से फूल बरसाए गए।  

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