नया संसद, नया भारत: नए और पुराने भवन में क्‍या-क्‍या है अंतर, समय के साथ कैसे बदलता रहा विपक्ष का स्टैंड

New Parliament, New India
prabhasakshi
अभिनय आकाश । May 25 2023 2:31PM

देश आजादी की 75वीं सालगिरह मना रहा है तो आत्मनिर्भर भारत की एक नई मिसाल पेश करेगा संसद का ये नया भवन जिसका उद्घाटन देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा 28 मई को किया जाएगा।

पिछले 74 वर्षों से लोकतंत्र के मंदिर संसद से भारत का शासन चलता आया है। ये सत्ता और विपक्ष के बीच मंथन का केंद्र है। इसी भवन के कक्षों से जननायकों और मार्गदर्शकों ने देश को हर बार एक नई दिशा दी। ये इमारत विश्वास दिलाती है कि भारत के हर एक नागरिक को न्याय और सम्मान मिले। संसद भवन एक प्राचीन और विविधिताओं से भरे देश की आधुनिक लोकतांत्रिक शक्ति बनने का सफर है। लेकिन अंग्रेजों के जमाने में बना भारत का संसद भवन अब सिर्फ इतिहास हो गया। देश आजादी की 75वीं सालगिरह मना रहा है तो आत्मनिर्भर भारत की एक नई मिसाल पेश करेगा संसद का ये नया भवन जिसका उद्घाटन देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा 28 मई को किया जाएगा। यह नए भारत में सबसे बड़ी मील का पत्थर है। बड़ा, शानदार और भविष्य के लिए भारत के लोगों के लिए तैयार। लेकिन इस नई संसद के साथ पुरानी राजनीति और हताशा भी नजर आ रही है। लोकतंत्र के एक सबसे बड़े क्षण में कई पार्टियां इस जश्न में शामिल होने की बजाय आरोप-प्रत्यारोप में लगी हैं।  

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पुराने संसद भवन का कब हुआ था निर्माण और किसने किया था उद्घाटन? 

संसद भवन की कल्पना 1911 से शुरू हो गई थी। देश की राजधानी कलकत्ता से बदलकर दिल्ली लाने के बाद ये तय हुआ कि भारत की आधुनिक राजधानी रायसीना हिल पर तराशी जाए। शुरुआती चर्चा ये थी की भारत की संसद राष्ट्रपति भवन यानी की उस वक्त के वायसराय हाउस का ही एक हिस्सा होगी। लेकिन 1919 में मोंटेंक्यू जोम्सफोर्ड रिफार्म के बाद ये तय हुआ कि निर्वाचन प्रतिनिधित्व को बढ़ाया जाए। तब संसदीय कार्यप्रणाली के लिए एक अलग और विशाल इमारत बनाने के सुझाव पर गौर हुआ। संसद भवन की नींव 12 फरवरी 1921 में ड्यूक आफ कनाट प्रिंस आर्थर द्वारा रखी गई। 6 सालों के लंबे इंतजार के बाद ये इमारत अपने वजूद में आई। संसद भवन का डिजाइन एडविन लुटियंस और हरबर्ट बेकर ने तैयार किया था। उन दोनों ने ही नयी दिल्ली का निर्माण किया था।18 जनवरी 1927 में एक शानदार समारोह में उस समय के वायसराय लार्ड इरविन ने संसद भवन का उद्घाटन किया। तकरीबन 83 लाख के लागत से तैयार हुई संसद भवन के डिजाइन और आकार पर भी बेहद लंबा विमर्श हुआ। 

बैठने की क्षमता 

पुरानी संसद 

लोकसभा- 550

राज्यसभा- 250

नई संसद

लोकसभा- 888

राज्यसभा- 384

नए संसद भवन में क्या खास

नये संसद भवन में सभी सांसदों के लिये अलग-अलग कार्यालय होंगे और उन्हें नवीनतम डिजिटल उपकरणों से लैस किया जाएगा। यह कदम कागज रहित कार्यालय सुनिश्चित करने की दिशा में एक कदम है। नये भवन में एक संविधान कक्ष (कॉंस्टीट्यूशन हॉल) भी होगा, जो भारत की लोकतांत्रिक धरोहर को प्रदर्शित करेगा। इसके अलावा संसद सदस्यों के लिये एक लाउंज, एक पुस्तकालय, कई समितियों के लिये कमरे, खान-पान के लिये स्थान और वाहन पार्किंग की जगह भी होगी। संविधान कक्ष में संविधान की मूल प्रति भी रखी जाएगी। भारत की लोकतांत्रिक धरोहर आदि को डिजिटल माध्यमों से दिखाया जाएगा। नए संसद भवन की डिजाइनिंग गुजरात की आर्किटेक्चर फर्म एचसीपी डिजाइंस ने की है।

टोटल एरिया

 पुराना  नया
 47500 स्क्वायर मीटर नया- 64500 स्क्वायर मीटर

19 दल साथ, बाकी की राहें जुदा

विपक्ष के 19 दलों ने संसद के नए भवन के उद्घाटन समारोह का बुधवार को सामूहिक रूप से बहिष्कार करने का ऐलान किया। हालांकि, विपक्ष के कई अहम दलों ने इस बायकॉट से किनारा कर लिया है। इसमें ओडिशा की बीजू जनता दल (BJD), आंध्र प्रदेश की YSR कांग्रेस, मायावती की पार्टी BSP इसमें शामिल हैं। शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल समारोह में शामिल होंगे। पार्टी के नेता दलजीत सिंह चीमा ने कहा, 'देश को एक नया संसद भवन मिल रहा है और यह गर्व का क्षण है। हम नहीं चाहते कि इस समय कोई राजनीति हो।' वहीं, कांग्रेस नेता आचार्य प्रमोद ने कहा, 'संसद भवन BJP का नहीं पूरे देश का है, मोदी का विरोध तो ठीक है लेकिन देश का विरोध ठीक नहीं।'

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आजादी की निशानी नई संसद में पहुँचेगी

जिस दिन नए संसद भवन को देश को समर्पित किया जाएगा उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमिलनाडु के अधीनम से आए हुए इस सेंगोल को स्वीकार करेंगे और लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास इसे स्थापित करेंगे। सेंगोल चांदी से बना है। इस पर सोने की परत चढ़ी है। इसके शीर्ष पर नंदी विराजमान हैं जोकि न्याय का प्रतीक हैं।

कंस्ट्रक्शन कॉस्ट

 पुराना नया
 83 लाख 800 करोड़

आकार

सर्कुलर- सेंट्रल हॉल का बड़ा गोलाकार भवन

ट्रांगुलर- लोकसभा, राज्यसभा, सेंट्रल लाउंज ओपन कोर्ट यार्ड के आसपास बनाया गया है।

चोल वंश से कनेक्शन

सेंगोल का इतिहास चोल साम्राज्य से जुड़ा है। चोल साम्राज्य में सेंगोल का इस्तेमाल सत्ता के हस्तांतरण के लिए किया जाता था। मौजूदा राजा, नए राजा को सेंगोल सौंपता था। दक्षिण भारत के राज्यों में इसे खास महत्व दिया जाता है।

1947 में तमिलनाडु से लाया गया

14 अगस्त 1947 की रात 10:45 बजे सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को यह सौंपा था। मठ के तीन विद्वान लोग तमिलनाडु से यह सेंगोल लेकर दिल्ली पहुंचे। हो मठ के पुजारी ने इसे लॉर्ड माउंटबेटन को दिया और उसे वापस ले लिया। सेंगोल को गंगाजल से शुद्ध किया गया और फिर एक जुलूस में है। नेहरू के घर ले जाया गया, जहां उन्हें मंत्रोच्चार के बीच यह सौंपा गया। 1947 में जो तमिल विद्वान नेहरू को सेंगोल सौंपते समय मौजूद थे, आज उनकी उम्र 96 साल हो गई है। 28 मई को वही तमिल विद्वान संसद के नए भवन में सेंगोल की स्थापना के समय मौजूद रहेंगे। 4 हफ्ते से भी कम समय में चेन्नै के मशहूर वुम्मुदी बंगारू जूलर्स ने धर्मदंड तैयार किया था।

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मठ के सदस्य आएंगे दिल्ली

थिरुववदुथुराई अधीनम मठ के कम से कम 31 सदस्य दो जत्थों में चार्टर्ड फ्लाइट से नई दिल्ली के लिए रवाना होंगे। 28 मई को होने वाले समारोह से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने आवास पर ने उन्हें सम्मानित करेंगे। वह चेन्नै के मशहूर वुम्मुदी बंगारू जूलर्स के सदस्यों से भी मिलेंगे, जिन्होंने 1947 में चार हफ्ते से भी कम समय में राजदंड तैयार किया था।

विपक्ष का समय के साथ बदलता रुख

विपक्ष की ओर से कहा गया कि नई संसद की जरूरत नहीं है।

फिर कहा गया कि संसद परियोजना में कोई पारदर्शिता नहीं है। 

इसे मोदी का महंगा वैनिटी प्रोजेक्ट करार दिया गया। 

नए निर्माण का पर्यावरण पर असर बता कर विरोध किया गया, जिसमें कई सिविल सोसायटी भी विवाद में कूद पड़े।

कोविड महामारी के दौरान निर्माण कार्य स्थगित करने की मांग की गई।

सिंघु बॉर्डर पर विरोध करते किसान, इधर हो रहा संसद निर्माण।

आर्थिक संकट के समय में उच्च लागत की बात कर विरोध जताया गया। 

मोदी खुद को नई संसद के एकमात्र निर्माता के रूप में पेश कर रहे हैं।

फिर कहा गया कि 2024 से पहले इसका उद्घाटन न किया जाए।

अब राष्ट्रपति को उद्घाटन करने की बात विपक्ष की ओर से की जा रही है। 

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