Nehru vs Modi on ISRO: नेहरू के सपने अधूरे मोदी कर रहे पूरे? चांद सभी का तो चंद्रयान क्यों नहीं
14 जुलाई 2023 की तारीख देश के लिए एक ऐतिहासिक दिन साबित हुआ। दोपहर के 2:30 मिनट पर भारत का चंद्रयान-3 चांद की ओर रवाना हो गया। चांद को छूना औरों की तरह हमारा भी सपना रहा है।
चंद्रमा एक ऐसा खास आकर्षण जिसने सदियों से हमारे मन और कल्पनाओं पर अधिकार जमाया हुआ है। हमारे अतीत की कुंजी और भविष्य की ओर ले जाने वाला मार्ग। हम सब के बचपन में चांद से जुड़ी लोरियों और कहानियों की एक अलग जगह बनी हुई है। चांद हमेशा से हमारे लिए किसी रहस्य से कम नहीं है। चांद को मुट्ठी में करने सपनों की उड़ान पर हिन्दुस्तान निकल पड़ा है। 14 जुलाई 2023 की तारीख देश के लिए एक ऐतिहासिक दिन साबित हुआ। दोपहर के 2:30 मिनट पर भारत का चंद्रयान-3 चांद की ओर रवाना हो गया। चांद को छूना औरों की तरह हमारा भी सपना रहा है। चंद्रयान-3 पृथ्वी कक्षा में स्थापित हो गया। 40 दिन बाद पहले पृथ्वी और फिर चंद्रमा की कक्षा में चक्कर लगाएगा। उसके बाद चांद पर उतरेगा। अभी पृथ्वी पर भी एक नया चक्कर चल रहा है। चंद्रयान-3 के रवाना होते ही उसे लेकर क्रेडिट की लड़ाई भी शुरू हो गई है।
शुरू हुई क्रेडिट की लड़ाई
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ट्वीट में इसका पूरा श्रेय वैज्ञानिकों को दिया। वहीं बीजेपी के कुछ नेताओं ने वैज्ञानिकों के साथ प्रधानमंत्री की प्रतिबद्धता को भी इसका श्रेय दिया। इसके बाद कांग्रेस नेताओं की ओर से भी ताबड़तोड़ बयान आए। राहुल गांधी, प्रियंका वाड्रा, जयराम रमेश जैसे कई नेताओं ने जो ट्वीट किए उसमें लिखने का भावार्थ यही था कि इसरो की शुरुआत तो नेहरू जी ने ही की थी। उन्होंने ही तो अंतरक्षि को लेकर सपने जगाए थे वरना ये सब कैसे होता?
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कांग्रेस ने पूर्व प्रधानमंत्रियों के योगदान को किया याद
कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने भी एक ट्वीट किया और उन्होंने नेहरू जी से लेकर अटल जी तक को क्रेडिट दिया। लेकिन मनमोहन सिंह के बाद वो मोदी का नाम लिखना भूल गए या फिर उन्होंने जान बूझकर नहीं लिखा। ये तो वही बता सकते हैं। इसके बाद ही देखते-देखते नेहरू जी और इंदिरा गांधी की कुछ पुरानी तस्वीरें अवतरित हुईं। इसरो की साइकिल पर रॉकेट ले जाती तस्वीरें वायरल होने लगी। कांग्रेस ने एक नैरेटिव गढ़ा तो वहीं काउंटर में ये दलील दी जाने लगी कि मोदी न होते तो आज भी साइकिल पर ही रॉकेट ले जा रहे होते। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने चंद्रयान-3 के सफल प्रक्षेपण को सभी भारतीयों के लिए बेहद गर्व का क्षण बताते हुए कहा कि यह पंडित जवाहर लाल नेहरू, अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर मनमोहन सिंह सहित पिछले सभी प्रधानमंत्रियों की दूरदर्शिता और दृढ़ संकल्प की उपलब्धियों का प्रमाण है। बेशक इसमें इसरो और हमारे अनगिनत वैज्ञानिकों का महान योगदान है जिन्होंने अपना पूरा जीवन देश में वैज्ञानिक सोच के लिए समर्पित कर दिया। रोचक तथ्य यह है कि इसमें मोदी सरकार के नौ साल के कार्यकाल का कोई जिक्र नहीं किया गया।
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नेहरू और इसरो की स्थापना
डॉक्टर विक्रम साराभाई और डॉक्टर रामानाथन ने 16 फरवरी 1962 को Indian National Committee for Space Research (INCOSPAR) की स्थापना की गई। जो आगे चलकर 15 अगस्त 1969 को इसरो (ISRO) बन गया। बहुत सारे लोगों ने यह सवाल उठाया है कि जब इसरो की स्थापना से पहले ही नेहरू का देहांत हो गया था, तो वो इस संस्थान की स्थापना कैसे कर सकते हैं? इसरो की आधिकारिक वेबसाइट पर भी अंतरिक्ष रिसर्च एजेंसी की स्थापना में नेहरू और डॉक्टर साराभाई के योगदान का जिक्र है। वेबसाइट पर लिखा है कि भारत ने अंतरिक्ष में जाने का फैसला तब किया था जब भारत सरकार ने साल 1962 में इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च की स्थापना की थी।
मोदी सरकार में क्या बदला है?
नेतृत्व की नीति और इच्छाशक्ति को भी देखना जरूरी है। 2014 तक साइंस एंड टेक्नोलॉजी का बजट 5 हजार 400 करोड़ रुपए थे। भारत के विज्ञान को हम इससे किस दिशा में ले जा सकते हैं। कहा तो ये भी जाता है कि सारे पैसे वेतन और लैबोरेट्री के मेंटेनेंस में ही चले जाते थे। लेकिन 2022 में 14 हजार 217 करोड़ हो गया है। यानी 2014 से लेकर 2022 तक इसके बजट में तीन गुणा इजाफा हुआ है। इसके अलावा पीएम मोदी की सरकार में साइंस टेक्नोलॉजी एंड इनोवेशन पॉलिसी को लाकर एक नई क्रांति को जन्म दिया। अगले पांच साल में भारत अमेरिका और रूस से हर क्षेत्र में आगे बढ़ने वाला है। वही वैज्ञानिक स्टालिन और जार के युग में थे। वहीं वैज्ञानिक वाशिंगटन और लिंकन के युग में भी थे। दोनों का काम अलग अलग था।
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