अगर छत्रपति शिवाजी हमारी पगड़ी हैं तो उस पर रखे ताज हैं पृथ्वीराज, जानें मोहम्मद गौरी को 17 बार हराने वाले सम्राट की अद्भुत कहानी
सम्राट पृथ्वीराज चौहान की कहानी का जिक्र इतिहास से लेकर वर्तमान दौर में हमेशा होता रहा है। जिसमें जयानक का पृथ्वीराज विजय, जैन विद्वान मेरूतुंग का प्रबंध चिंतामणि, पृथ्वीराज के दोस्त और राजकवि चंद्र बरदाई द्वारा रचित पृथ्वीराज रासो आदि का हवाला दिया जाता है।
एक युद्ध का मैदान और फिर पूरा-पूरा का माहौल हर हर महादेव के नारों से गूंज उठता है। फिर आता है पृथ्वीराज का शब्द भेदी बाण। 'चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान।" भारत की कहानियों में इतिहास को टटोलने की पूरी रवायत रही है। इसलिए तो पृथ्वीराज की कहानी के लिए हमें स्वदेशी अर्ध पौराणिक साहित्य, जैन और मुस्लिम स्रोत्रों पर ही अधिक निर्भर रहना पड़ता है। सम्राट पृथ्वीराज चौहान की कहानी का जिक्र इतिहास से लेकर वर्तमान दौर में हमेशा होता रहा है। जिसमें जयानक का पृथ्वीराज विजय, जैन विद्वान मेरूतुंग का प्रबंध चिंतामणि, पृथ्वीराज के दोस्त और राजकवि चंद्र बरदाई द्वारा रचित पृथ्वीराज रासो आदि का हवाला दिया जाता है।
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हम इतिहास से बारहवीं सदी के पन्नों को खोलेंगे तो देखेंगे कि हाथ में तलवार लिए गजनी का सुल्तान मोहम्मद गौरी हिन्दुस्तान के राज्यों पर धावा बोलता और लूटपाट करता। वो चाहता था कि गजनी सबसे धनी देश बने और हिन्दुस्तान की तरह सोने की चिड़ियां कहलाए। राजस्थान के अजमेर का इलाका जहां पृथ्वीराज का शासन था। वहीं इसके ठीक बगल में मालवा में जयचंद का शासन था। जयचंद्र और पृथ्वीराज चौहान दोनों ही आपस में बहुत अच्छे मित्र थे। कई लड़ाइयां दोनों ने साथ में मिलकर लड़ी। लेकिन पृथ्वीराज चौहान के राज्य पर मोहम्मद गौरी की नजर थी। गौरी इस राज्य में अपना परचम लहराना चाहता था। लेकिन जब भी वो आक्रमण करता था। जयचंद्र और पृथ्वीराज चौहान दोनों मिलकर गौरी को युद्ध के मैदान से खदेड़ देते थे। स्वदेशी स्रोतों में कहा गया है कि पृथ्वीराज चौहान ने 1186 से 1191 के दौरान मोहम्मद ग़ौरी को कई बार पराजित किया। हम्मीर महाकाव्य के अनुसार सात बार, पृथ्वीराज प्रबंध के अनुसार आठ बार, पृथ्वीराज रासो में लिखा है कि 21 बार। इन हमलों में 1191 के हरियाणा के तराइन युद्ध का जिक्र भी खूब होता है। 1191 में तराइन के पहले युद्ध में मोहम्मद गौरी की हार हुई। कहते हैं कि एक सिपाही ने अधमरी हालत में उसे घोड़े पर चढ़ाया और युद्ध के मैदान से भाग निकला। ग़ौरी की सेना भी भागने लगी। लेकिन, पृथ्वीराज ने भागती सेना का पीछा नहीं किया। यही उसकी ऐतिहासिक भूल बताई जाती है। । इसके एक साल बाद ग़ौरी भारी फौज लेकर फिर आया। साल 1192 में हुए तराइन के इस दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज हार गया। लेकिन इसके पीछे की भी एक कहानी है जिसमें पृथ्वीराज के दोस्त जयचंद और उनकी बेटी संयोगिता संग पृथ्वीराज का विवाह दोनों राजाओं की दोस्ती में दरार की वजह बना। कुछ इतिहासकार ये भी मानते हैं कि संयोगिता के पिता राजा जयचंद सम्राट पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता के प्रेम के विरोध में थे। संयोगिता के विवाह के लिए जयचंद ने स्वयंवर का आयोजन किया। कहा जाता है कि इस स्वयंवर में पृथ्वीराज चौहान को बुलाया ही नहीं गया। लेकिन पृथ्वीराज चौहान का अपमान करने के लिए द्वारपाल की जगह पृथ्वीराज चौहान का पुतला लगा दिया गया। संयोगिता ने स्वयंवर में किसी को पसंद नहीं किया। इसके साथ ही संयोगिता ने इसकी खबर पृथ्वीराज चौहान को भिजवाया। जिसके बाद पृथ्वीराज चौहान ने संयोगिता की इच्छा से उन्हें अपने राज्य ले जाकर शादी कर ली। पृथ्वीराज चौहान और उनकी रानी संयोगिता का प्रेम वर्तमान में भी इतिहास में अमर है। 1192 के तराइन युद्ध में जयचंद और मोहम्मद गौरी से संपर्क साध कर उन्हें पृथ्वीराज के राज्य पर आक्रमण के लिए आमंत्रित किया। जयचंद से गौरी की दोस्ती के पीछे कि वजह ये नहीं थी कि वो बहुत बड़ा राजा था बल्कि जयचंद को हर वो खुफिया रास्ता, जानकारी पता थी जो गौरी के लिए जरूरी थी। सारी कमजोरियों को जान मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान के राज्य पर हमला कर उन्हें बंदी बना लिया।
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क्या कहता है पृथ्वीराज रासो
पृथ्वीराज रासो के मुताबिक मोहम्मद शहाबुद्दीन गौरी पृथ्वीराज चौहान को कैदी रूप में गजनी ले गया जहां पृथ्वीराज चौहान को अंधा कर दिया गया। हालांकि इस दौरान पृथ्वीराज चौहान की उनके मित्र चंदबरदाई से मुलाकात हुई। इतिहासकारों का मानना है कि पृथ्वीराज चौहान शब्द भेदी बाण की कला में निपुण थे। जब गोरी ने पृथ्वीराज को बंधक बना लिया तो चंद बरदाई भी वहां गए। उन्होंने मोहम्मद गोरी को पृथ्वीराज चौहान के शब्दबेधी बाण चलाने के कौशल के बारे में बताया। गोरी हैरान रह गया और ये कला देखने की इच्छा जताई। लेकिन इससे पहले गोरी ने पृथ्वीराज की आंखें गर्म सलाखों से फोड़ दीं। वो आश्वस्त था कि एक नेत्रहीन क्या ही कौशल दिखाएगा। लेकिन जब गोरी ने शब्दभेदी बाण की कला देखने के लिए चौहान को बुलाया तो चंदबरदाई ने वह प्रसिद्ध छंद पढ़ा। '' चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण ता ऊपर सुल्तान है मत चूके चौहान''। इसी के बाद पृथ्वी ने तीर चलाकर गोरी को मार गिराया। इस घटना के कुछ देर बाद ही पृथ्वीराज और चंद बरदाई ने एक दूसरे को मार दिया। अब ऐसे में यहां सवाल हो सकता है कि चंद ने जब आत्महत्या कर ली, तो फिर रासो में इस घटना को किसने लिखा? इसका उत्तर यह है कि ग़ौरी जब पृथ्वीराज को गज़नी ले गया, तब उसके पीछे पीछे चंद भी पहुंच गया था। जाने के पहले उसने अपना यह अधूरा काव्यग्रंथ अपने पुत्र जल्हण को सौंप दिया था। रासो में गज़नी की घटनाओं का यह वर्णन जल्हण ने लिखा है। रासो में ज़िक्र है, 'पुस्तक जल्हण हत्थ दै, चलि गज्जन नृपकाज।' हालांकि पृथ्वीराज की मृत्यु के बारे में भी भिन्न-भिन्न कहानियां हैं। इतिहास में ऐसे भी दावे किए गए कि ग़ौरी की मौत 15 मार्च 1206 को हुई। उसे जाटों की खोखर नामक जमात ने झेलम के तीर पर मार डाला। उसकी क़ब्र भी वहां है। मोहम्मद ग़ौरी का असली नाम शहाबुद्दीन है। उसका बड़ा भाई गियासुद्दीन तब सुलतान था। छंद में जिस सुलतान का ज़िक्र है, शायद वह गियासुद्दीन है।
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पृथ्वीराज और चंदबरदाई
सम्राट पृथ्वीराज पर आई फिल्म का एक मशहूर संवाद है 'वाल्मिकी हैं तो श्री राम हैं, चंद हैं तो पृथ्वीराज चौहान है। ये पृथ्वीराज के परम मित्र और राजकवि चंद्र बरदाई के लिए कही गई गै। जिनकी एक रचना 'मत चुके चौहान' आज भी बहुत लोकप्रिय है। इस कविता की रचना 12वीं सदी में चन्द्रबरदाई ने की थी। उन्होंने पृथ्वीराज चौहान को संबोधित करते हुए लिखा था, ''चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण ता ऊपर सुल्तान है मत चूके चौहान!'' यहां सुल्तान यानी मोहम्मद गोरी का जिक्र किया गया है, जिसने धोखे से सम्राट को कैद कर लिया था।
काका कन्ह की प्रतिज्ञा और आंखों पर पट्टी
पृथ्वीराज चौहान की सेना के महान योद्धा काका कन्ह के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने प्रण किया था कि यदि उनके सामने किसी ने अपनी मूंछ पर हाथ रखा तो वो उसका सिर काट देंगे। चाहे वो कोई भी व्यक्ति क्यों न हो। इसकी वजह से वो अपनी आंख पर पट्टी बांध कर रखते थे। इसके पीछे की भी एक दिलचस्प कहानी है। राजस्थान के एक राजा भीमसेन से जान बचाकर सामंत सारंग देव के ये सातों पुत्र प्रताप, अमर, गोकुल, गोबिंद, हरि, श्याम और भगवान अजमेर महाराज सोमेश्वर चौहान (पृथ्वीराज चौहान के पिता) की शरण में जा पहुंचे। महाराज सोमेश्वर ने उनका बहुत आदर सत्कार किया, उन्हें गांवों के पट्टे और सरोपा भी दिए। एक दिन राज दरबार में अनहोनी घट गई। दरबार में उस समय महाभारत का प्रसंग चल रहा था और योद्धाओं के शौर्य का बखान हो रहा था। जोश में प्रताप सिंह ने अपनी मूंछ पर ताव दिया। उन्हें पृथ्वीराज के काका और सोमेश्वर के भाई कन्ह चौहान की प्रतिज्ञा का पता नहीं था कि उनके सामने अगर कोई मूंछ पर ताव देगा, तो वे उसे जिन्दा नहीं छोड़ेंगे। कन्ह के सामने जैसे ही प्रताप ने मूंछ मरोड़ी वैसे ही कन्ह ने तलवार का इतना ताकतवर वार किया कि प्रताप सिंह का शरीर जनेऊ के आकार में तिरछा कंधे से कमर तक दो टुकड़े हो गया। इसलिए, पृथ्वीराज चौहान के पिता साेमेश्वर चौहान ने अपनी कसम देकर कन्ह की आंखों पर सदैव पट्टी बांधकर रखने को मना लिया था। चंद्र बरदाई रचित “पृथ्वीराज रासौ” के घग्घर नदी का युद्ध में पृथ्वीराज चौहान के काका कन्ह के युद्ध वर्णन से जुड़ी एक कविता है। इस युद्ध में ही पृथ्वीराज चौहान के विशेष आग्रह पर काका कन्ह की आंख से पट्टी उतार दी गई थी। इसके बाद गौरी के प्रमुख सेनानायक ने जब मूंछ पर हाथ रखा तो काका कन्ह ने उसको हाथी पर सवार ही नहीं होने दिया, सिर से पैर तक चीर कर दो फाड़ कर दिया था।
बहरहाल, ये देश अगर चिराग है तो उसकी जलती आग है पृथ्वीराज, अगर छत्रपति शिवाजी हमारी पगड़ी हैं तो उस पर रखे ताज हैं पृथ्वीराज। लिहाजा, इतना ज़रूर है कि पृथ्वीराज चौहान के बाद ऐसा कोई स्वदेशी राजा नहीं हुआ, जो विदेशी आक्रांताओं को रोक सके।
-अभिनय आकाश
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