History & Origin of Surname: सरनेम में छुपा है पूरा इतिहास, कैसे हुई इसकी शुरुआत, क्या है इसका चीन कनेक्शन
सरनेम की सियासत इन दिनों परवान चढ़ती नजर आ रही है और अपना असर संसद से लेकर कोर्ट की दहलीज तक छोड़ती दिख रही है। आखिर इसकी शुरुआत कैसे हुई, सरनेम कब से और क्यों लगाया जाने लगा? इसका एमआरआई स्कैन करते हैं। दुनिया मे जब कोई बच्चा पैदा होता है तो सबसे पहले उसका नामकरण किया जाता है।
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को 2019 के मानहानि के केस में मिली। दो साल की सजा के बाद शुक्रवार को लोकसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य ठहराया गया। अब वह सांसद नहीं रहे। गुजरात के सूरत की एक अदालत ने गुरुवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी को 'सभी चोरों का मोदी सरनेम क्यों है' टिप्पणी के लिए दो साल जेल की सजा सुनाई। कोर्ट ने आदेश में कहा कि आरोपी संसद सदस्य हैं। जनता के सामने वह जो कुछ भाषण देते हैं, उसका व्यापक असर होता है। अगर कम सजा दी जाती है, तो गलत संदेश जाएगा। राहुल ने कहा कि अपने कर्तव्य के मुताबिक भाषण दिया था। किसी का अपमान करने का कोई इरादा नहीं था। इस बयान के लिए 2019 में उनके खिलाफ आपराधिक मानहानि का केस दायर किया था। राहुल गांधी को करार दिए जाने के जिस मामले में सजा हुई है उसकी शिकायत बीजेपी के सूरत पश्चिम से विधायक पूर्णेश मोदी ने की थी।
नेहरू सरनेम रखने में क्या शर्मिंदगी है?
राहुल की सदस्यता जाने के बाद उनकी बहन प्रियंका गांधी के निशाने पर पीएम मोदी आये। प्रियंका ने कहा कि आपने संसद में पूरे परिवार और कश्मीरी पंडित समुदाय का अपमान किया और पूछा कि उन्होंने नेहरू उपनाम क्यों नहीं रखा। लेकिन किसी जज ने आपको दोषी नहीं ठहराया। आप संसद से अयोग्य नहीं हुए। दरअसल, पीएम मोदी के संसद में नेहरू सरनेम को लेकर गांधी परिवार पर निशाना साधा था। राज्यसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विशेषाधिकार का प्रस्ताव पेश किया। फरवरी में भाषणों में से एक में मोदी ने गांधी परिवार के सदस्यों पर सीधा हमला किया था और पूछा था कि उन्हें नेहरू उपनाम का उपयोग करने में शर्म क्यों आती है। पीएम मोदी ने कहा था कि अगर नेहरू जी का नाम हमारे द्वारा छोड़ दिया जाता है, तो हम अपनी गलती सुधार लेंगे क्योंकि वे देश के पहले प्रधानमंत्री थे। लेकिन मेरी समझ में नहीं आता कि नेहरू सरनेम रखने से उनके गोत्र में कोई क्यों डरता है? क्या नेहरू उपनाम रखने में कोई शर्म है? शर्म किस बात की जब परिवार इतनी बड़ी शख्सियत को स्वीकार करने को तैयार नहीं है तो आप हमसे सवाल क्यों करते हैं। उनका निशाना कांग्रेस नेता राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा और सोनिया गांधी थे।
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सरनेम की सियासत इन दिनों परवान चढ़ती नजर आ रही है और अपना असर संसद से लेकर कोर्ट की दहलीज तक छोड़ती दिख रही है। आखिर इसकी शुरुआत कैसे हुई, सरनेम कब से और क्यों लगाया जाने लगा? इसका एमआरआई स्कैन करते हैं। दुनिया मे जब कोई बच्चा पैदा होता है तो सबसे पहले उसका नामकरण किया जाता है। जब वो थोड़ा बड़ा होता और स्कूल में जाता है तब उसे एक उपनाम दिया जाता है। जिसे सरनेम कहते हैं। जबकि व्यक्तियों की पहचान करने के लिए दिए गए नामों का उपयोग सबसे पुराने ऐतिहासिक अभिलेखों में प्रमाणित है, उपनामों का आगमन अपेक्षाकृत हाल ही में हुआ है। कई संस्कृतियों ने व्यक्तियों की पहचान करने के लिए अतिरिक्त वर्णनात्मक शब्दों का उपयोग किया है और करना जारी रखा है। ये शर्तें व्यक्तिगत विशेषताओं, मूल स्थान, व्यवसाय, माता-पिता, संरक्षण, गोद लेने या कबीले संबद्धता का संकेत दे सकती हैं। ये वर्णनकर्ता अक्सर निश्चित कबीले पहचान में विकसित होते हैं जो बदले में पारिवारिक नाम बन जाते हैं जैसा कि आज हम उन्हें जानते हैं।
सरनेम आया कहां से
ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में सरनेम हुआ ही नहीं करता था। समृति काल में वंश पर आधारित उपनाम रखे जाने लगे, जैसे पूर्व में दो ही वंश थे। सूर्यवंश और चंद्रवंश। उक्त दोनों वंशों के ही अनेकों उपवंश होते गए। यदुवंश और नागवंश दोनों चंद्रवंश के अंतर्गत माने जाते है। अग्निवंश, इक्ष्वाकु वंश सूर्यवंश के अंतर्गत हैं। सूर्यवंश प्रतापी राजा इक्ष्वाकु से इक्ष्वाकु वंश चला। इसी इक्ष्वाकु कुल में राजा रघु हुए जिसने रघुवंश चला। उक्त दोनों वंशों से ही क्षत्रियों, दलितों, ब्राह्मणों और वैश्यों के अनेकों उपवंशों का निर्माण होता गया। माना जाता है कि सप्त ऋषि के नामों के आधार पर ही भारत के चारों वर्णों के लोगों के गोत्र माने जाते हैं। गोत्रों के आधार पर भी वंशों का विकास हुआ। ऋग्वेद में कहा गया है कि हर व्यक्ति के चार नाम होने चाहिए। एक नाम नक्षत्र के आधार पर, दूसरा नाम जिससे लोग उसे जानें, तीसरा नाम सीक्रेट हो और चौथा नाम सोमयाजी के आधार पर होना चाहिए। सोमयाजी यानी वो जो सोमयज्ञ करवाते हैं। प्रचानी समय में कई ऐसे उदाहरण मिल जाते हैं जिससे पता चलता है कि नाम के साथ माता या पिता का नाम भी जोड़े जाते थे। जैसे दीर्घात्मा मामतेय (ममता का बेटा), कुत्स अर्जुनेय यानी अर्जुन का बेटा। इसके अलावा मनुस्मृति में भी सरनेम का जिक्र मिलता है। इसमें लिखा है कि ब्राह्मणों को अपने नाम के बाद सरमन यानी खुशी का आशीर्वाद. क्षत्रियों को वर्मन (शक्ति की सुरक्षा), वैश्यों को गुप्ता (समृद्धि) और शूद्रो को दास (गुलाम या निर्भरता) लगाना चाहिए।
सरनेम आने के पीछे की एक कहानी चीन से जुड़ी
चीन में किंवदंती के अनुसार, सरनेम लगाने की शुरुआत 2000 ईसा पूर्व में सम्राट फू शी के साथ शुरू हुए। उनके प्रशासन ने जनगणना लेने और जनगणना की जानकारी के उपयोग की सुविधा के लिए नामकरण प्रणाली को मानकीकृत किया। मूल रूप से, चीनी उपनाम मातृसत्तात्मक रूप से प्राप्त किए गए थे, हालांकि शांग राजवंश (1600 से 1046 ईसा पूर्व) के समय तक पिता का सरनेम इस्तेमाल में आने लगा। चीनी महिलाएं शादी के बाद अपना नाम नहीं बदलतीं। उन्हें या तो उनके पूरे जन्म के नाम से या उनके पति के उपनाम और पत्नी के लिए शब्द से संदर्भित किया जा सकता है। अतीत में, महिलाओं के दिए गए नाम अक्सर सार्वजनिक रूप से ज्ञात नहीं होते थे और महिलाओं को आधिकारिक दस्तावेजों में उनके परिवार के नाम और चरित्र "शि" और जब उनके पति के उपनाम, उनके जन्म के उपनाम और चरित्र "शि" से विवाह किया जाता था। मध्य पूर्व में उपनामों का बहुत महत्व रहा है और अभी भी है। 1800 ईसा पूर्व के आरंभिक कांस्य और लौह युग में आदिवासी निस्बाओं का एक प्रारंभिक रूप एमोराइट और अरामियन जनजातियों के बीच प्रमाणित है। प्राचीन ईरान में, उपनामों का उपयोग किया जाता था, लेकिन यह संभावना है कि उनमें से अधिकतर अभिजात वर्ग, कुलीन और सैन्य नेताओं के थे। यहां भी सरनेम पूर्वजों से ही पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ता रहा।
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