Helmand River Dispute: सुपर पावर के जाल में फंस गए ईरान और अफगानिस्तान, जल के लिए जंग लड़ेंगे 2 इस्लामिक मुल्क
पाकिस्तान में दहशत फैलाने के बाद अब वही तालिबानी अफगानिस्तान और ईरान की सीमा पर बवाल कर रहे हैं। बताया गया कि पानी के अधिकारों को लेकर सीमा पर हुई झड़पों ईरान-अफगानिस्तान बॉर्डर पर 2 देशों की सेनाओं के बीच गोलीबारी से शुरू हुआ, जिसमें 4 सैनिकों की मौत का दावा किया जा रहा है।
अफगानिस्तान में युद्ध का मोर्चा खुला और उसके लड़ाके आधुनिक हथियार व बख्तरबंद गाड़ियों के साथ ईरान बॉर्डर पर पहुंच गए। तस्वीरें ऐसी आईं कि मानो अफगानिस्तान और ईरान के बीच रूस और यूक्रेन जैसी जंग छिड़ जाएगी। जिन तालिबानियों को पालने-पोषणे का काम पाकिस्तान ने किया अब वही तालिबान पूरी दुनिया की नाक में दम कर रहे हैं। पाकिस्तान में दहशत फैलाने के बाद अब वही तालिबानी अफगानिस्तान और ईरान की सीमा पर बवाल कर रहे हैं। बताया गया कि पानी के अधिकारों को लेकर सीमा पर हुई झड़पों ईरान-अफगानिस्तान बॉर्डर पर 2 देशों की सेनाओं के बीच गोलीबारी से शुरू हुआ, जिसमें 4 सैनिकों की मौत का दावा किया जा रहा है। ईरान के दो और अफगानिस्तान के 2 सैनिकों की मौत हो गई। यह जंग क्यों शुरू हुई यह भी बताएंगे लेकिन तकरार के बाद दोनों देशों ने क्या चुना यह भी सुनना जरूरी है।
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तालिबान की दो टूक- 24 घंटे में जीत हासिल कर लेंगे
तालिबान कमांडर अब्दुल हमिद खोरासानी ईरान को चेतावनी देते हुए कहते नजर आए कि जिस उत्साह के साथ हम अमेरिका के खिलाफ लड़े थे, उससे कहीं ज्यादा जोश के साथ हम ईरान के खिलाफ लड़ेंगेम ईरान को तालिबानी नेताओं के धैर्य का शुक्रगुजार होना चाहिए। अगर तालिबान के सीनियर नेता हम इजाजत देते हैं तो हम ईरान पर 24 घंटे में जीत हासिल कर लेंगे। ऐसे में सवाल यह है कि तालिबान के पास वह कौन सी ताकत है, जिसके बूते वह ईरान पर 24 घंटे में फतेह का दावा कर रहा है और ईरान की राजधानी तेहरान से झंडा लहराने लगेगा। दरअसल, हाथों में अत्याधुनिक हथियार, रॉकेट लॉन्चर और बख्तरबंद गाड़ियों के साथ नजर आने वाले तालिबानी लड़ाके मेड इन अमेरिका के आर्म्स से लैस हैं। मतलब जो हथियार अफगानिस्तान छोड़ते समय अमेरिका की फौज छोड़ गई थी अब तालिबान उन्हीं हथियारों का इस्तेमाल अपने पड़ोसी देशों के खिलाफ कर रहा है। ये वो हथियार हैं जिससे दुनिया की सुपर पावर आर्मी युद्ध लड़ती है। इन हथियारों के दम पर तालिबान ने ईरान के खिलाफ जंग छेड़ने का ऐलान कर दिया है।
शिया और सुन्नी के बीच की जंग
वैसे तो तालिबान और ईरान के रिश्ते शुरू से ही बेहद उतार-चढ़ाव वाले रहे हैं। जहां एक ओर अफगानिस्तान में कट्टरपंथी सुन्नी तालिबान का राज है तो वहीं ईरान में शिया मुसलमान बहुसंख्यक हैं। अफगानिस्तान के साथ सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध होने के चलते ईरान ने लाखों अफगान शरणार्थियों को पनाह दी है। इसके बावजूद भी तालिबान और ईरान के रिश्ते खटास भरे रहे हैं। करीब एक सदी से अधिक समय से ईरान और अफगानिस्तान के बीच चल रहा हेलमंद नदी विवाद इन दिनों फिर से चर्चा में है। ईरान के राष्ट्रपति रायसी ने तो तालिबान को चेतावनी देते हुए कह दिया था कि हमारी बातों को गंभीरता से लो ताकी तुम बाद में शिकायत न करो। रायसी ने कहा कि हेलमंद नदी समझौते के मुताबिक तालिबान सरकार सिस्तान और बलूचिस्तान के लोगों को पानी मुहैया कराए और तालिबान ईरानी हाइड्रोलॉजिस्ट को हेलमंद नदी के जल स्तर की जांच करने की अनुमति भी दे।
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क्या है हेलमंद नदी विवाद
अफगानिस्तान और ईरान के बीच सबसे लंबे समय से चले आ रहे विवादों का सबसे बड़ा कारण हेलमंद नदी रही है। हालांकि 1973 में दोनों देशों के बीच इसपर एक समझौता भी हुआ जिसके तहत अफगानिस्तान ईरान को हर साल 820 मिलिनयन क्यूबिक मीटर पानी देता है। लेकिन ईरान अरसे से अफगानिस्तान पर हेलमंद नदी पर बांध बनाकर पानी रोकने के आरोप लगाता आया है। अब फिर इसी पानी को लेकर दोनों देशों में रार पैदा हो गई है।
ईरान क्यों जल संकट से जूझ रहा?
आंकड़ों की माने तो ईरान कई अरसे से पानी को लेकर मशक्कत करता आया है। मध्यपूर्व के गर्म और रूखे क्षेत्र में बसे ईरान में हर साल 240 से 280 मिलिमीटर ही बरसात हो पाती है। जो कि वैश्विक औसत 990 मिलीमीटर से काफी नीचे है। देश के पूर्वी हिस्से में तो सालाना मात्र 115 मिलीमीटर ही बरसात हो पाती है। ये इलाका गंभीर जल संकट का सामना करता है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार भी पिछले 30 सालों में ईरान सूखे की समस्या का सामना कर रहा है। लेकिन पिछले एक दशक में ये समस्या और गंभीर हो गई है। देश का अनुमानित 97 फीसदी हिस्सा सूखे की समस्या का सामना कर रहा है। ऐसे में पानी को लेकर ईरान का चिंतित होना लाजिमी है।
ईरानी सेना सामना करने को तैयार
ईरान के कानून प्रवर्तन बलों के डिप्टी कमांडर कासिम रिजाई और ईरानी सेना के ग्राउंड फोर्स के कमांडर किमर्स हैदरी ने स्थिति की जांच करने के लिए अफगानिस्तान की सीमा से लगे बलूचिस्तान प्रांत की यात्रा की। हैदरी का कहना है कि अफगानिस्तान के साथ साझा सीमाएं पूरी तरह से सेना के जमीनी बलों के नियंत्रण में है। सुरक्षा पूरी तरह से स्थापित है। ये कई बार बताया गया है कि सीमा पर हमारी उपस्थिति का मतलब ये नहीं है कि वहां हमें कोई खतरा है। लेकिन सीमाओं पर सुरक्षा बनी हुई है। उन्होंने कहा कि कभी-कभी दो सीमा रक्षकों के बीच मतभेद हो जाते हैं, जो एक महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं है। समी रक्षकों और जमीनी बलों में हमारी कामरेड इस क्षेत्र में पूरी तरह से हावी है। जब तक अफगानिस्तान की सेना अंतरराष्ट्रीय नियमों का सम्मान करती है, हम आपसी सम्मान दिखाएंगे और अच्छे पड़ोसी की नीति बनाए रखेंगे। लेकिन अगर दूसरा पक्ष अनुपालन नहीं करना चाहता तो ईरानी सेना उनका सामना करेगी।
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