काफी पुराना है फ़ॉकलैंड द्वीप विवाद, अर्जेंटीना के दावे पर चीन का समर्थन, ब्रिटेन ने आपत्ति क्यों जताई?
चीन के राष्ट्रपति शी जिनफिंग और अर्जेंटीना के उनके समकक्ष अल्बर्टों फर्नांडीज ने रविवार को एक संयुक्त बयान जारी कर कहा कि चीन ‘‘माल्विनास द्वीप पर संप्रभुत्ता के पूर्ण अधिकार की अर्जेंटीना की मांग के लिए अपने समर्थन की पुष्टि’’ करता है।
चार दशकों बाद यूनाइटेड किंगडम और अर्जेंटीना के बीच फॉकलैंड द्वीप विवाद चीन के एक बयान के बाद फिर से सुर्खियों में आ गया है। बीजिंग ओलंपिक के मौके पर चीन की तरफ से एक बयान आया जिसमें उसने फ़ॉकलैंड द्वीप समूह को लेकर अर्जेंटीना के दावे का समर्थन किया। चीन के राष्ट्रपति शी जिनफिंग और अर्जेंटीना के उनके समकक्ष अल्बर्टों फर्नांडीज ने एक संयुक्त बयान जारी कर कहा कि चीन ‘‘माल्विनास द्वीप पर संप्रभुत्ता के पूर्ण अधिकार की अर्जेंटीना की मांग के लिए अपने समर्थन की पुष्टि’’ करता है। अर्जेंटीना का मानना है कि उससे 1833 में गैरकानूनी रूप से फॉकलैंड्स को ले लिया गया था और ब्रिटिश कॉलोनी पर 1982 में आक्रमण किया गया था। मामला ब्रिटेन से जुड़ा था तो तुरंत में इस पर उसकी तरफ से जवाब भी आ गया और चीन के उस बयान को दृढ़ता से खारिज कर दिया जिसमें फॉकलैंड द्वीप पर अर्जेंटीना के दावे के लिए बीजिंग ने अपना समर्थन जताया।
इन दिनों क्यों चर्चा में है विवाद
वैसे तो ये चर्चा नई नहीं है। लेकिन बीजिंग विंटर ओलंपिक जैसे हाई प्रोफाइल मंच से इस मुद्दे पर को फिर से हवा दिया जाना गहरे संकेत देता है। वो भी ऐसे दौर में जब सभी की निगाहें बीजिंग पर टिकी है। चूंकि इस वर्ष ब्रिटेन और अर्जेंटीना के बीच हुए युद्ध की 40वीं वर्षगांठ है, इसलिए अर्जेंटीना इन द्वीपों की संप्रभुता पर अपने रुख पर जोर देने के लिए क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठा रहा है और चीन उसका साथ दे रहा है। एक लैटिन अमेरिकी प्रकाशन टेलीसुर की एक रिपोर्ट में कहा गया कि अर्जेंटीना के विदेश मंत्रालय ने बाद में एक बयान जारी कर कहा कि पारलाटिनो विधायकों और मालवीना की परिषद के सदस्यों और राजनयिकों ने "अंतरराष्ट्रीय समुदाय से ब्रिटिश सरकार से अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रावधानों के अनुसार अर्जेंटीना के साथ बातचीत फिर से शुरू करने का आग्रह करने का आह्वान किया।
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ब्रिटेन की आपत्ति
ब्रिटेन ने चीन के उस बयान को दृढ़ता से खारिज कर दिया जिसमें फॉकलैंड द्वीप पर अर्जेंटीना के दावे के लिए बीजिंग ने अपना समर्थन जताया है। इसी के साथ ब्रिटेन तथा चीन के बीच संबंध तनावपूर्ण बने हुए हैं। विदेश सचिव लिज ट्रुस ने ट्वीट किया कि ब्रिटेन ‘‘फॉकलैंड्स की संप्रभुत्ता को लेकर किसी भी सवाल को पूरी तरह’’ खारिज करता है। फॉकलैंड्स ब्रिटिश परिवार का हिस्सा है और हम आत्म निर्धारण के उनके अधिकार की रक्षा करेंगे। चीन को फॉकलैंड्स की संप्रभुत्ता का सम्मान करना चाहिए।
क्या है पूरा विवाद
अर्जेंटीना की तरफ से काफी लंबे वक्त से फॉकलैंड द्वीप समूह पर संप्रभुता का दावा किया जाता रहा है। अठारहवीं शताब्दी के बाद से, दक्षिण अटलांटिक महासागर में अर्जेंटीना के तट पर स्थित फ़ॉकलैंड द्वीप, हमेशा ब्रिटेन, फ्रांस, स्पेन और अर्जेंटीना द्वारा उपनिवेश और विजय के अधीन रहा है। 1700 के दशक से पहले, द्वीप निर्जन थे, फ्रांस ने पहली बार 1764 में वहां एक उपनिवेश स्थापित किया था। अगले वर्ष, जब ब्रिटिश अपने लिए द्वीपों का दावा करने पहुंचे, तो इसने विवाद को जन्म दिया। अर्जेंटीना फॉकलैंड को लास मालविनास कहता है। जबकि करीब 1830 के दशक से ही फॉकलैंड द्वीप समूह ब्रिटेन के पास है और उसका कहना है कि इन द्वीप समूह के भविष्य पर किसी भी किस्म की बातचीत की गुंजाइश नहीं है। इन द्वीप समूहों के लिए ब्रिटेन और अर्जेंटीना के बीच 1982 में युद्ध भी हुआ था। फ़ॉकलैंड द्वीप समूह का झंडा 25 जहाज़ों पर लहराता है जिसमें से अधिकतर मछली पकड़ने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं।
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वर्ल्ड वॉर II के बाद क्या हुआ?
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के वैश्विक परिदृश्य में विवाद जारी रहा। जुआन पेरोन की अध्यक्षता में फ़ॉकलैंड द्वीप समूह पर अर्जेंटीना की संप्रभुता के दावे ने यूनाइटेड किंगडम के साथ उसके संबंधों पर गहरा प्रभाव डाला। दिसंबर साल 1965 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस मुद्दे को उपनिवेश स्वतंत्रता की श्रेणी में शामिल करने का प्रस्ताव पारित किया, और ब्रिटेन व अर्जेंटीना से द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से संप्रभुता विवाद का समाधान करने का आग्रह किया। उपनिवेश स्वतंत्रता संबंधी संयुक्त राष्ट्र समिति ने बार-बार ब्रिटिश सरकार से अर्जेंटीना सरकार के साथ बातचीत करने का आग्रह किया है, लेकिन ब्रिटेने ने इससे इनकार किया है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने ब्रिटेन की उपनिवेशवाद विचारधारा पर व्यापक निंदा की है। 1977 तक देशों के बीच सभी वार्ताओं को रोक दिया गया। युद्ध से पहले यूनाइटेड किंगडम की थैचर सरकार ने द्वीपों को आर्थिक रूप से बनाए रखने में कठिनाइयों के कारण फ़ॉकलैंड द्वीप समूह को अर्जेंटीना को सौंपने पर दृढ़ता से विचार किया। इन घटनाओं की पृष्ठभूमि में द्वीपों को लेकर दोनों देशों के बीच संघर्ष सतह के नीचे पनपता रहा।
फ़ॉकलैंड युद्ध कैसे छिड़ गया?
इस बात पर जोर देते हुए कि यूनाइटेड किंगडम ने अवैध रूप से उनसे फ़ॉकलैंड द्वीप समूह ले लिया था, अर्जेंटीना ने 1982 में द्वीपों पर आक्रमण किया, जिससे फ़ॉकलैंड युद्ध छिड़ गया। विशेषज्ञों का मानना है कि उस वर्ष अप्रैल में शुरू हुआ आक्रमण अप्रत्याशित था। लेकिन किंग्स कॉलेज लंदन में युद्ध अध्ययन के प्रोफेसर लॉरेंस फ्रीडमैन का मानना है कि दोनों देशों में संघर्ष तो तय थी। लेखक कैरिन बर्बेरी और मोनिया ओ'ब्रायन कास्त्रो ने अपनी पुस्तक '30 इयर्स आफ्टर: इश्यूज एंड रिप्रेजेंटेशन ऑफ द फ़ॉकलैंड्स वॉर' में लिखा कि हमले की मुख्य वजह आंशिक रूप से अर्जेंटीना के सैन्य सरकार के नियंत्रण में होना था और उस वक्त ब्रिटिश कब्जे की 150 वीं वर्षगांठ भी थी। यूनाइटेड किंगडम हमले के लिए तैयार नहीं था। लगभग 7,000 समुद्री मील दूर द्वीपों की भौगोलिक स्थिति के कारण लंदन नुकसान की स्थिति में था। हालांकि इसके शुरू होने के दो महीने से कुछ अधिक समय बाद युनाइटेड किंगडम की जीत के साथ युद्ध समाप्त हो गया।
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युद्ध के चार दशक बाद
अपनी पुस्तक 'द फ़ॉकलैंड्स वॉर: एन इंपीरियल हिस्ट्री' में, लेखक एज़ेक्विएल मर्कौ लिखते हैं कि न तो विवाद, न ही युद्ध का दौर देखने को मिला। लेकिन ब्रिटेन के इस क्षेत्र को लेकर लगाव ने 1960 के दशक से अर्जेंटीना और ब्रिटेन के बीच विवाद को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। माल्विनास द्वीप का मुद्दा ब्रिटेन और अर्जेंटीना के दो संप्रभु देशों के बीच हुआ, और यह एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दा है।
-अभिनय आकाश
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