हर हार के बाद पार्टी में और मजबूत हो जाता है गांधी परिवार, आइए कांग्रेस के ट्राई, टेस्टेड और सुपरहिट हारने वाले फॉर्मूले को जानते हैं
एक एक म्युनिसिपल का इलेक्शन भी कांग्रेस जीतने में कामयाब हो जाती है तो इसका श्रेय रणदीप सुरजेवाला राहुल गांधी के कुशल क्षमता और सोनिया जी के मार्गदर्शन को देने से नहीं चूकते। लेकिन अगर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के 97% उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। फिर भी अजय कुमार लल्लू की कुर्बानी दी जाती है।
जीत के जोश में जरूरी आवाजें दब जाया करती हैं और हार वो आईना है जो ऐसी बातों को खाद-पानी मुहैया कराता है। लेकिन देश की सबसे पुरानी पार्टी के भीतर हर हार इसको चलाने वाले परिवार की स्थिति को और मजबूत करता जाता है। हम बात कर रहे हैं कांग्रेस की और गांधी परिवार की। उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 4-1 से विजय हासिल की। लेकिन इसके ठीक विपरीत कांग्रेस पार्टी ने पंजाब राज्य को भी गंवा दिया और इसके साथ ही उसके विपक्षी दल के तमगे को भी अब खतरा महसूस हो रहा है। कांग्रेस की हार पर बीजेपी तंज कसते हुए कहती है कि चुनाव कैसे हारते हैं ये कांग्रेस से सीखा जा सकता है। बिहार हो बंगाल, असम हो या पंजाब कांग्रेस लगातार हर हार के साथ अपने ही खराब प्रदर्शन के नए कीर्तिमान स्थापित कर रही है। लेकिन आलम ये है कि फिर भी वो गांधी परिवार से आगे सोच ही नहीं पा रही है। उन्हीं के नेतृत्व में भविष्य के होने वाले चुनाव हारने की तैयारियां भी हो रही है।
हारने का सफल फॉर्मूला
एक म्युनिसिपल का इलेक्शन भी कांग्रेस जीतने में कामयाब हो जाती है तो इसका श्रेय रणदीप सुरजेवाला राहुल गांधी के कुशल क्षमता और सोनिया जी के मार्गदर्शन को देने से नहीं चूकते। लेकिन अगर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के 97% उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। फिर भी कांग्रेस उम्मीदवारों की जीत के लिए 209 रैलियां और रोड शो करने वाली प्रभारी प्रियंका गांधी की बजाय अजय कुमार लल्लू की कुर्बानी दी जाती है।
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पार्टी के नियम गांधी परिवार पर लागू नहीं
चुनाव हारने के बाद सोनिया गांधी ने अपने पांच प्रदेश अध्यक्षों के इस्तीफे ले लिए। वो पांचों राज्य जहां पर चुनाव हुए और कांग्रेस पार्टी हार गई। इनमें नवजोत सिंह सिद्धू का नाम भी शामिल है जिन्हें बड़े जोर-शोर के साथ गांधी परिवार ने ही पीसीसी अध्यक्ष बनाया था। एक समय सिद्धू के मन में वो गलतफहमी भी गांधी परिवार ने ही डाली थी कि वो अगले मुख्यमंत्री भी हो सकते हैं। जिन पांच राज्यों के प्रदेश अध्यक्षों से इस्तीफा लिया गया है उनमें से 3 को तो अपने अध्यक्ष होने का पता ही तब चला जब उनसे इस्तीफा मांगा गया! लेकिन न तो अपने बेटे पर सोनिया गांधी ने कोई कार्रवाई की और न ही अपनी बेटी से इस्तीफा लिया है। गांधी परिवार का मानना है कि पार्टी को इन राज्यों में जो हार मिली है उसके लिए ये नेता जिम्मेदार हैं।
पुनर्जीवित करने की योजना
यदि कांग्रेस अपने पुनरुद्धार के लिए एक यथार्थवादी योजना को लागू करने के बारे में गंभीर है, तो ऐसे चार महत्वपूर्ण कारक हैं जिन्हें पार्टी को ध्यान में रखना होगा। पहला, कोई भी कोर्स करेक्शन तब तक संभव नहीं होगी जब तक कि पार्टी नेतृत्व के मुद्दे पर स्पष्टता जैसी बात ठोस तरह से हो। पिछले तीन वर्षों से जब से राहुल गांधी ने पार्टी अध्यक्ष के रूप में इस्तीफा दिया है, तब से आगे की राह में स्पष्टता की कमी साफ दिखती है। राहुल गांधी नेहरू-गांधी परिवार से आगे बढ़कर नेतृत्व की जरूरत का संकेत देते नजर आए। अगर वह इसे लेकर गंभीर होते तो नए नेता को चुनने की प्रक्रिया को उसके तार्किक अंजाम तक पहुंचाया जाना चाहिए था। अंतिम चरण में, नेतृत्व समाधान तलाशने की बजाए मेरो मन अनत कहां सुख पावै जैसे उड़ि जहाज कौ पंछी पुनि जहाज पै आवै की माफिक घूम फिर कर पार्टी का नेतृत्व करने के लिए सोनिया गांधी के पास वापस चला गया। आलोचक अच्छी तरह से तर्क दे सकते हैं कि एक नए नेता की तलाश से जुड़ी पूरी कवायद एक राजनीतिक नाटक थी, जिसकी परिणति गांधी परिवार के नेतृत्व में पूर्ण विश्वास के रूप में हुई! तथ्य यह है कि कांग्रेस नेतृत्व लगातार दो लोकसभा चुनावों में पार्टी को एक विश्वसनीय प्रदर्शन दिलाने में बुरी तरह असफल रहा है, यह दर्शाता है कि ग्रैंड ओल्ड पार्टी वर्तमान दौर में भाजपा को चुनौती देने में असमर्थ दिख रही है।
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कांग्रेस और जी23 में असहमति
पार्टी के भीतर प्रमुख विद्रोहियों द्वारा असंतोष की अभिव्यक्ति खुले में थी। तत्काल प्रतिक्रिया के रूप में, पार्टी के प्रवक्ताओं ने विद्रोह की बढ़ती आवाजों को सरसरी तौर पर खारिज कर दिया। एक उम्मीद है कि यह एक औपचारिक प्रतिक्रिया के रूप में अधिक है और उठाए गए गंभीर मुद्दों पर पार्टी के आंतरिक मंचों पर चर्चा की जाती है। प्रमुख विद्रोही आवाजों के औपचारिक समूह के रूप में उभरे जी-23 ने कई बैठकें की हैं। पार्टी नेतृत्व ने जी-23 समूह के प्रमुख सदस्यों तक पहुंचने का प्रयास किया है। जी-23 उन लोगों से भी कुछ समर्थन हासिल करने में सक्षम रहा है जो परंपरागत रूप से उनसे जुड़े नहीं थे और पार्टी नेतृत्व के करीबी माने जाते थे। प्रवाह की इस अवधि के दौरान एक प्रमुख खतरा 'गैर-जवाबदेही का वातावरण' है। जब तक समीक्षा और चिंतन प्रक्रिया को सावधानीपूर्वक कैलिब्रेट नहीं किया जाता है, तब तक पार्टी का अनुशासन अच्छी तरह से प्रभावित हो सकता है।
ये कहां आ गए
2004 का लोकसभा चुनाव अटल बिहारी वाजपेयी के सामने सोनिया गांधी की राजनीतिक हैसियत बहुत छोटी थी। अटल जी ने देश को इंडिया शाइनिंग का नारा दिया यानी की उनके कार्यकाल की वजह से देश चमक रहा है। ये पॉजिटिव कैंपेन था लेकिन इसका असर नेगेटिव हो गया और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे कद्दावर नेता के लिए एनडीए की सरकार हार गई। किसी ने सोचा भी नहीं था कि सोनिया गांधी अटल बिहारी वाजपेयी के सामने कांग्रेस को जीत दिलाईंगी। उन्हीं के फॉर्मूले पर एनडीए की जगह यूपीए बनेगी। इसके साथ ही उसके अंतर्गत एक गठबंधन की सरकार देश में बनेगी। ये सोनिया गांधी के युग की शुरुआत थी और गांधी परिवार के शीर्ष पर आने की वापसी। लेकिन इस मामले में राहुल गांधी का ट्रैक रिकॉर्ड तो श्रीलंका के मशहूर बल्लेबाज मार्वन अटापट्टू से भी खराब है। जिनके नाम टेस्ट मैच में शतक से ज्यादा 0 पर आउट होने का रिकॉर्ड है। राहुल गांधी 17 दिसंबर 2017 से लेकर 3 जुलाई 2019 तक पार्टी अध्यक्ष रहे। 2019 में वो अपने गढ़ अमेठी से भी चुनाव हार गए। 10 अगस्त 2019 को सोनिया गांधी को वापस कांग्रेस की कमान संभालनी पड़ी। लेकिन कांग्रेस की राजनीतिक तस्वीर में कोई बड़ा फर्क नहीं आया। 2022 में यूपी में पूरी तरह से कमान प्रियंका गांधी वाड्रा के हाथों में दी गई और फिर कांग्रेस की हालत नहीं सुधरी।
विपक्ष के रूप में राज्य-आधारित दलों का उदय
इसे कांग्रेस के असमर्थ होने का प्रमाण ही कहा जाएगा कि राज्य आधारित दल भाजपा के प्रमुख चुनौती के रूप में तेजी से उभर रहे हैं। ऐसा लगता है कि अपने प्रमुख प्रतिद्वंद्वी के विपरीत, कांग्रेस चुनाव लड़ने और जीतने की भूख खो चुकी है! भाजपा नेतृत्व के लिए चुनाव और राजनीति चौबीसों घंटे चलने वाली गतिविधि है। जबकि इसके ठीक उलट कांग्रेस नेतृत्व के लिए ये शुरू होती है, थोड़े समय के चलती है और उसके बाद एक लंबे विराम की अवस्था में चली जाती है। अगर कांग्रेस का मानना है कि पार्टी की एकता बनाए रखने के लिए गांधी परिवार के किसी व्यक्ति की जरूरत है, तो उन्हें इस तथ्य को भी स्वीकार करना चाहिए कि लगातार चुनावों ने साबित कर दिया है कि उनके पास वोटरों को आकर्षित करने की क्षमता नहीं है। स्पष्ट रूप से नेतृत्व की दूसरी पंक्ति को विकसित करने और सशक्त बनाने की आवश्यकता है। इस दूसरी पंक्ति के भी दो महत्वपूर्ण बिंदु हैं। पहला- उन्हें वास्तव में जन आधारित नेता होने की जरूरत है, जिनके पास चुनाव जीतने और अभियान का सफलतापूर्वक नेतृत्व करने का ट्रैक रिकॉर्ड हो। दूसरा- इस दूसरी पंक्ति की राज्य स्तर पर उपस्थिति होनी चाहिए, जहां कांग्रेस को अपने आधार का निर्माण करने की आवश्यकता होगी। कांग्रेस के लिए यह महसूस करना भी महत्वपूर्ण है कि वो महज एक राजनीतिक मंच नहीं है जो केवल भाजपा के एजेंडे पर प्रतिक्रिया दे। इस तथ्यों और आंकड़ों के आधार पर दिखाई देने वाले नीतिगत विकल्पों और एक विस्तृत कार्य योजना पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता होगी। क्या कांग्रेस और उसके नेतृत्व को परिणामों को स्वीकार करने और उचित कार्रवाई करने का साहस है? आत्म-चिंतन के इस महत्वपूर्ण चरण में केवल कुछ विंडो ड्रेसिंग और कॉस्मेटिक परिवर्तन प्रदान करने के बजाय वास्तविक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
-अभिनय आकाश
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