जहाज ने जब इनकार किया (व्यंग्य)

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पायलट हैरान, दोनों पायलटों में से ज़्यादा पढ़े लिखे समझदार पायलट ने कहा, इतने विकट समय में ऐसा करने की ज़रूरत नहीं है, झंडी दिखाना मात्र औपचारिकता ही तो है। कोई भी संक्रमित होकर बीमार हो सकता है और बीमार हो जाओ तो......।

हवाई जहाज ने उड़ने से इनकार कर दिया। जहाज ने ज़रूरी सामग्री लेकर विशेष क्षेत्र में जाना था, जिसमें ज़रुरतमंदों के लिए कपड़े, दवाईयां, बोतल बंद पानी, खाने का सामान व पवित्र जल भी शामिल था। वैक्सीन बारे पहले ही समझा दिया गया था और आक्सीजन की अब कमी रही नहीं थी। मॉनसून अग्रिम आ गया था, वृक्ष ज़ोर ज़ोर से हिल कर ताज़ा हवा लुटा रहे थे। पायलट हेलमेट पहने खड़े थे जहाज उड़ाने के लिए बिलकुल तैयार, लेकिन जहाज ने रवाना होने से इनकार कर दिया। पायलट ने अपनी शैली में पूछा तो जहाज ने साफ़ कह दिया, हरी झंडी देखे बिना नहीं जाउंगा और मैं ट्रक नहीं हूं जो ऐरा गैरा झंडी दिखा देगा। जब तक प्रदेश के मुख्यमंत्री अपने चेले चांटों के साथ आकर, दस्ताने पहने कर कमलों से, सेनिटाइज्ड, हरी झंडी नहीं दिखाते तब तक हिलूंगा भी नहीं।

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पायलट हैरान, दोनों पायलटों में से ज़्यादा पढ़े लिखे समझदार पायलट ने कहा, इतने विकट समय में ऐसा करने की ज़रूरत नहीं है, झंडी दिखाना मात्र औपचारिकता ही तो है। कोई भी संक्रमित होकर बीमार हो सकता है और बीमार हो जाओ तो......। दूसरा पायलट संस्कृति से प्यार करने वाला था, उसने एक दम निश्चय लेकर कहा, मुझे जहाजजी की बात ठीक लगती है। अच्छा हुआ जहाजजी ने हमें प्रोटोकॉल की याद दिला दी। चाहे कुछ भी हो जाए, जान चली जाए हमें अपनी परम्पराओं, संस्कृति की रक्षा हर हालत में करनी है। प्रोटोकॉल भी तो संस्कृति की तरह होता है जिसे निभाना ज़रूरी होता है। 

ठीक उसी समय कई किलोमीटर दूर बैठे मुख्यमंत्री को भी परस्पर भाव बोध यानी मानसिक दूरसंचार से महसूस हुआ कि उन्हें फलां जहाज को रवाना करने ज़रूर जाना चाहिए। उन्होंने देर नहीं की और अपने स्थायी काफिले के साथ निकल पड़े। उन्हें ढलती उम्र में ज़्यादा पता नहीं चलता इसलिए कई सचिव, पीए, बिलकुल निजी सचिव साथ चिपकाए रखने पड़ते हैं। रास्ता किसी कारण से बंद हो तो भी परम्पराओं की रक्षा करने हेलीकॉप्टर से निकल पड़ते हैं। ऐसे नेक कामों की बढ़िया वीडिओ बनवाते हैं ताकि अखबार में फोटो खबर छपे और भविष्य में कठिन समय पर काम आ सके। जहाज ने मदद सामग्री भी अंदर नहीं रखने दी थी, ऐसा तय था कि मुख्यमंत्रीजी स्वयं अपने सौभाग्यशाली हाथ का स्पर्श देकर ही रखवाएंगे। जिस स्थल पर जहाज ने पहुंचना था वहां स्वागत की पूरी तैयारी हो चुकी थी। वह जगह सिर्फ एक घंटा दूरी पर थी, जहाजजी के व्यवहार को देखकर, यहां के नेताओं ने वहां के नेताओं को भी खबरदार कर दिया था कि जहाज से सामग्री उतारते समय, उच्च स्तरीय नेता अपने भाग्यशाली करकमल ज़रूर लगाएं। 

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मुख्यमंत्री ज्यादा बड़े नहीं केवल पांच गाड़ियों के काफिले के साथ आए। सायरन की मधुर आवाज़ से आसपास पक्षी भी खुश हो गए और जहाज भी मुस्कुराता दिखा। सधी चाल से मुख्यमंत्री जहाज के निकट आए, प्रेस के ख़ास लोग तो आ ही जाते हैं, अनुचित सामाजिक दूरी बनाए रखते हुए, राहत सामग्री बारे संतुलित बयान दिया। मुख्यमंत्री अगर कुछ न कहें तो शब्दों के नाराज़ होने का खतरा भी रहता ही है इसलिए उन्हें यह प्रोटोकॉल भी निभाना पड़ता है। उनकी सोहबत में वक़्त भी बहुत खुश रहता है। उन्होंने अपने पवित्र, दाएं हाथ से ज़रूरी सामान के डिब्बे और जहाज को छूकर प्रणाम किया तो जहाज की बांछें  खिल गई।

मुख्यमंत्री ने गौरव अनुभव करते हुए सिर्फ खुद से कहा, बहुत संतुष्टि हो रही है। आजकल चाहे उनकी पार्टी या सरकार के सहयोगी उनकी बात न माने लेकिन प्राण रहित जहाज के सानिध्य में आकर कितना अच्छा लग रहा है। उनके करकमलों से आज नए किस्म का उद्घाटन भी हो गया, शायद इसलिए मंत्रीजी भावुक हो गए, उन्होंने अपने दोनों दस्ताने उतारकर नंगे हाथों से जहाज को फिर अच्छे से स्पर्श किया। अब जहाज ने उड़ने का इशारा किया। कल अखबार में दिलचस्प खबर छपने वाली थी। उनका निजी सचिव सेनिटाइज़र और तौलिया लिए तैयार खड़ा था।

- संतोष उत्सुक

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